समाज के रीढ़ हैं बुजुर्ग, दिखाते सच्चाई की राह
बेतिया। बड़े बुजुर्ग समाज की रीढ़ होते हैं। जब-जब समाज अपने रास्ते से भटकता है तब बुजुर्ग ह
बेतिया। बड़े बुजुर्ग समाज की रीढ़ होते हैं। जब-जब समाज अपने रास्ते से भटकता है, तब बुजुर्ग हमें सही मार्ग दिखाते हैं। तिनके तिनके जोड़कर आने वाली पीढ़ी के लिए वे घर ही नहीं बनाते बल्कि अपने बाल बच्चों के लिए अपना जीवन तक दांव पर लगा देते हैं। आज पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव भारत पर कुछ इस तरह हावी हुआ है कि जिन बुजुर्गों का हमारे घर में सबसे सम्मानित स्थान होता था आज वे उपेक्षित हो चलें हैं। युवाओं और बुजुर्गों के बीच दूरियां बढ़ गई है, वृद्धाश्रम की दीवारें मजबूत होती जा रही है। यह हमारे समाज के लिए खतरे की घंटी है। आज कुछ ऐसे भी बुजुर्ग हैं जो अपनी उम्र को धता बताते हुए दिन-रात समाज की सेवा करते हैं और उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य समाज की सेवा करना ही है।
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समाज के लिए मन में है जज्बा
हमारे समाज में ऐसे बुजुर्गों की तादाद काफी है जिनका दिल समाज के लिए धड़कता है। घर परिवार की चिता से बेफिक्र दिन-रात समाज के उत्थान के लिए ही सोचते और काम करते हैं। उम्र के अंतिम दहलीज पर भी उनके मन का जोश और जज्बा कम नहीं हुआ है। चनपटिया के 90 वर्षीय लालू मियां कहते हैं कि अब शरीर साथ नहीं देता लेकिन कोशिश रहती है कि समाज के हर काम में हाथ बटा सकूं। 85 वर्षीय सरजू पटेल का कहना है कि सरकार को बुजुर्गों के स्वास्थ्य के लिए शेष योजना बनानी चाहिए।
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80 वर्ष की उम्र पार कर चुके हैं। लेकिन समाज सेवा का जज्बा अभी कम नहीं हुआ है। साइकिल पर वनवासी कल्याण आश्रम के बच्चों के लिए अनाज इकट्ठा करते हैं, लोगों से पैसे मांगते हैं। अपनी पेंशन तक दान कर देते हैं। सिर्फ इसलिए ताकि समाज सुरक्षित रह सके, बच्चों का भविष्य संवर सके।
लक्ष्मण राय रिटायर्ड, सैन्य कर्मी
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बुजुर्ग होना तो नियति है। लेकिन इसके आगे झुकना नहीं चाहिये। 12 वर्ष से अधिक हो गए रिटायर हुए। लेकिन आज भी हर जरूरतमंद की मदद के लिए खड़ा रहता हूं। सरकार से अपेक्षा है कि वह ठीक ढंग से व्यवस्था को चलाएं, बुजुर्ग होने के नाते समाज से यह अपेक्षा है कि सामाजिक बुराइयों को साथ मिलकर हम दूर करें।
जमील अहमद, रिटायर्ड सब इंस्पेक्टर
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सरकार बुजुर्गों के स्वास्थ पर ध्यान दें उन्हें चिकित्सा की त्वरित सुविधाएं मुहैया कराई जाएं। समाज से अपेक्षा यह है कि समाज में आपसी प्रेम भाव बढ़े। जातिवाद समाप्त हो ताकि हमारा भारत उन्नत हो सके।
द्वारिका प्रसाद, व्यवसायी
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नई पीढ़ी के लोग बुजुर्गों को कम महत्व देते हैं। इसलिए समाज में संस्कार की कमी हो रही है। आए दिन ऐसी घटनाएं हो रही है जिससे मन में व्यथित हो जाता है, यदि समाज में बुजुर्गों की बात लोग मानने लगे तो संस्कार का ह्रास ऐसे नहीं होगा।
ताराकांत झा, रिटायर्ड नेवी अधिकारी