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पहले खर्च था नहीं के बराबर, चंदे से चुनाव लड़ते थे प्रत्याशी

संवाद सूत्र, मरौना (सुपौल): पहले के पंचायत चुनाव और अभी के चुनाव में काफी अंतर है। अभी का पंचायत चुन

By JagranEdited By: Published: Wed, 22 Sep 2021 05:30 PM (IST)Updated: Wed, 22 Sep 2021 05:30 PM (IST)
पहले खर्च था नहीं के बराबर, चंदे से चुनाव लड़ते थे प्रत्याशी

संवाद सूत्र, मरौना (सुपौल): पहले के पंचायत चुनाव और अभी के चुनाव में काफी अंतर है। अभी का पंचायत चुनाव बिहार विधानसभा चुनाव से कम नहीं है। अभी के पंचायत चुनाव के प्रत्याशी धनबल, छल बल के सहारे कुर्सी हथियाने की जुगत में रहते हैं। जनता से झूठे वादे कर उन्हें गुमराह कर अपनी कुर्सी लेते हैं। अभी देखा जाए तो सेवा और विकास के सहारे चुनाव जीतने की बहुत कम लोग में ही क्षमता है। जनप्रतिनिधियों और मतदाताओं का संबंध दुकानदार तथा ग्राहक जैसा हो गया है। लेकिन 35 वर्ष पहले की बात करेंगे तो ऐसी स्थिति नहीं थी। उस समय केवल मुखिया और सरपंच का चुनाव हुआ करता था। पंचायत के सरपंच मुख्य लोग हुआ करते थे। चुनाव में नामांकन के अलावा और कोई खर्च नहीं होता था। अभी चुनाव लड़ना एवं जीत हासिल करना पूर्ण रूप से व्यवसाय बन गया गया है और बनता जा रहा है। मतदाता पैसे के कारण प्रत्याशी के पास विकास की बात करने का साहस नहीं कर पाते हैं। स्थिति जस की तस बनी रह जाती है। इसके दुष्परिणाम अब सामने आने लगे हैं। हररी पंचायत अंतर्गत गिदराही गांव के पूर्व पैक्स अध्यक्ष राधे प्रसाद यादव यह बात बताते हुए कहते हैं कि उनके जमाने में 30-40 साल पहले मुखिया चेक नहीं काटते थे। उन्हें घर से ही खर्च करना पड़ता था। इसलिए उस समय चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को समर्थक मतदाता ही चंदा देते थे। गांव के पढ़े लिखे या फिर सामाजिक कार्यकर्ता ही चुनाव मैदान में आने की हिम्मत करते थे। चुनाव काफी साफ-सुथरा होता था। प्रत्याशी को खर्च नहीं के बराबर होता था। उस समय के मुखिया, सरपंच सबकी बात बराबर सुनते थे लेकिन आज के प्रतिनिधि के पास कई तरह के विशेष व्यक्ति रहते हैं जिसके माध्यम से बातें सुनी जाती हैं।

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