मकर संक्राति के अवसर पर बाजारों में तिलकुट की बहार
मकर संक्राति का मौका है और दही चूड़ा की बात न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। यह पर्व ही दही-चूड़ा के पर्व के नाम से जाना जाता है। लोग मकर संक्रांति के मौके पर दही-चूड़ा के साथ-साथ तिलकुट घेवर आदि का लुत्फ उठाते हैं। पर अब तो इलाके में दही के भी लाले हैं। दही के इलाके में अब डिब्बे की दही से काम चल रहा है। एक जमाना था कोसी का दही खाने के लिए लोग लालायित थे। यहां दही के बारे में मशहूर था कि अगर इसे दीवार पर फेंक दिया जाए तो यह गिरेगा नहीं।
जागरण संवाददाता, सुपौल: मकर संक्रांति में तिल व तिल से बने सामग्री का खासा महत्व है। लोग तिल से मुंह जुठाकर व तिल दान कर मकर संक्रांति का पर्व मनाते हैं। मकर संक्रांति को ले बाजारों में तिलकुट व तिल से बने सामग्रियों की दुकानें सजी थी और लोग आकर्षित होकर जमकर खरीदारी कर रहे थे। तिलकुट कई तरह से बनाये जाते हैं। कुछ तिलुकट तिल व गुड़ से बनता है तो कुछ तिल व चीनी से। इसके अलावा तिल की लाई आदि भी बनाये व बेचे जाते हैं। इस बार बाजार में गया के कारीगरों द्वारा तिलकुट बनाया जा रहा और बेचा जा रहा है। इससे पूर्व स्थानीय दुकानदार गया, पटना, भागलपुर आदि से तिलकुट मंगा कर बेचा करते थे। वहीं स्थानीय स्तर पर भी बनाये जाने वाले तिलकुट की मांग रहती है। इस बार बाजार में उपलब्ध तिलकुट की कीमत से 400 से 500 रुपये प्रति किलो तक है। मकर संक्रांति को ले लोग तिलकुट की खरीदारी कर रहे हैं और बाजारों में तिलकुट की बहार दिखाई देने लगी है।