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इस सावन नहीं रहेगी गेरुआ रंग की बहार

-श्रावणी मेले के आयोजन पर कोरोना संक्रमण के कारण लगाई गई है रोक -जिले में प्रभावित हु

By JagranEdited By: Published: Wed, 21 Jul 2021 06:42 PM (IST)Updated: Wed, 21 Jul 2021 06:42 PM (IST)
इस सावन नहीं रहेगी गेरुआ रंग की बहार
इस सावन नहीं रहेगी गेरुआ रंग की बहार

-श्रावणी मेले के आयोजन पर कोरोना संक्रमण के कारण लगाई गई है रोक

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-जिले में प्रभावित हुआ दो करोड़ से अधिक का गेरुआ कपड़े का कारोबार

जागरण संवददाता, सुपौल : सावन चढ़ते ही प्रकृति जहां हरे रंग की चादर ओढ़ लेती है वहीं बाजार सावन चढ़ने से पहले गेरुआ रंग से रंग जाता था। पिछले साल तक यह नजारा आम था। कोरोना संक्रमण के कारण श्रावणी मेला के आयोजन पर रोक लगाए जाने के बाद जिले में दो करोड़ से अधिक का गेरुआ रंग के कपड़ों का कारोबार प्रभावित हुआ है। इस सावन गेरुआ रंग की बहार बाजार में नहीं रहेगी। ना तो लोग झारखंड स्थित बाबाधाम पूजा के लिए जाएंगे और स्थानीय स्तर पर भी श्रावणी मेले पर रोक लगाई गई है। इसे देखते हुए व्यवसायियों ने भी गेरुआ वस्त्र नहीं मंगाए हैं।

शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव की पूजा के लिए सावन का महीना सबसे पवित्र माना गया है। इस महीने शिवलिग पर जलार्पण से महादेव अत्यंत प्रसन्न होते हैं। शास्त्रों के मान्यता के कारण अन्य जगहों के अलावा इस जिले से भी हजारों की संख्या में लोग सावन और भादो महीने में बाबाधाम कांवर लेकर जाते हैं। कांवरियों के वस्त्र का रंग गेरुआ होता है। इसलिए इन दो महीने में गेरुआ रंग के कपड़ों का दो करोड़ से अधिक का कारोबार होता था। वस्त्रों के थोक विक्रेता रानू कुमार, सानू कुमार के रानू बताते हैं कि कोरोना संक्रमण के कारण पिछले साल भी बाबाधाम में श्रावणी मेले पर रोक लगा दी गई थी। दुकानदारों के पास पिछले साल के बचे हुए जो गेरुआ कपड़े थे उसकी बिक्री भी नहीं हुई। इस साल भी श्रावणी मेला के आयोजन पर रोक लगा दी गई है। उन्होंने बताया कि यहां के कपड़ों के सभी थोक विक्रेताओं को मिलाकर गेरुआ कपड़े का दो करोड़ से अधिक का कारोबार सावन और भादो महीने में होता था जो श्रावणी मेले का आयोजन बंद होने से खत्म हो गया है। कहा कि वस्त्रों के निर्माता भी अब गेरुआ रंग के कपड़ों की तैयारी उस तरह नहीं करते जिस तरह कोरोना संक्रमण से पहले करते थे। बता दें कि पूर्व में सावन चढ़ते ही कपड़ों की दुकानों पर गेरुआ वस्त्र टंगे मिलते थे। सड़कों पर जगह-जगह कांवड़ियों का झ़ुंड ²श्य को गेरुआमय बना देते थे। यह नजारा अब देखने को नहीं मिल रहा।


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