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अजन्मा रहते भी जन्म ग्रहण करते हैं भगवान श्रीकृष्ण : आचार्य

सुपौल। ब्रह्मा महेश इंद्र आदि प्रधान देवगण जिनके श्रीचरण-कमलों में पूर्ण सहित नम्रभाव से अपने

By JagranEdited By: Published: Mon, 10 Aug 2020 07:02 PM (IST)Updated: Tue, 11 Aug 2020 06:11 AM (IST)
अजन्मा रहते भी जन्म ग्रहण करते हैं भगवान श्रीकृष्ण : आचार्य
अजन्मा रहते भी जन्म ग्रहण करते हैं भगवान श्रीकृष्ण : आचार्य

सुपौल। ब्रह्मा, महेश, इंद्र आदि प्रधान देवगण जिनके श्रीचरण-कमलों में पूर्ण सहित नम्रभाव से अपने मणिमय मुकुटों को स्पर्श कराते हुए वंदना करते हैं, ऐसे नव नटनागर भगवान श्रीकृष्ण ने निज भक्तों को भवसागर से पार करने के लिए ही लोक विलक्षण अछ्वुत दिव्य मंगल विग्रह धारण किया था। वे अनंत, अचिन्त्य तथा स्वभाव से ही ज्ञान, ऐश्वर्य, करुणा, वात्सल्य, दया, सौंदर्य, माधुर्य आदि कल्याणकारी गुणों के सागर हैं। श्रीकृष्ण ही सच्चिदानंद स्वरूप अनंत और अचिन्त्य स्वभाविक शक्ति वैभव का आश्रयकर असीम आनंद प्रदान करते हैं। इस बार अमृत एवं सिद्ध योग में 11 अगस्त यानि मंगलवार को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाया जाएगा। कृष्ण जन्माष्टमी व्रत श्रीकृष्ण के अवतार रहस्य पर प्रकाश डालते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण अजन्मा रहते हुए भी जन्म ग्रहण करते हैं। अव्यय आत्मा अविनाशी रहते हुए भी प्रकट हो जाते हैं। अनंत लोकों के अनंत प्राणियों के सर्वतंत्र, स्वतन्त्र महान ईश्वर रहते हुए माता-पिता व बंधु-बांधव आदि के तथा प्रेमी भक्तों के पराधीन प्रतीत होते हैं। प्राकृत जगत में अप्राकृत लीला करने के लिए भगवान अपनी प्रकृति में अधिष्ठत रहकर अपनी माया से प्रकट होते हैं। आचार्य ने बताया कि भगवान की तीन प्रकृतियां हैं। अपरा प्रकृति, परा प्रकृति और उनकी अपनी प्रकृति जो स्वयं प्रकृति है, जिसमें लीला के समय भगवान अधिष्ठित रहते हैं। यही अंतरंगा विशुद्ध भगवत्स्वरूप है। इसी प्रकार भगवान के माया के भी अनेक रूप हैं, जिस माया से भगवान स्वयं लीला संपादन करते हैं। वह माया भगवान की निज माया है। इसी का नाम योगमाया अथवा भगवान की स्वरूपभूता लीला है। यह योगमाया ही भगवान की लीला की सारी व्यवस्था करती है। आचार्य ने भगवान के अवतार के तीन हेतु का अर्थ बताते हुए कहा कि साधुओं का परित्राण, दुष्कृतों का विनाश और धर्म का संस्थापन करके विशुद्ध सनातन मानवधर्म की स्थापना ही मुख्य उद्देश्य था। बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं अर्जुन से कहा था कि हे अर्जुन मेरे जन्म और कर्म दिव्य अप्राकृत अलौकिक है। हर वर्ष कृष्णाष्टमी महापर्व मनाने का अर्थ यही होना चाहिए कि बुराइयों को समाप्त करें। तभी समाज व विश्व की दशा एवं दिशा बदलेगी। ऐसे भगवान की भक्ति पूर्ण श्रद्धा व विश्वास से भक्तिपूर्ण माहौल में मनानी चाहिए।

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---------------------------------- निष्ठा पूर्वक करें आराधना

आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर श्रद्धालुओं को व्रत एवं पूजन करने की विधि विधान बताते हुए कहा कि मंगलवार को जन्माष्टमी के दिन पूरे निष्ठापूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए दिनभर उपवास रखकर रात्रि के 12 बजे में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के उपरांत व्रती जातकों को फलाहार करना चाहिए। फलाहार में सेब, केला, गाय के दूध में मखान या साबूदाना का खीर बना कर फलाहार करना चाहिए। इसके बाद बुधवार को प्रात:काल में स्नानादि करके उपवासक को विधि-विधान पूर्वक भगवान श्रीकृष्ण की 16 उपचारों के साथ पूजन, पुष्पांजलि एवं आरती कर ब्राह्मण भोग करवाने से व्रत पूर्ण माना जाता है। साथ ही आचार्य ने बताया कि जो भक्त उपवास नहीं कर सकते हैं। वे रात्रि जागरण कर इस पुण्य के भागी बन सकते हैं।


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