19 हजार में खरीदी छह पुरानी साइकिल, 3 दिनों में नाप दी 400 किलोमीटर की डगर
लॉकडाउन में काम बंद हुआ तो आमदनी ठहर गई। दुकानदार ने उधार देना बंद कर दिया। लेकिन पेट की आग कहा मानने वाली थी। आधा पेट खाकर एक-दो दिन भूख शांत की। पेट की ज्वाला बढ़ने पर घर जाने की ठानी। लेकिन जेब में पैसे नहीं थे। न हीं आने जाने का कोई साधन। मजदूरों ने मालिक से उधार ली। नए का दाम देकर पुरानी साइकिल खरीदी और तीन दिन में 400 किलोमीटर की डगर नाप दी।
बेतिया । लॉकडाउन में काम बंद हुआ तो आमदनी ठहर गई। दुकानदार ने उधार देना बंद कर दिया। लेकिन पेट की आग कहा मानने वाली थी। आधा पेट खाकर एक-दो दिन भूख शांत की। पेट की ज्वाला बढ़ने पर घर जाने की ठानी। लेकिन जेब में पैसे नहीं थे। न हीं आने जाने का कोई साधन। मजदूरों ने मालिक से उधार ली। नए का दाम देकर पुरानी साइकिल खरीदी और तीन दिन में 400 किलोमीटर की डगर नाप दी। यह कहानी बैरिया प्रखंड के मच्छरगवा गांव के मजदूरों की है। सोमवार को गांव पहुंचे 6 मजदूर उत्क्रमित मध्य विद्यालय मच्छरगांवा में क्वारंटाइन है। मच्छरगांव के सुनर राम, सुरेश राम, बलिष्ठ राम,भिखारी सहनी, भोला राम, विनोद राम उत्तर प्रदेश के गोंडा जिला अंतर्गत मनकपुर में मजदूरी करते थे। सुनर राम ने बताया कि चीनी मिल बंद होने के बाद काम धंधा मंदा हो गया और घर आने की सोच ही रहे थे कि लॉकडाउन में फंस गए। शुरू में लॉकडाउन समाप्त होने का इंतजार करते रहे। मजदूरी के पैसे थे उससे कुछ दिनों तक काम चलाया लेकिन धीरे-धीरे पैसे भी खत्म हो गए। कुछ दिनों तक दुकानदार से उधार राशन लिया। लेकिन बाद में वह भी राशन देने से इनकार कर दिया। तब घर लौटने के सिवा दूसरा विकल्प नहीं बचा। उधार चुकता करने के वादा के बाद मालिक ने दिया उधार
मजदूरों ने बताया कि घर लौटने के लिए कोई साधन नही था। साधन नहीं होने पर मालिक से आरजू मिन्नत की तो वह वापस लौट उधार चुकता करने के वादा के बाद कुछ रुपये उधार दे दिया। भिखारी सहनी ने बताया घर कैसे जाएं वे समझ नहीं पा रहे थे। तब सबों ने राय मशवरा कर साइकिल से घर लौटने की योजना बनाई। साइकिल की दुकानें बंद थी लिहाजा नई साइकिल नहीं मिल रही थी। तब मजबूरी में 19,500 में 6 पुरानी साइकिल खरीदी और चल पड़े गांव की ओर। तीन दिन में 400 किलोमीटर की डगर नाप दी। खेत में बितानी पड़ी रात
साइकिल खरीदने के बाद मनकापुर से कटरा, फैजाबाद होते हुए सभी हाईवे पकड़ कर गोरखपुर के राह पर निकल पड़े। गोरखपुर से कुशीनगर, कप्तानगंज होते हुए मधुबनी पहुंचे। सीमा पर पकड़े गए। जांच के बाद आगे बढ़ने की इजाजत मिली। सुरेश राम, भोलाराम ने कहा कि यह दिन याद करने की इच्छा नहीं होती। रास्ते में कही-कहीं लोग खाने पीने का सामान दे देते थे। सुबह 3 बजे से साइकिल चलाते थे। धूप हो जाने पर कहीं पेड़ की छांव में घंटे दो घंटे आराम करते थे। सूरज की तपिश कम होते ही फिर साइकिल के हैंडल पकड़ लेते। रास्ते के गांव वाले गांव में नहीं रुकने दे देते थे। तब कही पानी की व्यवस्था देख किसी खेत में ही रात गुजार लेते थे। तीन दिनों तक साइकिल की सवारी कर गांव पहुंचे। गांव में नही घुसने दिए ग्रामीण
जब सभी सोमवार की शाम गांव में आए तब बीमारी के डर से ग्रामीण उन्हें गांव में नहीं घुसने दिए। तब सभी मजदूरों ने स्थानीय मुखिया से संपर्क किया। मुखिया के पहल पर सभी को क्वारंटाइन सेंटर ले जाया गया।