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सिद्धपीठ पटजिरवा देवी माईस्थान

बेतिया। जिला मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर पश्चिम पटजिरवा माईस्थान सिद्धपीठ के रूप में जाना जाता है। यह स्थान उदयपुर जंगल के समीप तथा गंडक नदी के तट पर अवस्थित है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 29 Sep 2019 11:17 PM (IST)Updated: Mon, 30 Sep 2019 06:30 AM (IST)
सिद्धपीठ पटजिरवा देवी माईस्थान

बेतिया। जिला मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर पश्चिम पटजिरवा माईस्थान सिद्धपीठ के रूप में जाना जाता है। यह स्थान उदयपुर जंगल के समीप तथा गंडक नदी के तट पर अवस्थित है। श्रद्धा, आस्था, विश्वास, भक्ति एवं शक्ति की प्रतिमूर्ति सिद्धपीट पटजिरवा देवी मां की चौखट पर माथा टेकने के लिए प्रतिवर्ष लाखों लोग आते हैं। न सिर्फ जिले के ही बल्कि सूबे, उत्तरप्रदेश, देश-विदेश सहित पड़ोसी देश नेपाल के भक्त भी मां के दर्शन को आते है। उनकी पूजा अर्चना करते है। प्रसाद स्वरूप मां उनकी हर मनोकामनाएं पूरी करती है। यहां नर एवं मादा के रुप में पीपल का पेड़ विराजमान है। जानकार बताते है कि यह अनोखा ²श्य दूसरे किसी स्थान पर देखने को नहीं मिलता है। नतीजतन यहां पूरे वर्ष श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।

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इनसेट

मंदिर का इतिहास

पटजिरवा देवी स्थान की उत्पत्ति में कई मान्यताएं है। प्रमुख मान्यताओं में माता सीता भगवान श्रीराम के साथ परिणय सूत्र में बंधने के बाद अयोध्या के लिए जा रही थी। तब माता सीता ने राजा जनक द्वारा उनके विश्राम के लिए बनाये पड़ाव पर रूकने की बजाय अपनी डोली यहां रखवा दिया था। माता डोली का पट खोलकर अपने पवित्र चरण जिस भूमि पर रखी वहीं माता का स्थान बन गया। कालांतर में उसी स्थान पर दो पीपल के पेड़ों के बीच देवी पिड स्वत: धरती के गर्भ से निकला। यहीं कारण है कि कुछ लोग पटजिरवा माईस्थान को सिद्धपीठ के नाम से पूजते हैं। दूसरी मान्यता यह है, कि नेपाल जब अस्तित्व में आया तो उसके प्रारंभिक शास्त्रों में किसी शासक की रानी का लगातार तीन बार गर्भ गिर गया है और उन्हें चिता सताने लगी। विद्वानों की राय पर वे पटजिरवा माई स्थान पहुंची और 151 दिनों का सर्वशक्ति चंडी महायज्ञ का आयोजन किया। तब उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। चूंकि यज्ञ के क्रम में पुत्र पैदा हुआ और स्वस्थ रहा। इसलिए औरतें सोहर गीत में उस लड़के को आशीर्वाद में पट में जीय कहकर गीत गाती थी। तब देखते ही देखते पट स्थान का नाम पटजिरवा पड़ गया। चूंकि पटस्थान में राजा का पुत्र जी गया। इसलिए इस स्थान का नाम पटजीया पड़ गया, जो बाद में पटजिरवा हो गया।

इनसेट

कैसे जाए मंदिर

बेतिया स्टेशन से श्रद्धालु आसानी से पटजिरवा माई स्थान पहुंच सकते है। बस स्टेशन से 20 किलोमीटर की दूरी तय कर श्रद्धालु माता के दरबार में पहुंच सकते हैं। इसके लिए टेम्पो की सुविधा भी उपलब्ध है। श्रद्धालु को बस इतना ही बताना है कि उन्हें पटजिरवा सिद्धपीठ स्थान से जाना है।

तैयारी

वैसे तो यहां सालोंभर माता के दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। मगर शारदीय व बासंतिक नवरात्र में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ जुटती है। नवरात्र पर यहां भव्य मेला का भी आयोजन भी होता है। जो इस वर्ष भी किया जा रहा है। इनसेट बयान

यहां मंदिर निर्माण वर्जित है। मगर यहां आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु की मुरादें पूरी होती है। यहां शारदीय व वासंतिक नवरात्र में भी यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। यहां सच्चे मन से पूजा अर्चना करने वालों को मन की हर इच्छा पूरी होती है। खासकर जिस दंपती को पुत्र प्राप्ति नहीं होती है उनकी भी यहां माता इच्छा पूर्ण करती है।

लालबाबू मिश्र, पुजारी

श्रद्धा, आस्था, विश्वास, भक्ति एवं शक्ति की प्रतिमूर्ति पटजिरवा देवी माता के चौखट पर माथा टेकने के लिए प्रतिवर्ष लाखों लोग आते हैं। जो कभी खाली हाथ नहीं जाते हैं। माता काफी भक्त वत्सल है। माता के सिद्धपीठों में से यह एक है।

सुनील दूबे, प्राचार्य


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