स्कूल की पहल से 25 प्रवासी मजदूरों को मिला काम
वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के दौर में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए भितिहरवा का कस्तूरबा कन्या उच्च माध्यमिक विद्यालय भी सामने आया है। उसने 25 प्रवासी श्रमिकों के साथ स्कूल की 100 छात्राओं को काम दिया है।
नरकटियागंज । वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के दौर में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए भितिहरवा का कस्तूरबा कन्या उच्च माध्यमिक विद्यालय भी सामने आया है। उसने 25 प्रवासी श्रमिकों के साथ स्कूल की 100 छात्राओं को काम दिया है। ये सभी मास्क बना रहे। विद्यालय व घर में लगभग 70 मशीनों से सिलाई हो रही। प्रतिदिन सात हजार मास्क तैयार हो रहे। एक मास्क पर तीन रुपये पारिश्रमिक दिया जा रहा। छात्राओं व प्रवासियों को प्रतिदिन डेढ़ सौ रुपये से अधिक की आमदनी हो जा रही।
विद्यालय की ओर से तैयार खादी व सूती कपड़ों का मास्क जिले की विभिन्न पंचायतों में बेचा जा रहा। 15 दिन पहले काम शुरू हुआ है। स्कूल प्रबंधन ने कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से कपड़े और अन्य सामान उपलब्ध कराए। सिलाई मशीन की व्यवस्था छात्राओं और प्रवासियों ने अपने स्तर से की। सिंगल लेयर व डबल लेयर का मास्क बन रहा। इसकी बिक्री प्रति पीस 10 से लेकर 24 रुपये के हिसाब से की जा रही। 10 रुपये वाला मास्क तैयार करने में सात रुपये और 24 वाला मास्क बनाने में 20 से 21 रुपये खर्च आता है। अभी तक तकरीबन नौ लाख रुपये तक के मास्क का निर्माण हो चुका है।
इस तरह काम मिले तो नहीं जाएंगे परदेस : छात्रा सपना कुमारी, निकिता, ज्योति व रेखा कुमारी ने बताया कि इस काम से बहुत खुशी हो रही। मास्क बनाने में गुणवत्ता का पूरा ध्यान रखा जाता है। प्रवासी श्रमिक ओमप्रकाश महतो, अनिल साह, अंगद पटेल और रेयाज अंसारी बताते हैं कि लॉकडाउन में काम नहीं मिल रहा था। ऐसे में मास्क निर्माण शुरू हुआ तो जुड़ गए। अनिल साह ने बताया कि कोरोना संकट में परिवार के भरण-पोषण में मदद मिली है। इस तरह काम मिले तो परदेस जाने की जरूरत ही नहीं होगी।
प्रधानाचार्य दीपेंद्र बाजपेयी ने बताया कि आपदा में स्कूल बंद है। कोरोना से बचाव के लिए क्षेत्र में मास्क की जरूरत महसूस की जा रही थी। इसे देखते हुए मास्क निर्माण का निर्णय लिया गया। इसके चलते गरीब छात्राओं व प्रवासी मजदूरों को काम मिल रहा है। विद्यालय के इस अभियान में दिल्ली की एक संस्था भी सामने आई है। उसने यहां स्थायी मास्क निर्माण केंद्र खोलने की योजना बनाई है। संस्था 20 सिलाई मशीनें व खादी का कपड़ा उपलब्ध कराएगी। जुलाई के मध्य तक काम शुरू हो जाएगा।
विद्यालय प्रबंधन समिति के सचिव दिनेश प्रसाद यादव ने बताया कि भितिहरवा गांधीजी की कर्मभूमि रही है। चंपारण आंदोलन के दौरान गांधीजी यहां पहुंचे थे। यह नि:संदेह गांधी के सपनों का गांव बनाने की दिशा में छोटा सा प्रयास है।
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