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'टाइगर प्रोफाइल' के लिए कारगर बना ट्रैप कैमरा

बेतिया : जागरण संवाददाता : वाल्मीकि प्रोजेक्ट टाइगर के वन क्षेत्रों में प्रदेश सहित सीमावर्ती यूपी व

By Edited By: Published: Fri, 31 Oct 2014 01:00 AM (IST)Updated: Fri, 31 Oct 2014 01:00 AM (IST)
'टाइगर प्रोफाइल' के लिए कारगर बना ट्रैप कैमरा

बेतिया : जागरण संवाददाता : वाल्मीकि प्रोजेक्ट टाइगर के वन क्षेत्रों में प्रदेश सहित सीमावर्ती यूपी व नेपाल के वन क्षेत्रों की तुलना में कम संख्या में आधुनिक टै्रप कैमरे लगाये गये है जिससे बाघों व अन्य पशु पक्षियों की गतिविधियों पर नजर रखने में काफी असुविधा हो रही है। बावजूद इसके कम संसाधनों के बावजूद भी ट्रैप कैमरे से मिली जानकारी के आधार पर विगत दो साल के अंदर वीटीआर ने कई उपलब्धियां हासिल की है। बता दें कि बाघों की गिनती के लिए पारंपरिक 'पग मार्क' फामूर्ले की तुलना में आधुनिक ट्रैप कैमरा लगाने से बाघों व अन्य पशु पक्षियों की गतिविधियों पर नजर रखने में काफी सुविधाएं मिल रही है। रोचक पहलु तो यह भी है कि विगत दिनों ट्रैप कैमरे में कैद तस्वीरों के आधार पर ही तीन दुलर्भ पशुओं की पहचान की गयी थी जिसकी सूचना दिल्ली, रांची सहित देहरादून के वरीय वन अधिकारियों को भेजी गयी। वीटीआर की इस उपलब्धि पर उन दिनों यहां के अधिकारियों को देश भर से शुभकामनाएं भी मिली थी। बता दें कि बरसात के दिनों में वीटीआर के सभी टै्रप कैमरे को तीन चाह माह के लिए उतार लिया गया था लेकिन अब जबकि एक बार फिर टै्रप कैमरा लगाया जा रहा है, ऐसे में आवश्यकता के अनुरुप टै्रप कैमरा उपलब्ध नहीं होने से यहां के वरीय अधिकारियों को खासी परेशानी हो रही है। बैटरी चालित इन टै्रप कैमरे में कैद तस्वीरों के आधार पर ही पशु पक्षियों की गतिविधियों का रिकार्ड तैयार किया जाता है। बता दें कि टै्रप कैमरा लगने के बाद वीटीआर के वन क्षेत्रों में रह रहे बाघों का उनके धारियों के आधार पर गिनती कर उनकी अलग 'डीएनए प्रोफाइल' तैयार की जा रही है। कई बार टै्रप कैमरे में कैद तस्वीरों के आधार पर ही पोचर्स की गतिविधियों अथवा स्थानीय लोगों की घुसपैठ के बारे में भी जानकारी मिल जाती है जिसके आधार पर पशु तस्करों तक पहुंचने में वन अधिकारियों को काफी आसानी होती है। अब जबकि उत्तर प्रदेश के सोहागी बरुआ वन क्षेत्रों को छांट कर बाघों की गिनती करने की योजना बनायी गयी है तो ऐसे में अगर आवश्यकता के अनुरुप वीटीआर को ट्रैप कैमरे उपलब्ध हो जाए तो राष्ट्रीय पशु सहित अन्य पशु पक्षियों की चहलकदमी का अध्ययन करने में व अन्य गतिविधियों को कैद करने में काफी आसानी होगी। सूत्रों की माने तो वन विभाग के वरीय अधिकारियों के द्वारा पटना, दिल्ली व देहरादून कार्यालय को अतिरिक्त ट्रैप कैमरे को उपलब्ध कराने के लिए कई बार पत्राचार किया जा चुका है। बता दें कि दिसंबर माह में व‌र्ल्ड वाइल्ड लाइफ के वरीय अधिकारी वीटीआर के वन क्षेत्रों में पधार रहे हैं। ऐसे में वन प्रशासन को संसाधनों की कमी के कारण पशु पक्षियों के विचरण संबंधित आंकडों सहित अन्य जानकारियों से जुड़ी फाइलों को अपडेट करने में असुविधा हो रही है। ग्रासलैंड की किस्मों व उनके रख रखाव सहित फ्लोरा फौना की देखभाल पर भी इन दिनों वीटीआर प्रशासन काफी सक्रिय है ऐसे में अधिक संख्या में ट्रैप कैमरे की उपलब्धता आनेवाले दिनों में सहायक साबित होगा।

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इनसेट बयान

वीटीआर के वन क्षेत्रों में तीन साल पहले संसाधनों की जबरदस्त कमी थी। अब पगमार्क के स्थान पर ट्रैप कैमरा तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है जो बाघों के डीएनए प्रोफाइल को तैयार करने में कारगर है। अतिरिक्त ट्रैप कैमरे की मांग की गयी है।

संतोष तिवारी,निदेशक सह संरक्षक वीटीआर वन क्षेत्र


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