Move to Jagran APP

एक गांव ऐसा भी जहां की महिलायें पानी लाने जाती हैं दूसरे देश, जानिए

बिहार का एक गांव ऐसा भी है जहां के लोग पानी लाने के लिए सीमा पार कर दूसरे देश जाते हैं। यहां के लोगों की दिनचर्या में यह शुमार हो चुका है।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Sat, 23 Jun 2018 07:05 PM (IST)Updated: Sun, 24 Jun 2018 08:04 PM (IST)
एक गांव ऐसा भी जहां की महिलायें पानी लाने जाती हैं दूसरे देश, जानिए

पश्चिमी चंपारण [प्रभात मिश्र]। यह कहानी है बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के नरकटियागंज के भिखनाठोरी गांव की है, जहां की दिनचर्या पानी ढोने से शुरू होती है। प्रतिदिन डेढ़ किलोमीटर की दूरी तय कर ग्रामीण नेपाल के ठोरी गांव से पीने का पानी लाते हैं। गांव से सटी पंडई नदी बहती है, जिसके पानी का उपयोग ग्रामीण अन्य दैनिक कार्यों में करते हैं। पिछले डेढ़ सालों से 1200 की आबादी यह समस्या झेल रही है।

loksabha election banner

इससे पहले प्रशासन नरकटियागंज से टैंकर के जरिए गांव में पानी सप्लाई करता था। इसे इसलिए बंद कर दिया गया, क्योंकि पेयजल सुविधा मुहैया कराने के लिए लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग (पीएचईडी) ने दो सोलर आधारित वाटर पंप लगवा दिए। एक कुछ ही दिनों में बंद हो गया, जबकि दूसरे से लाल पानी आता है, जो उपयोग लायक नहीं।

पहाड़ से कम नहीं पानी की समस्या

नेपाल सीमा पर बसा पश्चिम चंपारण जिले का अंतिम गांव भिखनाठोरी। गौनाहा प्रखंड के पहाड़ी इलाके में बसे इस गांव के 200 घरों की तकरीबन 1200 आबादी की समस्याएं किसी पहाड़ से कम नहीं हैं। दिनचर्या पानी की चिंता से शुरू होती है। सुबह होते ही महिला व पुरुष पानी लेने चल पड़ते नेपाल की ओर। रास्ते में पंडई नदी पड़ती है, जिसे पार कर वे नेपाल के ठोरी गांव पहुंचते हैं। यहां पहाड़ से पानी रिसता रहता है। सुविधा के लिए ग्रामीणों ने गड्ढे के बीच एक प्लास्टिक की पाइप डाल रखी है, जिससे पानी गिरता है। पानी लाने में ग्रामीणों का रोजाना डेढ़ से दो घंटे जाया होता है। एक परिवार के दो सदस्य करीब 25-25 लीटर पानी लाते हैं।

ग्रामीणों ने कहा कि जिंदगी बन गई नरक

गांव की पूर्व वार्ड सदस्य धनु उरांव और चंद्रावती देवी का कहना है कि जिंदगी नरक बन गई है। विवशता में प्यास बुझाने के लिए ठोरी जाना पड़ता है। बरसात में पंडई में दो से ढाई फीट पानी होने से उसे पार करना मुश्किल होता है। तब इसके पानी का ही उपयोग पीने में करना पड़ता है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से नुकसानदायक है। सीमावर्ती दोनों गांवों में जब कभी किसी विवाद के कारण आवाजाही बंद होती है, तब भी नदी का पानी ही काम आता है।

काम नहीं करते दो सोलर वाटर पंप

गांव में दो जगह सोलर आधारित वाटर पंप की व्यवस्था की गई थी। करीब डेढ़ साल पहले प्रति सोलर वाटर पंप पर पीएचईडी ने 6.29 लाख रुपये खर्च किए। एक तो कुछ ही दिन बाद खराब हो गया और दूसरे से लाल पानी आता है। विभाग ने अब तक उसे बनवाने का कोई प्रयास नहीं किया। गांव में हैंडपंप व कुआं खोदने का प्रयास कुछ ग्रामीणों ने किया, लेकिन पहाड़ी क्षेत्र होने के चलते सफलता नहीं मिली।

स्थायी समाधान के लिए होगी पहल

पीएचईडी के कार्यपालक अभियंता राजेश प्रसाद कहते हैं कि पानी का स्तर काफी नीचे चला गया है। विभाग से आदेश लिया जा रहा है, ताकि स्थायी समाधान किया जा सके। विधायक भागीरथी देवी कहती हैं कि आवंटन केअभाव में पानी की सप्लाई रुकी है। इस मामले को विधानसभा में उठाया जाएगा।

'भिखनाठोरी में पानी की समस्या खत्म करने की कोशिश होगी। विभाग के अधिकारियों से बात कर इसका स्थायी समाधान निकाला जाएगा।'

-सतीश चंद्र दुबे

सांसद, वाल्मीकिनगर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.