सार्वजनिक शौचालय बदहाल, कदम-कदम पर गंदगी का अंबार
शहर की स्वच्छता और सौंदर्यीकरण में घरों के टॉयलेट और सुलभ शौचालय काफी महत्वपूर्ण स्थान है। सुलभ शौचालयों की समुचित व्यवस्था होने का असर शहर की सफाई पर भी पड़ती है। लेकिन आबादी बढ़ने के बाद भी बेतिया में सुलभ शौचालय की संख्या काफी कम है। कुछ सुलभ शौचालय तो कब का धंस चुके हैं जिनका इस्तेमाल अब संभव नहीं।
बेतिया । शहर की स्वच्छता और सौंदर्यीकरण में घरों के टॉयलेट और सुलभ शौचालय काफी महत्वपूर्ण स्थान है। सुलभ शौचालयों की समुचित व्यवस्था होने का असर शहर की सफाई पर भी पड़ती है। लेकिन आबादी बढ़ने के बाद भी बेतिया में सुलभ शौचालय की संख्या काफी कम है। कुछ सुलभ शौचालय तो कब का धंस चुके हैं, जिनका इस्तेमाल अब संभव नहीं। कलेक्ट्रेट चौक, एसपी कार्यालय सहित कुछ जगहों के सुलभ शौचालय को छोड़कर अन्य की स्थिति काफी खराब है। गंदगी और बदबू के कारण यहां जाने से लोग परहेज करते हैं। नतीजा जरूरत पड़ने पर शहर के कई लोग सड़क किनारे ही मल-मूत्र त्यागने को विवश है। जिस कारण शहर में गंदगी फैलती रहती है। शहर के कई इलाके में सड़क किनारे आज भी मल मूत्र और गंदगी दिख जाती है। नगर के कई मुहल्ले ऐसे हैं जहां लोग घरों में शौचालय टंकी नहीं बनाए हैं और मल मूत्र को नाली में ही गिरा देते हैं। इसका असर सफाई पर भी पड़ता है। इस स्थिति में हम स्वच्छता रैंकिग में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद नहीं कर सकते। राष्ट्रीय स्वच्छता रैंकिग 2021 में बेतिया का पिछड़ने का एक बड़ी वजह मल मूत्र का सही निस्तारण का अभाव और सुलभ शौचालयों की कमी भी है। शहर के बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों का कहना है कि स्वच्छता सर्वेक्षण रैंकिग में अगर इंदौर लगातार पांचवीं बार टॉप पर है तो इसका कारण वहां की सफाई व्यवस्था भी है। जिसका बेतिया में अभाव दिखता है। अगर हमें स्वच्छता रैंकिग में ऊपर जाना है तो सफाई व्यवस्था पर फोकस करना होगा। सुलभ शौचालयों की संख्या बढ़ानी होगी।
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नगर निगम बनते ही बढ़ी है आबादी
नगर परिषद से नगर निगम बनते ही शहर की आबादी बढ़ गई है। नगर परिषद में शहर की आबादी करीब डेढ़ लाख थी, जो बढ़कर अब 2,41,442 हो गई है। लेकिन इस अनुपात में सुविधाएं नहीं बढ़ी है। शहर में कुछ ही जगहों पर सुलभ शौचालय है। कुछ वर्ष पहले शहर में कई जगहों पर नए सुलभ शौचालय निर्माण का मुद्दा उठा था। लेकिन अभी यह कागजों में ही अटका है। शहर में करीब आधे दर्जन स्थान पर सुलभ शौचालय निर्माण के मामले अब तक अटके पड़े हैं। नगर निगम बनने के बाद शहर की आबादी बढ़ी है, जिस अनुपात में सुलभ शौचालयों की जरूरत है। फिलहाल बोर्ड भंग होने के कारण कई योजनाओं के चयन और स्वीकृति नहीं हो पा रही है। सुलभ शौचालयों की कोई वैकल्पिक रास्ता तलाशी जा रही है।
लक्ष्मण प्रसाद, नगर आयुक्त, नगर निगम, बेतिया।
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स्वच्छता प्रहरी :
बचपन से ही मुझे साफ सफाई के साथ रहने की सीख मिली है। इस कारण सदैव सफाई के प्रति तत्पर रहता हूं। सफाई के लिए हर संभव प्रयास और मदद करता हूं। निवर्तमान सभापति गरिमा देवी सिकारिया के असंवैधानिक तरीके से पदच्युत होने का असर शहर की सफाई पर भी पड़ा है। जिस कारण स्वच्छता रैंकिग में बेतिया पिछड़ गया है। स्वच्छता रैंकिग में बेहतर प्रदर्शन के लिए मैं सदैव काम करता रहूंगा।
नवेंदु चतुर्वेदी, समाजसेवी, बेतिया।