Move to Jagran APP

20 सितंबर से शुरू होगा पितृपक्ष, तर्पण से प्रसन्न होते हैं पूर्वज

बगहा । हिदू धर्म में त्योहारों की एक लंबी सूची है। मानव जीवन में प्रत्येक त्योहार की अपनी महत्ता है इसमें किसी को महत्ता को कम नहीं आंका जा सकता है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 15 Sep 2021 11:37 PM (IST)Updated: Wed, 15 Sep 2021 11:37 PM (IST)
20 सितंबर से शुरू होगा पितृपक्ष, तर्पण से प्रसन्न होते हैं पूर्वज
20 सितंबर से शुरू होगा पितृपक्ष, तर्पण से प्रसन्न होते हैं पूर्वज

बगहा । हिदू धर्म में त्योहारों की एक लंबी सूची है। मानव जीवन में प्रत्येक त्योहार की अपनी महत्ता है, इसमें किसी को महत्ता को कम नहीं आंका जा सकता है। महिलाओं के लिए पति, पुत्र-पुत्री सहित परिवार की खुशहाली सहित तमाम मनोरथ पूर्ति के लिए अलग अलग त्योहार बनाए गए हैं। सभी के लिए नियम व विधि भी भिन्न प्रकार से है। वहीं पुरुषों के लिए भी कई त्योहार हैं। जिसमें पितृ पक्ष का सबसे अहम स्थान है। इसमें हर व्यक्ति अपने पिता सहित मृत उन तमाम पूर्वजों की पूजा करता है जो स्वर्गलोक में भगवान की श्रेणी में स्थापित हैं। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक के 16 दिनों को पितृपक्ष कहा जाता है। पूर्वजों की तृप्ति के लिए पिडदान व तर्पण किया जाता है। भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष का त्योहार आरंभ होता है। यह भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक होता है। इस समयावधि में सभी लोग अपने पूर्वजनों की पूजा कर सुख-समृद्धि का आशीष मांगते हैं। मान्यता है हाथ में कुश के साथ तिल व जौ मिश्रित जल से तर्पण, पिडदान, श्राद्ध कर्म आदि किए जाते हैं। क्यों होता है पिडदान व तर्पण : माता-पिता को देव तुल्य माना गया है। हिदू धर्म शास्त्रों में पितरों के उद्धार करने के लिए पुत्र की अनिवार्यता मानी गई है। पितृपक्ष में तर्पण व पिडदान से व्यक्ति पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है। कहा जाता है कि ऐसा नहीं करने वाला व्यक्ति पितृदोष का भागी बन जाता है। पितरों की आत्म तृप्ति से व्यक्ति पर पितृ दोष नहीं लगता है। पिडदान व तर्पण करने वाले के परिवार की निरंतर उन्नति होती है और पितरों के आशीष से वंश वृद्धि होती है। अगर किसी व्यक्ति पर पितृ दोष है तो उससे मुक्ति के लिए इस अवधि में उचित पूजा आदि का विधान है। जिससे कोई भी व्यक्ति पितृ दोष से आसानी से मुक्त हो जाता है। पितृ पक्ष 2021 आचार्य पंडित डॉ. अशोक कुमार मिश्रा ने बताया कि इस वर्ष पितृ पक्ष का प्रारंभ 20 सितंबर सोमवार से हो रहा है, जो 16 दिनों तक रहेगा। इसका समापन छह अक्टूबर बुधवार को होगा। इस अवधि में पूर्णिमा श्राद्ध, महा भरणी श्राद्ध और सर्व पितृ अमावस्या का विशेष महत्व होता है। इन दो दिनों में वैसे सभी लोग अपने पिता व पूर्वजों का तर्पण व पिडदान कर सकते हें जिनको किसी कारणों से अपने पिता की मृत्यु तिथि याद नहीं है। शास्त्रों में वर्णित तथ्यों के अनुसार अश्विन कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या तक ब्रम्हांड की ऊर्जा के साथ पितृप्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। धार्मिक ग्रंथों में मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति का वैज्ञानिक विवेचन मिलता है। कहा गया है कि मृत्यूुके बाद दसग्रात्र और षोडशी-सपिडन तक मृत व्यक्ति की संज्ञा प्रेत की रहती है। पुराणों के अनुसार वह सूक्ष्म शरीर जो आत्मा भौतिक शरीर छोड़ने पर धारण करती है वह प्रेत होती है। प्रिय के अतिरेक की अवस्था ही प्रेत है, क्योंकि आतमा सूक्ष्म शरीर धारण करती है तब भी उसके अंदर माया, मोह, भूख और प्यास का अतिरेक होता है। ऐसा माना जाता है कि सपिडन के बाद वह प्रेत पितरों में सम्मिलित हो जाता है।

loksabha election banner

शास्त्रों में वर्णित तथ्यों के अनुसार पितृपक्ष की अवधि में जो तर्पण किया जाता है उससे पितृप्राण स्वयं आप्यापित होता है। पुत्र या उसके नाम से उसका परिवार जौ या चावल के आटा से पिड देता है उसका अंश लेकर वह अंभप्राण का ऋण चूका देता है। धार्मिक व वैज्ञानिक विधाओं में ऐसी मान्यता है कि आश्विन कृष्णपक्ष से वह चक्र उ‌र्ध्वमुख होने लगता है तथा 15 दिनों तक अपना अपना भाग लेकर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से उसी ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ पितर वापस चले जाते हैं। इसी कार्यक्रम को लेकर इस अवधि को पितृपक्ष कहा जाता है। इस अवधि में किया गया श्राद्ध कर्म, पिडदान या तर्पण सीधा पितरों को प्राप्त होता है। पुराणों में इसको लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं जिसमें कर्ण के पुनर्जन्म की कथा काफी प्रचलित है। हिदू धर्म में सर्वमान्य ग्रंथ रामचरित मानस में श्रीराम के द्वारा अपने पिता दशरथ व जटायु को गोदावरी नदी के तट पर जलांजलि देने का उल्लेख है। साथ ही भरत के द्वारा पिता दशरथ के दसग्रात्र क्रिया का विधानपूर्वक उल्लेख तुलसी रामायण में किया गया है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.