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27 देवताओं के प्रतीक हैं त्रिपुंड चंदन : आचार्य

संवाद सूत्र करजाईन बाजार (सुपौल) शिव के प्रिय मास श्रावण में भक्त पूरी तरह शिवभक्ति में लीन

By JagranEdited By: Published: Mon, 02 Aug 2021 05:32 PM (IST)Updated: Mon, 02 Aug 2021 05:32 PM (IST)
27 देवताओं के प्रतीक हैं त्रिपुंड चंदन : आचार्य
27 देवताओं के प्रतीक हैं त्रिपुंड चंदन : आचार्य

संवाद सूत्र, करजाईन बाजार (सुपौल): शिव के प्रिय मास श्रावण में भक्त पूरी तरह शिवभक्ति में लीन हैं। हिंदू सनातन धर्मशास्त्र में भाल अर्थात ललाट को त्रिपुंड से अलंकृत करने की परंपरा वैदिक ऋषि-मुनि एवं पूर्वजों से विरासत में मिली है। सावन में शिव भक्त के मस्तक पर त्रिपुंड चंदन सुशोभित दिखते हैं। इसे देखने के बाद एक जिज्ञासा मन में उभरती रहती है कि क्या त्रिपुंड हमारे सद्गुरुओं, ऋषियों, साधु समाज एवं आचार्यों के सिर का श्रृंगार मात्र है या उनके द्वारा समाज कल्याण के लिए किए गए समर्पण का प्रतीक है। सावन की दूसरी सोमवारी के मौके पर त्रिपुंड चंदन करने के आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक महात्म्य बताते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि सनत्कुमार ने कालाग्नि रुद्रदेव से त्रिपुंड धारण से संबंधित प्रश्न पूछने के बाद कालाग्नि रुद्रदेव ने जवाब देते हुए कहा कि ललाट पर तीन रेखाएं बनाई जाती हैं जिसे त्रिपुंड कहते हैं। त्रिपुंड की प्रत्येक रेखा अपने अंदर आध्यात्मिक एवं मार्मिक संदेश को समेटे है। ग्राह्यपत्य अग्नि, अकार, भूलोक स्वांत्मक, रजोगुण, ऋग्वेद, क्रियाशक्ति, प्रात: सवन तथा महेश्वर ये त्रिपुंड की पहली रेखा के नौ देवता हैं। दूसरी रेखा के अंदर उकान, दक्षिणाग्नि, आकाश, सत्वगुण, यजुर्वेद, मध्यंदिन सवन, इच्छाशक्ति, अंतर्रात्मा और सदाशिव आते हैं। तीसरी रेखा के अंदर मकार, आह्वानीय अग्नि, परमात्मा, तमोगुण, धुलोक, ज्ञानशक्ति, सामवेद, तृतीयसवन तथा महादेव समाहित हैं। अर्थात त्रिपुंड की तीनों रेखाएं 27 देवताओं के प्रतीक हैं। इसके अतिरिक्त त्रिपुंड की तीन रेखाएं हमारे शरीर की तीन नाड़ियों ईड़ा, पिगला व सुषुम्ना की भी सूचक मानी जाती है। आचार्य ने बताया कि सभी धर्मग्रंथ में इस बात का जिक्र है कि ये 27 देवताएं मानव देह के विभिन्न अंगों में विराजमान रहते हैं। ये शक्तियां या ऊर्जाएं मानव शरीर की विभिन्न क्रियाओं को सक्रिय रखती हैं। लेकिन देह का संचालन सुचारू एवं जागृत रूप से हो इसके लिए आवश्यक है कि ये सभी शक्तियां परम चेतना के अधीन कार्य करें। त्रिपुंड इसी पक्ष को उजागर एवं मजबूत करते हैं। वास्तव में ललाट का वह भाग, जहां त्रिपुंड सुशोभित होता है। वह आत्मा या आत्म शक्ति का निवास स्थान माना जाता है। योग शास्त्र एवं धर्मग्रंथों में मस्तक के इस पवित्र भाग को ह्रदय गुहा या आज्ञा चक्र की संज्ञा दी गई है। आचार्य ने बताया कि उपनिषद आदि ग्रंथों में कहा गया है कि आत्मा महान, दिव्य व अचिन्त्य स्वरूप है। वह अति सूक्ष्म रूप में प्रकाशित होता है। वह आत्मा तत्व देखनेवालों ह्रदयरूपी गुहा अर्थात आज्ञाचक्र में ही स्थित है। यही कारण है कि वैदिक, पौराणिक या प्राचीनकाल में केवल तत्वज्ञानी मनीषी या ब्रह्मज्ञान में दीक्षित व अभ्यासी साधक आचार्य ही त्रिपुंड धारण किया करते थे।

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