आध्यात्मिक साधना के बिना जीवन अधूरा
आनंद मार्ग के धर्मावलंबी अवधुतिका आनंद और सुधा आचार्य ने कहा कि कर्म विज्ञान और धर्म साधना की राह को आनंद मांग प्रशस्त करता है। सेवा और समर्पण का पाठ आनंद मार्ग के जीवन का मूल मंत्र है। मनुष्य के मन में बहुत सारी जिज्ञासाएं भरी रहती हैं।
बेतिया । आनंद मार्ग के धर्मावलंबी अवधुतिका आनंद और सुधा आचार्य ने कहा कि कर्म, विज्ञान और धर्म साधना की राह को आनंद मांग प्रशस्त करता है। सेवा और समर्पण का पाठ आनंद मार्ग के जीवन का मूल मंत्र है। मनुष्य के मन में बहुत सारी जिज्ञासाएं भरी रहती हैं। परमात्मा की साधना करने से सारी जिज्ञासाएं पूरी हो जाती हैं क्योंकि परमात्मा अनादि, अनंत एवं निराकार हैं। वे नगर भवन में आनंद मार्ग बेतिया शाखा के तत्वावधान में आयोजित धर्म महासम्मेलन के दौरान अपने अनुयायियों को संबोधित कर रहे थे। आचार्य सुष्मिता नंद अवधूत ने कहा कि परमात्मा सभी के मन मंदिर में निवास करते हैं। धर्म का अर्थ स्वभाव होता है। जैसे अग्नि का स्वभाव है जलाना उसी तरह मनुष्य का स्वभाव है प्रतिक्षण सुख में रहना। मनुष्य अनंत सुख का पिपासु है। उससे यह ज्ञात नहीं है कि अनंत सुख केवल परमात्मा से ही मिलता है। उन्होंने कहा कि ईश्वर की प्राप्ति की राह नहीं जानने के कारण मनुष्य धन, पद, भूमि, मर्यादा आदि की ओर दौड़ रहा है। वह अशांत होकर जीवन यापन करता है। प्रोत रूप में परमात्मा अपने को विभिन्न रूपों में मनुष्य के अंदर छिपे हुए हैं और जीव के मन में आत्मा के रूप में बैठे हैं। आचार्य ने जोर देकर कहा कि मनुष्य का कर्तव्य है कि वह अपने भीतर की आत्मा को जाने। इसके पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ शंखनाद से हुआ। मौके पर भजन-कीर्तन भी किया गया। कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को योगासन के बारे में विस्तार से बताया गया। कौशिकी व तांडव की भी प्रस्तुति की गई।