मौसम की मार के चलते अपेक्षा अनुरूप नहीं हो सकी फसल
सुपौल। धान की फसल मौसम की मार के कारण अपेक्षा के अनुरूप नहीं हुई है। कहीं बाढ़ की म
सुपौल। धान की फसल मौसम की मार के कारण अपेक्षा के अनुरूप नहीं हुई है। कहीं बाढ़ की मार तो कहीं समय से बारिश नहीं होने के कारण धान का उत्पादन अपेक्षा के अनुरूप होने की संभावना नहीं है। कुछ समय के बाद ही पूरे जिले में रबी अभियान की शुरुआत हो गई है। ऐसे में रबी अभियान के दौरान किसानों को खेती के लिए पूंजी की जरुरत है। पूंजी की समस्या को दूर करने के लिए सरकार ने किसानों को तत्काल आर्थिक मदद देने के उद्देश्य से किसान क्रेडिट कार्ड योजना की शुरुआत की थी। खेती के मौसम में किसानों को आर्थिक तंगी जैसी समस्या से निबटने के लिए इस महत्वाकांक्षी योजना को सरकार ने धरातल पर उतारा। इस योजना में हर तरह के किसानों को लाभ देने की व्यवस्था है। लेकिन सरकारी स्तर पर ज्यों-ज्यों योजना के स्वरूप में विस्तार किया जा रहा है, किसानों का दर्द भी बढ़ता जा रहा है। योजनाओं का लाभ लेने के लिए बैंकों का रवैया उबाउ और परेशानी देने वाला है। यही कारण है कि आजतक इस योजना मद में लक्ष्य के अनुरूप शत-प्रतिशत लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सका है। आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि वर्तमान वित्तीय वर्ष में छह माह का लंबा समय गुजर गया है और तमाम बैंक लक्ष्य के विरुद्ध केवल 25 से 26 प्रतिशत किसानों को ही ऋण उपलब्ध करा सके हैं।
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कहां फंसा है पेंच
किसान क्रेडिट कार्ड बनने का इंतजार कर रहे किसानों की मानें तो केसीसी उपलब्ध कराने में सबसे बड़ा पेंच बैंक है। बैंकों में में कार्य की सुलभता के बदले तनाव ही मिला करता है। कभी भू-स्वामित्व प्रमाण पत्र के नाम पर तो कभी किसानों के वास्तविक भूमि की जांच के नाम पर उन्हें प्रताड़ित किया जाता है।
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क्या है नियम
नियमों की बात करें तो किसानों को क्रेडिट कार्ड देने के लिए भू-स्वामित्व प्रमाण पत्र के साथ वंशावली के संबंध में एक शपथ पत्र की जरुरत होती है। यह कार्य किसानों द्वारा एक दिन में पूर्ण कर दिया जाता है। ये कागजात प्राप्त होने के बाद बैंकों को तत्काल ही किसानों के नाम पर क्रेडिट कार्ड स्वीकृत कर दिये जाने का प्रावधान है।
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असफल रहे ऋण कैंप
किसानों को केसीसी उपलब्ध कराने के लिए सरकार के निर्देश पर जिला व प्रखंड स्तर पर ऋण कैंपों का आयोजन किया जाता है। लेकिन इसके बाद भी कैंप में नाममात्र के ही किसानों को ऋण स्वीकृत किया जाता है। सरकारी आंकड़े इस बात की पुष्टि करने के लिए काफी हैं।
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कड़ी निगरानी की दरकार
किसानों की मानें तो बैंकों में अगर प्रशासनिक स्तर पर ऋण वितरण कार्यो की कड़ी निगरानी की जाए तथा हरेक दिन के कार्यो का प्रगति प्रतिवेदन मांगा जाए तो स्थिति में बदलाव हो सकता है। मोहन यादव नामक किसान की मानें तो कड़ी निगरानी से ही बैंकों की मनमानी पर लगाम लगाया जा सकता है। इसी प्रकार रामजी प्रसाद यादव, मदन, मंडल अवध यादव जैसे किसान भी इस बात से सहमत दिखते हैं कि ऋण नहीं देने वाले किसानों पर आधिकारिक तौर पर कड़ी कार्रवाई से ही स्थिति पर लगाम लग सकेगा।