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राष्ट्रभाषा होने के बावजूद हिदी को नहीं मिली तरजीह

हिदी हमारी राष्ट्रभाषा है। इसको हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं। पर जितना बढ़ावा अंग्रेजी विषय को दिया गया। उतना हिदी को नहीं। आज भी लोग इंगलिश माध्यम वाले स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला करना पसंद करते हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 14 Sep 2020 12:22 AM (IST)Updated: Mon, 14 Sep 2020 12:22 AM (IST)
राष्ट्रभाषा होने के बावजूद हिदी को नहीं मिली तरजीह
राष्ट्रभाषा होने के बावजूद हिदी को नहीं मिली तरजीह

बगहा । हिदी हमारी राष्ट्रभाषा है। इसको हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं। पर, जितना बढ़ावा अंग्रेजी विषय को दिया गया। उतना हिदी को नहीं। आज भी लोग इंगलिश माध्यम वाले स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला करना पसंद करते हैं। इसका एक मात्र कारण यह है कि आजादी के बाद से लेकर आजतक अंग्रेजी को ही अधिक महत्व दिया जाता है। हिदी में बातचीत करने वालों को बाहर में हीन नजर से देखा जाता है। इसके बावजूद भी कुछ ऐसे लोग हैं। जो अपने राष्ट्रभाषा को ही तरजीह देते आ गएं।

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हिदी को देते हैं महत्व

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कोई हिदी को कुछ भी समझे पर इस भाषा में बातचीत में शालीनता झलकती है। यह कहना है शिक्षक मुकेश कुमार का। कहते हैं कि इसमें हमारे सभ्यता व संस्कृति की झलक दिखाई देती है। शिक्षक चंद्रभान मिश्रा कहते हैं कि हम अपना सभी काम हिदी में करते हैं। आम बोलचाल में भी इसी भाषा का प्रयोग करते हैं। दूसरा क्या समझता है इसकी परवाह नहीं है। हालांकि हमारी अंग्रेजी भी कमजोर नहीं है।

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साहित्य परिषद् की हुई थी स्थापना

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नगर व प्रखंड साहित्य के क्षेत्र में शुरू से हीं उर्वरक रहा है। जिसके साथ हिदी को भी फलने फूलने का मौका मिला। हालांकि बीते समय में इसका कुछ ह्रास हुआ है। पर, इसको पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है। स्व. कवि गोपाल सिंह नेपाली, कविवर स्व. सरयुग सिंह सुदंर, स्व. गिरीन्द्र किशोर मिश्रा, स्व. कमलाकांत त्रिपाठी, स्व. धनराज पुरी, स्व. कामेश्वर विद्रोही, स्व. एंथोनी दीपक जैसे नामचीन कवि व साहित्यकार से स्थानीय धरती गुलजार थी।इसी को देखकर वर्ष 1964 में स्थानीय स्तर पर साहित्य को और विकसित करने के लिए स्व. राजा नारायण विक्रम शाह व अन्य लोगों के सहयोग से साहित्य परिषद् की स्थापना की गई थी। हालांकि इन कवियों व साहित्यकारों के निधन के बाद यह भी मृतप्राय हो गया था। जिसे हाल में हीं पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है। इसका मुख्य कार्य हिदी व साहित्य का विकास करना है।

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कहते हैं स्थानीय कवि व साहित्यकार

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हिदी हमारे रग रग में बसी है। इसमें अपनत्व के साथ देश का मान सम्मान भी है। पर, इसके उचित प्रचार प्रसार नहीं होने के कारण आज जिस मुकाम पर हिदी को होना चाहिए वह स्थान नहीं मिल सका।

आचार्य दिनेश शुक्ला, साहित्यकार सह सेवानिवृत प्रधानाचार्य संस्कृत विद्यालय

आज के युवक बस घरों में हीं हिदी का प्रयोग करते हैं। सार्वजनिक रूप से हिदी बोलने में भी इन्हें शर्म आती है। यह अंग्रेजी को बढ़ावा देने के कारण हुआ है। हालांकि अभी से भी इसपर ध्यान दिया जाए तो हिदी को भी सबकुछ हासिल होगा।

शिवनाथ चौबे अनपढ़, कवि व साहित्यकार

हिदी हिदुस्तान की है। जितने भी गायक, कवि, साहित्यकार हैं। सबकी भाषा हिदी है। पर, इसके बावजूद भी इस भाषा का हम महत्व नहीं समझ पा रहे हैं। तो, इसमें हमारी भी कमी है। अगर सभी हिदुस्तानी केवल हिदी को हीं अपना लें।तो, यह भाषा सबसे आगे होगी।

मुनीन्द्र मेघ, कवि व साहित्यकार

हिदी में कामकाज करने में शर्म महसूस करने की जरूरत नहीं है। इसे बढ़ावा देने के लिए सबसे पहले इस झिझक को दूर करना होगा। यह हमारी राष्ट्रभाषा है। हमें हिदी पर गर्व है।

रवि कुमार, शिक्षक

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स्थानीय स्तर पर हिदी में हीं होता है काम

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प्रखंड व नगर का क्षेत्र भोजपुरी भाषी क्षेत्र है। इसलिए यहां सभी सरकारी कार्यालयों में हिदी में हीं कार्य होता है। साथ हीं सभी कर्मी व अधिकारी इसी को तरजीह भी देते हैं। प्रखंड कर्मी उपेन्द्र कुमार ने बताया कि हमारे लिए हिदी में काम करना आसान है। वहीं अंचल कर्मी राजेन्द्र साहू का कहना है कि यहां हिदी हीं चलती है। सीओ विनोद मिश्रा का कहना है कि सभी कर्मियों को हिदी में बातचीत व काम करने की हिदायत दी गई है।

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कहते हैं छात्र

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वैभव कुमार मैनेजमेंट के छात्र हैं। कहते हैं कि हिदी में कितांबे ढूंढना मुश्किल होता है। वहीं अंग्रेजी भाषा की पुस्तकें आराम से मिल जाती है। लॉ की तैयारी कर रहें रोहित कुमार का कहना है कि अधिकतर किताबें अंग्रेजी में ही हैं। जिसके कारण इसे हीं खरीदना पड़ता है।

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---हिदी को बढ़ावा देकर व नई पीढ़ी में इसके महत्व को बताकर साहित्य में रूचि जगाई जा सकती है। पहले के कवि व साहित्यकार तंगी में हीं रहते थे। जिसको देखकर कई इसमें रूचि रखने वाले लोग भी किनारा कर लिएं। वैसे हमारा प्रयास हिदी व साहित्य को हमेशा बढ़ाने का रहता है। इसके लिए कार्यक्रम का आयोजन भी किया जाता है।

सविता सिंह नेपाली, उपाध्यक्ष राजभाषा परिषद् के हिदी सेवा समिति व संस्थापक सचिव गोपाल सिंह नेपाली फाउंडेशन

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हिदी हमारी अस्मिता, गौरव तथा देश की पहचान हरनाटांड़, संवाद सूत्र : हिदी ना सिर्फ हमारी राष्ट्र भाषा है बल्कि हर नागरिक से जुड़ा हमारी अस्मिता और गौरव का प्रतीक है। हिदी प्रेम की भाषा है तथा सीखने एवं बोलचाल व्यवहार में सरल, सहज व शालीन है। इससे हमारी संस्कृति, आचरण ²ष्टिगत होती है। उपरोक्त बातें उ. मध्य विद्यालय, पचरुखा में कार्यरत हिदी के शिक्षक सुनील कुमार ने कही। शिक्षक ने कहा कि हम प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को हिदी दिवस मनाते हैं। इसका उद्देश्य हिदी का व्यापक प्रचार प्रसार करना है ताकि हिदी को विश्व स्तर पर बढ़ावा मिले तथा सभी देश हिदी से प्रभावित हो।


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