पर्यटकों को आकर्षित कर रहीं कुसुम की लाल पत्तियां
बगहा। तापमान में बढ़ोत्तरी होने के साथ ही पतझड़ का आगमन हो गया है। इस मौसम में वाल्मीकि ट
बगहा। तापमान में बढ़ोत्तरी होने के साथ ही पतझड़ का आगमन हो गया है। इस मौसम में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के पेड़ नई पत्तियों की चादर ओढ़ने लगे हैं। जिससे रिजर्व की सुंदरता में चार चांद लग गए हैं। वीटीआर के जंगलों में एक 'कुसुम' नाम के पेड़ की प्रजाति है, जो पूरे साउथ एशिया में हरे रंग की बजाए लाल पत्तों की वजह से जाना जाती है। कुसुम के पेड़ की खासियत यह है कि इसके पत्ते महज 20 से 22 दिन के लिए पूरी तरह से लाल होते हैं। इसके बाद फिर से हरे हो जाते हैं। ऐसे खूबसूरत नजारे को कैद करने के लिए वीटीआर पहुंचे पर्यटक काफी रोमांचित हैं। साल में एक बार ही रंग बदलने वाला पेड़ दिखता है।
इस बाबत प्रकृति प्रेमी मनोज कुमार ने बताया कि 'सोपबेरी' फेमिली का यह पेड़ 'कुसुम' भारत में हिमालयन रीजन की तलहटी में पाया जाता है। वीटीआर के जंगलों में इन पेड़ों की काफी संख्या है। चूंकि लोगों को इस पेड़ के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है। ऐसे में वह इस सीजन में होने वाले पेड़ के प्राकृतिक परिवर्तन को मिस कर देते है। वीटीआर में इन पेड़ों की बहुतायत है। नई पत्तियों से पटने लगा वीटीआर:
यहां जंगलों में पतझड़ हो रहा है। पेड़ों पर नई कोपलें निकल रहीं हैं। वीटीआर के घने जंगलों में नई पत्तियों की जबरदस्त हरियाली छाई है। वीटीआर में कुसुम चीतल और बंदरों का पौष्टिक भोजन भी होते हैं।
यह पेड़ चीन, श्रीलंका, मलयेशिया, इंडोनशिया और थाइलैंड में बहुतायत में पाया जाता है।
क्लोरोफिल की बजाए एंथ्रोसाइनिन ज्यादा ऐक्टिव रहता है
पेड़ों में पत्तियों का हरा रंग क्लोरोफिल की वजह से होता है। लेकिन कुसुम के पेड़ों की पत्तियों का रंग एंथ्रोसाइनिन की वजह से लाल होता है। इन दिनों यहां से गुजरना किसी उत्सव में घूमने जैसा प्रतीत होता है। सड़क के दोनों तरफ लगे पेड़ों पर लाल, गुलाबी, भूरे, हल्के हरे रंग के पत्तों से सजी डालियां गुजरती हुए वाहनों की रफ्तार से झूमती नजर आती हैं। हर गुजरते दिन में इन पेड़ों की रंगत अलग ही निखरती है। इसलिए इन राहों से गुजरने का अनुभव काफी खास है। उगते सूरज की किरणों के बीच पत्तियों की चमक और सुर्ख नजर आती है।