वाहन चालकों की मनमानी के आगे ट्रैफिक पुलिस भी लाचार
बगहा। यद्यपि यहां अलग से ट्राफिक पुलिस की व्यवस्था नहीं है। जिला पुलिस के जवान व अधिकारियों को व्यस्त चौराहों पर ड्यूटी लगाई जाती है।
बगहा। यद्यपि यहां अलग से ट्राफिक पुलिस की व्यवस्था नहीं है। जिला पुलिस के जवान व अधिकारियों को व्यस्त चौराहों पर ड्यूटी लगाई जाती है। लेकिन ये लोग वाहन चालकों की मनमानी के आगे लाचार हो जाते हैं। अगर सख्ती करें तो रोज यहां मारपीट होगी। इस लिए ट्राफिक पुलिस में तैनात जवान व अधिकारी मौन धारण किए रहते हैं। रविवार को एक ट्रक चालक की दबंगई स्टेट बैंक चौराहे पर दिखी। ट्राफिक की व्यवस्था सुचारु करने के लिए तैनात हां हां कर रहा था। लेकिन ट्रक चालक ने उसकी एक नहीं सुनी। नियम का उल्लंघन कर ट्रक आगे कर दिया। वह चीन मिल से गन्ना की आपूर्ति कर आ रहा था। इस बीच एक टेंपो वाला भी गलत साइड से आकर घुस गया। वहीं पीछे से एक बस चालक लगातार हार्न बजा रहा था। ट्रक व टेंपो चालक की मनमानी के कारण लोग करीब एक घंटे तक जाम में फंसे रहे। नाबालिग बच्चों को खुली छूट लोग बेखौफ होकर सड़कों पर दौड़ भाग तो करते ही हैं। होने वाली दुर्घटना से भी बेखौफ हो चुके हैं। इसमें बहुत हद तक प्रशासन को दोषी माना जा सकता है लेकिन परिजन भी कम दोषी नहीं हैं। जो अपने बच्चों को बिना सड़क के नियम बताए या वैसे बच्चे को जिसको सड़क पर चलने का नियम भी होता है इसका ज्ञान नहीं है और उसको सड़क पर छोड़ देते हैं। हम बात कर रहे हैं सड़क पर होने वाली दुर्घटनाओं के प्रति जवाबदारी की। लेकिन इसके प्रति जवाबदारी जानने के लिए सबसे पहले जरूरत है हमें जागरूक होने की। अगर हम सड़क के नियम के प्रति जागरूक रहेंगे तो सड़क पर होने वाली दुर्घटना में कमी आएगी। प्रचार के लिए लगे बोर्ड बेकार सरकार के द्वारा सड़कों पर स्लोगन लिखे बोर्ड तो मिल जाते हैं लेकिन सड़क के प्रति जागरूकता के लिए कोई उल्लेखनीय पहल नहीं किया गया है। अक्सर ऐसा देखने में आता है कि लोग अपने छोटे बच्चों को रोड के किनारे से कोई सामान लाने भेज देते हैं, या बहुत ऐसे भी अभिभावक हैं जो पैसा बचाने के चक्कर में अपने नादान बच्चों को साइकिल देकर विद्यालय भेज रहे हैं। जिसे खुद पता नहीं है कि सामने से अगर कोई बड़ी वाहन आए तो क्या करना है । वैसे बच्चे भी सड़क पर साइकिल चलाते या पैदल घूमते दिख जाते हैं। जबकि छोटे बच्चों को सड़क पर भेजना खतरनाक है। पिता की चूक से बेटा हो गया दिव्यांग
बगहा एक प्रखंड के पतिलार निवासी विजय कुशवाहा कहते है कि एक बार उनका बेटा गांव के ही सड़क पर खेल रहा था जिसे देख कर भी वे रोक नहीं पाए और देखते ही देखते बच्चा एक बैलगाड़ी के नीचे आ गया और वह अपने दोनों पैरों से हाथ धो बैठा। उसकी वह घटना आज तक मेरी रूह को झकझोर कर देती है। बच्चे को देखकर श्री कुशवाहा भावुक हो जाते हैं लेकिन आज वह कुछ नहीं कर सकते हैं। क्या कहते हैं वुद्धिजीवी
सरकार की ओर से आपकी यात्रा मंगलमय हो, यातायात नियमों का पालन करें आदि लिखा स्लोगन वाला बोर्ड रोड के किनारे लगा दिया जाता है लेकिन उसके पालन करने या उसके प्रति जागरूकता हेतु कोई अभियान नहीं चलाया जाता है। लोगों में सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूकता की कमी है।
अमरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव सेवानिवृत शिक्षक, सड़क किनारे बोर्ड लगाकर सरकार फर्ज अदायगी कर देती है। नाबालिग बच्चे वाहनों का परिचालन कर रहे है। कभी कभी जांच अभियान चलाया जाता है। लेकिन उसमें लोग जुर्माना देकर छूट जाते हैं। कड़ा अर्थ दण्ड लगाने की आवश्कता है। लोगों को जागरूक करने की जरूरत है।
डॉ. रविकेश मिश्र , साहित्यकार