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आधुनिक मनोरंजन के साधनों के बीच लुप्त हो गई कहानी

एसएसबी के सामाजिक जागरूकता कार्यक्रम के तहत रतनपुर थाना क्षेत्र के सातनेपट्टी पंचायत स्थित मध्य विद्यालय में शनिवार को निश्शुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया। इस दौरान एसएसबी के चिकित्सक डॉ. चैतन्या ने 200 मरीजों की जांचकर उन्हें दवा दी। इस बारे में एसएसबी 45वीं बटालियन वीरपुर के कमांडेंट एचके गुप्ता ने बताया कि सिविक एक्शन प्रोग्राम के तहत इस कैंप का आयोजन किया गया।

By JagranEdited By: Published: Mon, 14 Oct 2019 07:06 PM (IST)Updated: Tue, 15 Oct 2019 06:11 AM (IST)
आधुनिक मनोरंजन के साधनों के बीच लुप्त हो गई कहानी

संवाद सूत्र, कटैया-निर्मली(सुपौल): नानी-दादी से तोता-मैना, राजा-रानी आदि की कहानी अब शायद ही बच्चे सुन पाते हैं। पहले कछुआ, खरगोश और चूहे आदि की कहानियां बच्चों को मनोरंजन के साथ-साथ पर्यावरण से भी जोड़ती थी। रामायण, महाभारत, वेद-पुराण की कहानियां और लोक कथाएं बच्चों में संस्कार जगाती थी मगर कहानी कहने-सुनने की परंपरा अब मनोरंजन के आधुनिक साधनों के बीच लुप्त होती जा रही है। फिल्म और टीवी ने बच्चों में कल्पनाशीलता को खत्म कर दिया है। अपने देश की संस्कृति, परंपरा, इतिहास और सामाजिक मूल्यों से जुड़ी कहानियों के प्रति उनमें जिज्ञासा अब घटती जा रही है।

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-एकल परिवार जिम्मेदार

भारी-भरकम स्कूल बैग और भीषण प्रतिस्पर्धा ने बच्चों को असमय ही तनावग्रस्त बना दिया है। एकल परिवार के कारण अधिकांश बच्चे दादा-दादी से दूर हो गए हैं। पहले एक ही घर में माता-पिता, दादा-दादी, बुआ, चाचा-चाची आदि रहते थे। उनसे कहानियां सुनने के लोभ में बच्चे उनके पीछे लगे रहते थे और उनकी सेवा भी करते थे।

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रहन-सहन में आई तब्दीली

कटैया माहे की मुखिया का कहना है कि टीवी और कंप्यूटर ने बच्चों को एकाकी बना दिया है। अब उनमें जिज्ञासा खत्म होती जा रही है। रतौली की प्रभा देवी कहती हैं कि पहले बच्चे पांच साल तक खेलकूद में ही दिन बिताते थे। लेकिन अब ढाई साल का बच्चा भी भारी बस्ता उठाए स्कूल जाता है। तुलापट्टी के मुखिया लक्ष्मीकांत भारती कहते हैं कि इस व्यस्ततम दौर में माता-पिता के पास बच्चों के साथ बात करने का वक्त ही नहीं है। ऐसे में बच्चे अपना ज्यादातर समय टीवी, वीडियो गेम आदि में बिताते हैं। थुमहा के मुखिया रामप्रसाद मंडल बताते हैं कि दादी-नानी से कहानी सुनकर बच्चे कई प्रकार की प्रेरणा ग्रहण करते थे। उससे बच्चों का चरित्र निर्माण भी होता था। नन्हा हिमांशु कहता है कि दादा-दादी से हम दूर रहते हैं, इसलिए उनकी गोद में लेटकर कहानी सुनने का मौका नहीं मिलता है।


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