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राज देवड़ी गढ़ी मंदिर को आज भी है पर्यटन स्थल बनने का इंतजार

ग्रामीण भारत के पास लोगों को देने के लिये बहुत कुछ है। इन क्षेत्रों की पहचान करने और इस क्षेत्र में पर्यटन की संभावनाएं खोजने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के एकजुट प्रयासों की आवश्यकता है। देश में ग्रामीण पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिये यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। ऐसा करने पर ही ग्रामीण पर्यटन का विस्तार और विकास हो सकता है। आमतौर पर लोग फुर्सत के समय यात्राएं और नए स्थान ढूंढने के लिए करते हैं। परन्तु लक्ष्य का चयन करने में समय और खर्च की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। व्यस्त पर्यटक मौसम के दौरान परम्परागत पर्यटक स्थलों पर आमतौर पर भारी भीड़ होती है। आज अधिकतर समाज शहरीकृत हो चुका है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 26 Sep 2019 12:56 AM (IST)Updated: Thu, 26 Sep 2019 06:33 AM (IST)
राज देवड़ी गढ़ी मंदिर को आज भी है पर्यटन स्थल बनने का इंतजार
राज देवड़ी गढ़ी मंदिर को आज भी है पर्यटन स्थल बनने का इंतजार

हरनाटांड़। ग्रामीण भारत के पास लोगों को देने के लिये बहुत कुछ है। इन क्षेत्रों की पहचान करने और इस क्षेत्र में पर्यटन की संभावनाएं खोजने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के एकजुट प्रयासों की आवश्यकता है। देश में ग्रामीण पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिये यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। ऐसा करने पर ही ग्रामीण पर्यटन का विस्तार और विकास हो सकता है। आमतौर पर लोग फुर्सत के समय यात्राएं और नए स्थान ढूंढने के लिए करते हैं। परन्तु, लक्ष्य का चयन करने में समय और खर्च की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। व्यस्त पर्यटक मौसम के दौरान परम्परागत पर्यटक स्थलों पर आमतौर पर भारी भीड़ होती है। आज अधिकतर समाज शहरीकृत हो चुका है। ऐसे में ग्रामीण पर्यटन शहरी आबादी के बीच निरन्तर लोकप्रिय हो रहा है। इसी में से एक है वाल्मीकिनगर। जो आज पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो रहा है। लेकिन वाल्मीकिनगर से करीब 20 किलोमीटर पहले नौरंगिया स्थित वीटीआर के घने जंगल में बसा राजगढ़ी मंदिर आज भी अपनी पहचान को तरस रहा है। जहां ग्रामीण पर्यटन का विस्तार हो सकता है। बगहा दो प्रखंड के नौरंगिया दरदरी पंचायत के नौरंगिया स्थित राज देवड़ी गढ़ी मंदिर अपने अंदर भारत और नेपाल दो देशों के इतिहास के कई राज समेटे हुए है। यहां कई किलोमीटर लंबी सुरंग है, जो कहां निकलती है कोई नहीं जानता। इसके अलावा 52 गांव का एक समूह था जो कभी दरबार के नाम से जाना जाता था। ये गांव आज दफन हो चुके हैं। लेकिन इनके अवशेष और पुख्ता प्रमाण आज भी मिलते हैं। कहा जाता है कि छठी शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग यहां आए थे। उन्होंने यहां की संपन्नता का जिक्र अपनी किताब में भी किया है। कुएं में करीब 10 फीट नीचे से दोनों और सुरंग : राजगढ़ी मंदिर परिसर में अवस्थित कुएं में करीब 10 फीट नीचे से दोनों और सुरंग निकलती है। यदि इस मंदिर का उत्खनन कराया जाए तो कई रहस्य से पर्दा उठ सकता है। नौरंगिया निवासी समाजसेवी दिलीप कुमार राणा कहते हैं कि जिस स्थल पर यह मंदिर अवस्थित है, उसके आसपास के करीब 50 किलोमीटर के दायरे में चौथी शताब्दी में 52 गांव आबाद हुआ करते थे। इसलिए इस स्थल को 52 गढ़ी के नाम से भी जाना जाता था। 18वीं शताब्दी के अंत में सुगौली संधि से पूर्व तक का यह हिस्सा नेपाल के बुटवल नरेश के अधीन था। लेकिन संधि के बाद यह भारत के अधीन आ गया। बताते चलें कि जंगल के बीच बसे राजगढ़ी एक पर्यटन स्थल के रूप में आबाद हो सकता है। आज भी लोग जब यहां की कहानियां और रहस्यमयी सुरंगों के बारे में सुनते हैं तो यहां घूमने जरूर आते हैं। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इतने रहस्यों को समेटे इस जगह को आजतक सरकारी पहचान नहीं मिल पाई है। जिसका रिश्ता कन्नौज से जुड़ता है। जो जगह एक समय पृथ्वीराज चौहान और मो. गौरी के बीच हुए युद्ध के बाद हिदुओं के पलायन के बाद हिदुओं की शरणस्थली बनी उसे आज तक पर्यटन स्थल के रूप में घोषित नहीं किया जाना निश्चित ही निराशाजनक है। कहते हैं गण्यमान्य राजगढ़ी बगहा और चंपारण की ही नहीं बल्कि देश की धरोहरों में से एक है। जिसका रिश्ता पृथ्वीराज चौहान से जुड़ता है, जहां कई रहस्य आज भी दफन हैं। उसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित नहीं किया जाना निश्चित ही दुर्भाग्यपूर्ण है। हमलोग अपने स्तर से इसे पर्यटन स्थल के रूप में प्रयासरत हैं।

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दीलीप कुमार राणा, समाजसेवी नौरंगिया बगहा हमारे पंचायत में अवस्थित राजगढ़ी मंदिर जो कभी कन्नौज से पलायन करने वाले हिदुओं की शरणस्थली बनी थी। जहां कई राज दफन है, उसे ग्रामीण पर्यटन स्थल के रूप में घोषित करना चाहिए। ताकि लोग यहां के रहस्यों से रूबरू हों और अपने संस्कृति से जुड़ सकें। इसे ग्रामीण पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किये जाने के लिए स्थानीय विधायक से चर्चा की गई है।

बिहारी महतो, मुखिया नौरंगिया दरदरी पंचायत वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के मदनपुर वन क्षेत्र के घने जंगल में अवस्थित राज गढ़ी मंदिर का कुल रकबा करीब पांच एकड़ दस डिसमिल है। यहां के मंदिर अवस्थित राजगढ़ी माता के प्रति लोगों में असीम श्रद्धा है। यह पौराणिक स्थल अपने अंदर दो दो देशों के रहस्यों को सहेजे हुए है। इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के क्षेत्र में सरकार को प्रयास किया जाना चाहिए।

महेश्वर काजी, समाजसेवी नौरंगिया कहते हैं विधायक.. राजगढ़ी को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए प्रयास किया जा रहा है। इस संबंध में पदाधिकारियों व सम्बंधित मंत्री से भी संपर्क किया जा रहा है। ताकि वाल्मीकिनगर में आने वाले पर्यटक इस जगह का भी आनंद उठाए और यहां से जुड़े रहस्यों से अवगत हो सकें। हालांकि कुछ समय पहले राजगढ़ी सुरंग उत्खनन के लिए सरकार से पत्राचार किया गया है। आश्वासन भी मिला है। उत्खनन से निश्चित रूप से नई बातें सामने आएंगी।

धीरेंद्र प्रताप सिंह उर्फ रिकू सिंह

विधायक, वाल्मीकिनगर विस


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