चंपारण तटबंध पर रैन कट की मरम्मत नहीं, धड़कनें बढ़ी
बैरिया प्रखंड क्षेत्र के दियारावर्ती इलाके में जब कभी आसमान में बादल उमड़ते-घुमड़ते हैं तो लोगों धड़कनें तेज हो जाती हैं।
बेतिया। बैरिया प्रखंड क्षेत्र के दियारावर्ती इलाके में जब कभी आसमान में बादल उमड़ते-घुमड़ते हैं तो लोगों धड़कनें तेज हो जाती हैं। बांध के किनारे बसे लोग आज भी उस दिन को याद कर सिहर उठते हैं जब बाढ़ ने अपना तांडव दिखाया था। चंपारण तटबंध की मरम्मत नहीं कराए जाने को लेकर दियारावर्ती इलाका के लोगों की ¨चता बढ़ गई है। बाढ़ आने के पहले चंपारण तटबंध के मरम्मत का कार्य आपदा प्रबंधन के पदाधिकारियों द्वारा शुरू नहीं किया गया है। ग्रामीणों का कहना है कि बाढ़ से पूर्व चंपारण तटबंध की मरम्मत का कार्य नहीं कराया जाता है और जब बाढ़ आ जाती है तो आपदा प्रबंधन के पदाधिकारी बाढ़ के समय चंपारण तटबंध की मरम्मत कराने चलते हैं उस समय पानी का उफान अधिक होता है उस समय जियो बैग और सीमेंट के बोरा में बालू भरकर रैनकट पर भरा जाता है, जिससे सिर्फ सरकारी राशि का दुरुपयोग होता है। उन लोगों ने आरोप लगाया कि जब पानी का उफान अधिक होता है तो उस समय कितना जियो बैग और कितना सीमेंट के बोरे में बालू भरकर नदी में गिराया जाता है। इसका सही अंदाज नहीं लग पाता है पदाधिकारियों के तालमेल में लेकर संवेदक मालामाल हो जाते हैं। उससे चंपारण तटबंध पर बहुत असर नहीं पड़ता है। बैरिया प्रखंड के एक पंचायत बैजुआ पूर्ण रूप से गंडक नदी की गोद में है और बाकी कुछ पंचायत का अंश जैसे बथना, लौकरिया, दक्षिण पटजिरवा बाढ़ से प्रभावित हो जाती है। उस समय यहां के लोगों की धड़कन बहुत ही तेज हो जाती है। चंपारण तटबंध में घोड़इया से लेकर आसाराम पटखौली तक कई जगह बांध की स्थिति जर्जर हो गई है जिससे लोगों को ¨चता बनी हुई है। जब बाढ़ के समय पानी का उफान आएगा तो चंपारण तटबंध टूट सकता है जिससे हजारों परिवार सहित जान माल पर संकट आ सकती है। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि अगर बाढ़ आने से पूर्व आपदा प्रबंधन के पदाधिकारियों के द्वारा बांध का सर्वेक्षण करके और बांध का कार्य पूर्ण रुप से पूरा कर लिया जाए। बाढ़ के समय पानी के उफान आने से चंपारण तटबंध को खतरे से बचाया जा सकता है और हजारों परिवार सहित जानमाल की सुरक्षा प्रदान किया जा सकता है और अगर चंपारण तटबंध का पक्कीकरण करा दिया जाए। बांध को पानी के दबाव से टूटने की संभावना खत्म हो जाएगी और लोग भी सुरक्षित रहेंगे। वहीं, लगभग दो दशक से चंपारण तटबंध पर रैन बसेरा की तरह जीवन बिता रहे भूमिहीनों को अभी तक प्रशासन द्वारा वास्तविक भूमि नहीं उपलब्ध कराया गया है। इस संबंध में आपदा प्रबंधन के एसडीओ से प्रतिक्रिया लेने पर उन्होंने बताया कि कोइरपट्टी आसाराम और घोडुइया में जियो बैग एवं सीमेंट के बोरे में बालू भरकर रखने का कार्य किया जा रहा है।