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कभी सोनपुर मेले की पहचान थे पशु-पक्षी, आवक बंद होने से पहचान पर संकट

ुुुसोनपुर संवाद सहयोगी । पशु पक्षी और हाथियों का विश्व विख्यात हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला से विलोपित होना

By JagranEdited By: Published: Thu, 17 Oct 2019 11:29 PM (IST)Updated: Thu, 17 Oct 2019 11:29 PM (IST)
कभी सोनपुर मेले की पहचान थे पशु-पक्षी, आवक बंद होने से पहचान पर संकट
कभी सोनपुर मेले की पहचान थे पशु-पक्षी, आवक बंद होने से पहचान पर संकट

संवाद सहयोगी, सोनपुर :

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पशु-पक्षी और हाथियों के विख्यात हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला से पशु-पक्षियों की आवक करीब-करीब बंद हो जाना इस मेले की पहचान पर संकट खड़ा कर रहा है। अब तो सरकारी नुमाइंदे भी बेहिचक यह स्वीकार कर रहे हैं कि इस मेले के बदलते स्वरूप के बीच मेले का धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व दिनों-दिन घटता जा रहा है जिससे इस धार्मिक और ऐतिहासिक मेले का गौरव खत्म होता जा रहा है। सोनपुर मेला के दौरान महाकुंभ के आयोजन से संदर्भित यूनिवर्सल सतयुग स्टेज इंडिया न्यास के द्वारा दिए गए आवेदन के आलोक में जांच के बाद ये बातें अपनी रिपोर्ट में सोनपुर अंचलाधिकारी ने लिखी हैं। पत्रांक संख्या 1461, दिनांक 12 अक्टूबर के माध्यम से सीओ ने यह जांच रिपोर्ट अनुमंडल पदाधिकारी को सौंपी है।

दूसरी ओर बदलते परिवेश के साथ भले मेला का स्वरूप बदल जाये पर धर्म-कर्म का मूल स्वरूप कभी हाईटेक नहीं होता। इस कथन के हकीकत से रूबरू होना हो तो कभी भागदौड़ की इस जीवनशैली के बीच फुर्सत निकालकर कार्तिक पूर्णिमा को हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला में देखा जा सकता है। सरकारी खाते और शहरी जुबान में तो यह विश्व विख्यात हरिहर क्षेत्र मेला, एशिया फेम मेला तथा सोनपुर मेला कहा जाता है कितु सुदूर ग्रामीण इलाकों में लोग इसे आज भी छत्तर मेला ही कहते हैं। कार्तिक पूर्णिमा की तिथि को यहां स्नान, ध्यान और धर्म-कर्म का अछ्वुत ²श्य उभरता है। हाथ में जलपात्र, सिर पर मोटरी-गठरी लिए गांव-देहात से आए श्रद्धालुओं का अपार जनसमूह बाबा हरि और हर के प्रति आस्था व श्रद्धा का इतिहास रचता है। ऐसे श्रद्धालुओं को इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि उनकी सुविधा के मद्देनजर सरकार के स्तर पर शुद्ध पेयजल, रोशनी, चमचमाती सड़कें या सुरक्षा व शौचालय की व्यवस्था की गई है अथवा नहीं । इनका लक्ष्य केवल बाबा हरिहर नाथ का जलाभिषेक व दर्शन-पूजन के बाद मेले में आए हाथी, घोड़ा व पशु-पक्षी देखना होता है। अब सरकारी नियम-कायदे की जंजीरों में हाथियों को इस कदर जकड़ दिया गया कि वे मेले से गायब ही हो गए। चिड़िया बाजार में लाए जाने वाले अनेक प्रकार के आकर्षक पक्षियों का कलरव भी कुछ वर्षों से बंद है। दूसरे प्रदेशों से यहां लाए जाने वाली उन्नत नस्ल की गाय और भैंस बहुत पहले ही इस मेला से विदा ले चुकी हैं। कभी एक से बढ़कर एक बैलों की जोड़ियों से खचाखच भरा रहने वाला नगीना बाजार और अपर बैल बाजार अब मेले के दौरान वीरान रहते है। हाल के वर्षोँ में यह मेला अब नखास के इर्द-गिर्द सिमटकर रह गया है। मनोरंजन के लिए तरह-तरह खेल-तमाशे का भी आयोजन किया जाता है। सोनपुर के पुराने लोग भी यह स्वीकार करते हैं एशिया फेम यह मेला अपने विशाल जड़ से दूर होता जा रहा है जो मेले की सेहत के लिए ठीक नहीं। अब तो सरकार में बैठे पदाधिकारी भी इस तथ्य को लिखित रूप में स्वीकार कर रहे हैं।


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