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संतान नहीं हुई तो बेजुबानों को बनाया औलाद, उन्हीं के लिए कुर्बान कर रहे जीवन

बिहार के पश्चिम चंपारण के एक दंपती ने संतान नहीं होने पर बेजुबान जानवरों को ही संतान की तरह पालना शुरू किया। उन्‍होंने अपनी सारी संपत्‍ती भी इसी काम में लगा दी है।

By Amit AlokEdited By: Published: Fri, 24 Aug 2018 05:02 PM (IST)Updated: Sun, 26 Aug 2018 10:24 PM (IST)
संतान नहीं हुई तो बेजुबानों को बनाया औलाद, उन्हीं के लिए कुर्बान कर रहे जीवन
संतान नहीं हुई तो बेजुबानों को बनाया औलाद, उन्हीं के लिए कुर्बान कर रहे जीवन

पश्चिम चंपारण [अजय कुमार तिवारी]। बेजुबान ही औलाद, उन्हीं से प्यार और उन्हीं के लिए जीवन कुर्बान। कुछ इसी सोच के साथ काम कर रहे उम्र के छह दशक पूरे कर चुके शिवनाथ यादव व पार्वती देवी। कोई औलाद नहीं होने पर इस दंपती ने अपनी सारी संपत्ति इसी काम में लगा दी। दिनभर उनकी सेवा करना अपना धर्म समझते हैं। बेजुबानों के प्रति सेवा और समर्पण देख कई लोग सहयोग को आगे आए हैं। प्रशासन भी तस्करी में पकड़े गए जानवर और छुट्टा पशुओं को इनके हवाले कर देता है।

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संतान नहीं हुई तो लिया ये फैसला

बेतिया के चनपटिया प्रखंड क्षेत्र की तुनिया विसुनपुर पंचायत निवासी किसान शिवनाथ की शादी तकरीबन 40 साल पहले पार्वती देवी से हुई। दोनों को कोई संतान नहीं हुई तो बेजुबानों के लिए जीवन अर्पण करने का फैसला लिया। इन लोगों को जहां भी कोई घायल गाय, भैंस या अन्य जानवर मिल जाते थे, उनका इलाज करने के साथ चारे आदि की व्यवस्था करते थे।

काम में लगा दी जीवन भर की कमाई

इस काम में मन इतना रमा कि शिवनाथ ने अपनी एकमात्र डेढ़ एकड़ जमीन वर्ष 2017 में गो समृद्धि धाम के नाम कर दी। जीवनभर की सारी कमाई व अन्य लोगों की मदद से यहां शेड और अन्य निर्माण कार्य कराया।

दिनभर करते दर्जनभर गाय-बछड़ों की सेवा

आज इस धाम में दर्जनभर गायें व बछड़े रहते हैं। पति-पत्नी सुबह से लेकर शाम तक गो सेवा में जुटे रहते हैं। शहर में दुर्घटनाग्रस्त पशुओं को प्रशासन इनके हवाले कर देता है। इन पशुओं के लिये चारे और इलाज की व्यवस्था दंपती करते हैं। कोई सरकारी सहायता नहीं मिलती। हां, कुछ पशु प्रेमी समय-समय पर सहयोग अवश्य करते हैं।

हिंदुत्व की विचारधारा से प्रेरणा

शिवनाथ को बचपन से ही बेजुबानों से लगाव रहा है। बड़े होने पर वे विश्व हिंदू परिषद व बजरंग दल से जुड़ गए। पशुओं को तस्करों से छुड़ाने और उनकी सेवा समय-समय पर करते थे। वे कहते हैं, जब कोई औलाद नहीं हुई तो बेजुबानों की रक्षा और उन्हें ही औलाद के रूप में मानकर सेवा का व्रत ले लिया। शिवनाथ कहते हैं, पशुओं के चारे आदि में प्रति महीने 15 हजार खर्च होते हैं। एक-दो गायें दूध देती हैं। लोगों की मदद और दूध बेचकर खर्च निकल आता है।

लावारिस पशुओं को दिया आश्रय

गो समृद्धि धाम को समय-समय पर आर्थिक मदद देने वाले विनय कुमार, मोहित मिश्रा, रमण गुप्ता, दीपक वर्मा, सत्येंद्र चौबे और सुजीत सोनी कहते हैं कि इस दंपती के प्रयास से कई लावारिस पशुओं को आश्रय मिल गया है। पशुओं के प्रति उनका प्रेम देखने लायक है। ऐसे लोगों की मदद के लिए सभी को आगे आना चाहिए।


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