नेपाल के बाजारों में धूम मचा रहा भारतीय साग
वाल्मीकि टाईगर रिजर्व क्षेत्र में प्राकृतिक वनस्पतियों की भरमार है। प्राचीन काल से ही भोजन में प्रयोग किए जाने वाले कोचिला साग की डिमांड सीमावर्ती नेपाल के कई शहरों में है।
बगहा। वाल्मीकि टाईगर रिजर्व क्षेत्र में प्राकृतिक वनस्पतियों की भरमार है। प्राचीन काल से ही भोजन में प्रयोग किए जाने वाले कोचिला साग की डिमांड सीमावर्ती नेपाल के कई शहरों में है। नेपाली कोचिला साग हो बड़े चाव से खाते हैं। बरसात में इस साग का उत्पादन बढ़ जाता है। फर्न प्रजाति के इस पौधे में आयरन, मिनरल समेत कई पोषक तत्व तो पाए जाते ही हैं साथ ही इसमें औषधीय गुण भी पाया जाता है। साग की बिक्री के लिए प्रतिदिन भारतीय नेपाल जाते हैं। इस जंगली साग को बेचकर व्यवसायी पांच सौ से एक हजार रुपये प्रतिदिन तक का मुनाफा कमा रहे हैं। यह साग पानी वाली जगह पर पैदा होता है। वीटीआर के तराई क्षेत्रों के जंगलों, नदी के तट पर इसका उत्पादन हर साल सर्वाधिक होता है। नेपाल के नवलपरासी एवं चितवन जिले में इसकी अच्छी डिमांड है। गंडक बराज के उस पार लगती है मंडी :-
पड़ोसी देश नेपाल से भारत का रिश्ता काफी पुराना है। प्रतिदिन दोनों देशों के व्यापारी विभिन्न सामग्री की बिक्री के लिए सीमा पार करते हैं। नेपाली मछुआरे मछलियां लेकर भारतीय सीमा में बिक्री के लिए आते हैं। इसके साथ मार्के¨टग के लिए भी नेपाली प्रतिदिन गंडक बराज के रास्ते भारत आते हैं। कोचिला साग के व्यवसाय से जुड़े रमेश बताते हैं कि प्रतिदिन 2 से 3 हजार रुपये का साग नेपाल के तटवर्ती जिलों में होता है। वाल्मीकि टाईगर रिजर्व क्षेत्र में नदी-नालों के किनारे उगने वाले इस साग की पहचान आसानी से हो जाती है। साथ ही इसकी बिक्री भी मुश्किल नहीं है। इस वजह से कई लोग बरसात भर साग की बिक्री के लिए नेपाल के बाजारों में जाते हैं और अच्छी आमदनी प्राप्त करते हैं। कहते हैं विशेषज्ञ :-
नेपाल के वनस्पति विभाग के प्रोफेसर डॉ. एस के उपाध्याय के मुताबिक इस सब्जी में भरपूर मात्रा में आयरन और मिनरल मौजूद है। इस सब्जी का उत्पादन वर्ष में केवल चार माह ही होता है। इसमें औषधीय गुण भी पाए जाते हैं। पेट संबंधी बीमारियों में यह काफी फायदेमंद है।