बकरी बेच मां भेजी पैसा तो घर पहुंचा बेटा
लॉकडाउन में अल्मोड़ा में फंसे मजदूरों के पास जब पैसा खत्म हो गया तो भोजन के भी लाले पड़ गए।
बेतिया। लॉकडाउन में अल्मोड़ा में फंसे मजदूरों के पास जब पैसा खत्म हो गया तो भोजन के भी लाले पड़ गए। आसपास के लोग तीन-चार दिनों तक खाने पीने की कुछ-कुछ सामान दे देते थे। लेकिन बाद में वे भी हाथ खड़े कर दिए। तब घर लौटने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। लेकिन वापस आने का न कोई साधन था और ना ही जेब में पैसे। मजदूरों ने तब अपने घर फोन किया। दर्द भरी कहानी सुन किसी की मां ने बकरी बेची तो किसी की पत्नी ने। मवेशी बेचकर पैसा भेजा गया तो मजदूर घर वापस आए। यह कहानी चनपटिया प्रखंड के जैतिया गांव के मजदूरों की है। जैतिया के माधव साह, महंथ साह, जयप्रकाश साह, साहब पांडेय आदि उत्तराखंड के अल्मोड़ा में मजदूरी का काम करते हैं। जिस फैक्ट्री में काम करते थे, लॉकडाउन में फैक्ट्री बंद हो गई। पास में जो पैसा था उससे कुछ दिनों तक काम चलाया। साहेब पांडे ने बताया कि पैसा खत्म हो जाने के बाद आसपास के लोग खाने के लिए कुछ कुछ दे देते थे। बाद मे वे भी कन्नी काटने लगे। तो सभी ने अपने अपने घर फोन किया। साहेब पांडे की मां तीन बकरी बेचकर 12 हजार रुपये भेजी। जगदीश साह की पत्नी भी बकरी बेचकर पति के पास पैसा भेजी। बैंक खाता में पैसा आने के बाद सभी घर की ओर चले।
दो दिनों तक चले पैदल
सभी मजदूर घर चलने के लिए तैयार हो गए लेकिन आने का कोई साधन नहीं था। तब वे एक बोलेरो भाड़ा किए। बोलेरो से कुछ दूर चले। लेकिन पुलिस गाड़ी रोक दी। कुछ दूर वापस लौट कर सभी बोलेरो से उतर गए और पैदल ही चल दिए। दो दिनों तक पैदल चले। रास्ते में कोई गाड़ी मिल जाती तो कुछ दूर के लिए उस पर सवार हो जाते थे। सभी दिल्ली पहुंचे। दिल्ली से श्रमिक स्पेशल ट्रेन से गोरखपुर आए। गोरखपुर से सरकारी बस से गोपालगंज होते हुए बेतिया आए। यहां से चनपटिया प्रखंड में पहुंचे। 14 दिनों तक क्वॉरेंटाइन सेंटर में रहने के बाद घर आ गए है।