पानी के साथ शरीर की सुरक्षा के लिए खेलें गुलाल से होली
बगहा। हरनाटांड़ होली रंगों का त्योहार है। उमंग व उत्साह से लोग पर्व मनाते हैं। हालांकि लोग अब धीरे धीरे सुखी होली की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
बगहा। हरनाटांड़, होली रंगों का त्योहार है। उमंग व उत्साह से लोग पर्व मनाते हैं। हालांकि लोग अब धीरे धीरे सुखी होली की ओर आकर्षित हो रहे हैं। लोगों का मानना है कि होली को रंगीन बनाना चाहिए। लेकिन, रंग व पेंट की जगह अबीर गुलाल लगाकर सूखी होली बेहतर ढंग से उत्साह व उमंग के साथ मनाया जा सकता है। इसके अलावा बेसन, मैदा व हल्दी मिलाकर अबीर बनाकर होली खेला जा सकता है। इससे पानी की बर्बादी कम होगी और पर्यावरण का बचाव होगा। रंगो का त्योहार होली पर पानी के दुरुपयोग रोकने के लिए सूखी होली की परंपरा अपनाना जरूरी हो गया है। होली पर रंगों से छुटकारा के लिए चार गुणा पानी का खर्च बढ़ जाता है। गुलाल के साथ सूखी होली मना कर पानी की बचत करना होगा। समय के साथ सभी क्षेत्रों में जल संकट की समस्या गंभीर बनती जा रही है। तालाब और कुआं सूख जाते हैं, तो चापाकल पानी देना छोड़ देता है। कई हिस्से में लोग पानी के लिए तरसने लगते हैं। जल के बगैर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए जल के महत्व को देखते हुए सूखी होली के महत्व को समझना होगा। अबीर के साथ भी होली को बनाए रंगीन : हरनाटांड़ के युवा व्यवसायी सुशील कुमार मिश्रा का कहना है कि रंगों का प्रयोग कम हो तो पानी की बर्बादी नहीं होगी। वर्तमान समय में भीषण जलसंकट को देखते हुए सूखी होली ही खेलनी चाहिए। कहा कि इस बार होली मिलन समारोह में भी दोस्तों को सूखी होली के लिए प्रोत्साहित करेंगे। साथ ही पर्यावरण की रक्षा के लिए होलिका दहन में हरे पेड़ों की कटाई को रोकेंगे और होली के दिन पौधरोपण करेंगे। अधिवक्ता दीपक कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि जलसंकट को देखते हुए लोगों से सूखी होली खेलने की अपील की और कहा कि पानी अनमोल है। सूखी होली से पानी की बर्बादी कम होगी। अबीर के साथ भी होली को रंगीन बनाया जा सकता है। कहा कि केमिकल युक्त रंग व कीचड़ का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसका स्कीन पर गलत असर पड़ता है। आंखों को रंग से अवश्य बचाना चाहिए। आंख पर रंग का प्रभाव काफी नुकसानदेह साबित हो सकता है। शत्रुघ्न प्रसाद कहते हैं कि होली पर रंग से सने कपड़ों की सफाई, स्नान के अलावा टब में रंग घोलने पर पानी के भारी खर्च को रोकने के लिए सूखी होली की परंपरा अपनाना निहायत जरूरी है। पानी का दुरुपयोग रोकने के लिए लोगों को आगे लाना होगा। समय के मांग के साथ सूखी होली की परंपरा को अपनाना होगा। मैं अपने परिवार के लोगों और दोस्तों को सुखी होली के लिए प्रेरित करुंगा। हरनाटांड़ के चिकित्सक डॉ. प्रेमनारायण प्रसाद कहते हैं कि होली में प्रयोग किए जाने वाला वर्तमान रंग त्वचा एवं स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। पहले होली में टेसू के फूल तथा अन्य पौधों के भागों से बने रंग का उपयोग किया जाता था। परंतु अब उपयोग किए जाने वाला रंग में हानिकारक रसायन मौजूद होते हैं। अगर होली में इन रंगों का प्रयोग न करें तो शायद स्वास्थ्य के साथ-साथ जीवनदायी जल का भी संचय हो सकेगा। इसलिए सूखी होली के महत्व को अब समझना होगा और इसे अपनाना होगा।