रॉपिग व प्रोपिग से गन्ने फसल की होगी बारिश व तेज हवा से बचाव
अधिक ऊंचाई की गन्ने की फसल को तेज हवा व बारिश से बचाव के लिए किसानों को रॉपिग व प्रोपिग का सहारा लेना चाहिए।
बेतिया। अधिक ऊंचाई की गन्ने की फसल को तेज हवा व बारिश से बचाव के लिए किसानों को रॉपिग व प्रोपिग का सहारा लेना चाहिए। वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा विकसित इंटर कल्चर ऑपरेशन कई मायने में गन्ने की फसल के लिए लाभदायक है। तेज हवा के साथ बारिश से अक्टूबर -नवंबर में गन्ने की फसल को नुकसान होने की संभावना बढ़ गई है। आटम प्लांटिग(अक्टूबर -नवम्बर में लगाई गई गन्ने की फसल) के नाम से जाने जाने वाली गन्ने की फसल अब तैयार होने की स्थिति में है। गन्ने में बेहतर बढ़वार होने के साथ-साथ इसमें सर्करा की मात्रा भी बढ़ गई है। गन्ने के डंठल भारी हो गए हैं। इस स्थिति में यदि बारिश होने के साथ-साथ हवा चलती है, तो गन्ने की फसल की बर्बादी ज्यादा होगी। इससे बचाव के लिए किसानों को रॉपिग व प्रोपिग करने की आवश्यकता है। इस विधि में गन्ने की फसल दो-तीन झूर को मिलाकर बांध दिया जाता है। गन्ने डंठल की बंधाई के बाद यह मजबूत हो जाती है जिससे इस पर तेज हवा का प्रभाव नहीं पड़ता है। ऐसा हो जाने से गन्ने की फसल जमीन पर नहीं गिरती है। अगर जमीन पर गन्ने की फसल गिरती है, तो इसकी उपज में भी कमी आएगी। जानकारों के अनुसार गन्ने की फसल पहली बंधाई सितम्बर माह में करने की जरूरत है। जमीन से एक मीटर की उंचाई पर पहली बंधाई करने की जरूरत पड़ती है। फिर अक्टूबर माह में दूसरी बंधाई की सलाह दी गई है। रैपिग के बाद गन्ने की फसलों को समर्थन देने की भी आवश्यकता पड़ती है। इसे आवश्यकता के अनुसार देने की जरूरत है। वहीं अधिक ऊंचाई वाली गन्ने की फसल में दूसरी बंधाई की भी जरूरत महसूस की जा सकती है। विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस वर्ष भी जिले में अतरिक्त भूमि में गन्ने की खेती की गई है। यह रकवा धान की फसल के उपयोग में लाई जाती थी। इस बार अधिक भूमि में गन्ने की फसल की खेती हुई है। ऐसे में गन्ने की फसल को बचाना किसानों के लिए अहम समस्या है। माधोपुर क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र के मुख्य वैज्ञानिक डा1 अजित कुमार के अनुसार गन्ने में रैपिग व प्रोपिग ये दोनों ही विधि फसलों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है। अक्टूबर व नवम्बर माह में लगाई गई गन्ने की फसल के लिए यह समय उपयुक्त है।