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एसपीओ के युवा मेले में चप्पे-चप्पे पर तैनात

एशिया फेम हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेले की व्यवस्था और सुरक्षा में चार चांद लगा रही है कम्युनिटी पुलिस एवं प्रशासन का चाक चौबंद प्रबंधन।

By Edited By: Published: Thu, 08 Dec 2016 03:08 AM (IST)Updated: Thu, 08 Dec 2016 03:08 AM (IST)
एसपीओ के युवा मेले में चप्पे-चप्पे पर तैनात

वैशाली। एशिया फेम हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेले की व्यवस्था और सुरक्षा में चार चांद लगा रही है कम्युनिटी पुलिस एवं प्रशासन का चाक चौबंद प्रबंधन। मेले में एक ओर वेतन पाने वाले पुलिस के जवान एवं अधिकारी पूरी मुस्तैदी से खड़े है तो दूसरी ओर बिना तनख्वाह और बगैर कोई सरकारी सुविधा के एसपीओ में शामिल युवा मेले की सुरक्षा में सुदृढ़ दीवार की तरह चप्पे-चप्पे पर खड़े नजर आ रहे हैं। मेला उद्घाटन की तिथि से ही सभी ड्यूटी दे रहे हैं।

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हरिहरक्षेत्र मेंले में एसपीओ का प्रयोग यहां पहली बार वर्ष 2008 में तत्कालीन डीएसपी और वर्तमान में पटना के ट्रैफिक एसपी प्रांतोष कुमार दास ने किया था। इस कार्य में नि:स्वार्थ भाव से सक्रिय भूमिका निभाने वाले इस क्षेत्र के युवाओं को जुटाने की जिम्मेदारी उन्होंने राजीव मुनमुन को दी थी। यह प्रयोग न केवल पूरी तरह सफल साबित हुआ बल्कि युवाओं ने अपने नि:स्वार्थ सेवा का यहां अदभूत मिसाल पेश किया। परिणामस्वरूप मेले में आये डीजीपी से लेकर अनेक बड़े अधिकारियों व राजनेताओं ने कम्युनिटी पुलिस के कार्यों की सराहना की। इस वर्ष भी अपराध निरोध प्रदर्शनी का हरिहरक्षेत्र मेला में उद्घाटन करने आए बिहार के पुलिस महानिदेशक पीके ठाकुर ने मेले में लगे कम्युनिटी पुलिस कैम्प प्रदर्शनी का अवलोकन किया। मेले में भीड़ नियंत्रण हो अथवा अपार जन सैलाब में किसी बच्चे का अपने परिजन से बिछड़ जाने का मामला, एसपीओ के युवा हर जगह तत्पर होते हैं।

इस बार भी मेल में अपने माता-पिता से भीड़ में बिछड़े लगभग 180 बच्चों को इन युवाओं ने ढूंढकर अनके परिजनों से मिलाया। सबसे अहम बात यह कि मेले में गत आठ वर्षो से कम्युनिटी पुलिस की तैनाती के बाद मेला में अपराध का ग्राफ शून्य पर आ गया। छिटपुट छोटी घटनाओं को छोड़ दें तो मेला अपराध मुक्त माना जाएगा। इसमें पुलिस के साथ-साथ एसपीओ के युवाओं के सहयोग को मेले के इतिहास में हमेशा याद किया जायेगा। कम्युनिटी पुलिस के इस सेवा भाव की विडंबना यह है कि सहयोग तो ये युवा सरकारी तंत्र और प्रशासन की करते हैं परन्तु खाते अपना हैं। मेला की व्यवस्था पर करोड़ों खर्च होता है लेकिन इन बेरोजगार युवाओं पर कुछ भी नहीं। इसकी परवाह किए बगैर काफी उत्साह और उमंग के साथ फिर भी ये युवा अपनी ड्यूटी मुस्तैदी के साथ कर रहे हैं।


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