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लोक संस्कृति के साथ-साथ आधुनिकता का तड़का भी

विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला पूरे देश में शुमार है। गौरवशाली लोक सांस्कृतिक परंपरा के साथ-साथ कई धार्मिक व पौराणिक मान्यताएं भी हैं।

By Edited By: Published: Tue, 22 Nov 2016 02:51 AM (IST)Updated: Tue, 22 Nov 2016 02:51 AM (IST)
लोक संस्कृति के साथ-साथ आधुनिकता का तड़का भी

वैशाली। विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला पूरे देश में शुमार है। गौरवशाली लोक सांस्कृतिक परंपरा के साथ-साथ कई धार्मिक व पौराणिक मान्यताएं भी हैं। लोगों की आस्था के केंद्र में बाबा हरिहरनाथ का मंदिर। सबसे बड़े पशु मेले का गौरवशाली इतिहास भी है सोनपुर मेला। मेले के गौरवशाली इतिहास, पौराणिकता, समृद्ध लोक संस्कृति की झलक व धार्मिक पहलुओं के विषय में जितना लिखा जाये शायद कम होगा। कभी यहां मौर्यकालीन राजा-महाराजा हाथी खरीदने आया करते थे। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लाखों श्रद्धालु मोक्ष की कामना के साथ पवित्र गंगा और गंडक नदी में डुबकी लगाने आते हैं। इन सबसे अलग हट कर हाल के दो-ढाई दशकों में मेले की लोक संस्कृति पर धीरे-धीरे आधुनिकता का रंग चढ़ने लगा।

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दामन में कई संस्कृतियों को संजोए हुए है हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला

आधुनिकता की अंधी दौड़ में लोग लोक संस्कृति को भूल पाश्चात्य संस्कृति की ओर तेजी से मुड़ने लगे। धीरे-धीरे आधुनिकता व पाश्चात्य संस्कृति मेले पर हावी होने लगी। पारंपरिक दुकानों की जगह नामीगिरामी कंपनियों के प्रदर्शनी स्टॉल लगने लगे। थियेटरों ने भी मेले में अपनी खास पहचान बना तो लिया। धीरे-धीरे इनकी संख्या भी बढ़ने लगी। पहले दो, फिर चार, पांच, नौ और पिछली बार रिकार्ड रहा कि इस मेले में 11 थियेटर लगाए गए। हालांकि इस बार थियेटरों की संख्या घट कर नौ हो गई। कई सरकारी गैर सरकारी कंपनियों की प्रदर्शनियां सजधज कर तैयार हैं तो कुछ अभी निर्माणाधीण हैं। इन सबके बावजूद हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला अपने दामन में कई संस्कृतियों को संजोए दिखती है।

आधुनिकता के दौड़ में भी कायम है लोक संस्कृति

धीरे-धीरे हाईटेक होते सोनपुर मेले में जहां एक ओर पाश्चात्य संस्कृति के साथ-साथ आधुनिक दौर की झलक देखने को मिल रही है। वहीं मेले के एक हिस्से में आज भी लोक संस्कृति और परंपरा कायम है। मेले के एक हिस्से में कई नामी-गिरामी कंपनियों व सरकारी विभागों की आकर्षक प्रदर्शनियां लगी हैं। रोजमर्रा की जरूरत से लेकर सौंदर्य प्रसाधन की दुकानें सजी हैं। वहीं मेला के चिड़िया बाजार, साधु गाछी, ड्रोलिया ¨सदुर से मंदिर जाने वाले रास्ते में कई ऐसी दुकानें भी सजी हैं जहां घरेलु उपयोग में आने वाले जरूरत की चीजों के अलावा पारंपरिक सौंदर्य प्रसाधन, पारंपरिक हथियार समेत कई तरह की दुकानें सजी हैं। या यूं कहें कि मेले के एक हिस्से में जहां आधुनिक युग की झलक दिख रही है वहीं मेले के दूसरे हिस्से में आज भी पारंपरिक लोक संस्कृति कायम है। दोनों में अंतर भी साफ झलक रहा है। एक ओर जहां आकर्षक पंडालों में सजी-धजी दुकानें वहीं दूसरे हिस्से में पारंपरिक अंदाज में टेंट-तिरपाल लगाकर बिना किसी तामझाम के बिलकुल शांत व गंवई अंदाज में सजी दुकानें। दोनों ही जगह खरीददारों की भारी भीड़। मेले का यह विविध रूप यहां आने वाले देशी-विदेशी सैलानियों को खूब लुभा रहा है।

मेले में लोगों को लुभा रही हस्तशिल्प

हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला का एक रंग हस्तशिल्प व हस्तनिर्मित वस्तुओं का आकर्षण भी है। मेला के क्राफ्ट बाजार, ग्रामश्री मंडप व फूटपाथी दुकानों पर हस्तशिल्प व हस्तनिर्मित साज-सज्जा, घरेलु उपयोग व गर्म कपड़े लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इन स्टॉलों पर लोगों की भारी भीड़ खरीदारी को उमड़ रही है। कहीं बांस, तो कहीं सीक, जूट तो कहीं हाथ से बुने गए कपड़े व अन्य सामानों की लोग जमकर खरीदारी कर रहे हैं।


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