वर्षों से नहीं है इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन, जुगाड़ से चल रहा काम
--------------------------------------------- जागरण संवाददाता सुपौल बड़ी-बड़ी इमारतों वा
--------------------------------------------- जागरण संवाददाता, सुपौल: बड़ी-बड़ी इमारतों वाला सदर अस्पताल आज भी सामान्य रोगों के इलाज से उपर नहीं उठ पाया है। किसी भी इमरजेंसी की स्थिति में यहां से रेफर किया जाना निश्चित है। एक-दो विभागों को छोड़ दें तो यहां विशेषज्ञ तो हैं ही नहीं। सरकार ने संरचनाओं को तो आकर्षक बना दिया, जरूरत के हिसाब से बड़ी-बड़ी मशीनें भी आपूर्ति कर दी जा रही हैं लेकिन उसे हेंडिल कौन करेगा इसके लिए आदमी ही नहीं होता है। गंभीर बात तो यह है कि इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन (ड्रेसर) के सेवानिवृत्त होने पर यहां आज तक पदस्थापना नहीं हो सकी। इमरजेंसी वार्ड में आज भी जुगाड़ तकनीक से काम चलाया जा रहा है।
यहां कई विशेषज्ञ चिकित्सक के पद वर्षों से खाली हैं। इस कारण मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिलने की बात तो दूर सामान्य स्वास्थ्य सुविधा भी नहीं मिल पा रही है। गरीब तबके के मरीजों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इतना ही नहीं सामान्य जांच तो हा जा रही है लेकिन बांकी के लिए परेशानी बनी हुई है। जांच अस्पताल में भी लैब टेक्नीशियन के भरोसे है किसी पैथोलाजिस्ट के भरोसे नहीं। अन्य मशीनों की तरह ईसीजी मशीन भी यहां यूं ही पड़ी हुई है। मरीजों को इसके लिए निजी जांच केंद्र में जाना होता है। नतीजा है कि मरीजों को इलाज के लिए अस्पताल से बाहर रूख करना पड़ता है। सदर अस्पताल में अल्ट्रासाउंड जांच केंद्र तो पिछले छह महीने से बंद है। बीते शनिवार को सीने में दर्द की शिकायत लेकर सदर अस्पताल इलाज के लिए आई एक महिला मरीज को रविवार की सुबह ईसीजी कराने एक निजी जांच केंद्र में जाना पड़ा, जहां उसकी तबीयत अधिक खराब हो गई। पुन: जबतक उसे अस्पताल लाया गया तब तक उसकी मौत हो गई।
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सड़ रही ईसीजी मशीन
वर्षों पूर्व सदर अस्पताल को ईसीजी मशीन उपलब्ध करवाया गया था, लेकिन आज तक उस मशीन का उपयोग नहीं हो पाया है। यूं कहा जाय कि ईसीजी मशीन रखे-रखे अस्पताल में सड़ रही है। सदर अस्पताल में औसतन चार से पांच मरीजों को ईसीजी जांच करवाने की सलाह चिकित्सक द्वारा दी ही जाती है, लेकिन ईसीजी नहीं होने के चलते मरीजों को निजी जांच केन्द्र में जाना पड़ता है। जहां चार सौ से पांच सौ रुपये व्यय करना पड़ता है। वहीं अल्ट्रासाउंड जांच सिर्फ ओपीडी के समय ही होता है जिसके चलते अल्ट्रासाउंड कक्ष के पास मरीजों की काफी भीड़ लग जाती है।
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शाम के बाद नहीं होता सिजेरियन
सदर अस्पताल में मूर्छक के दो पद हैं, लेकिन एक भी पदस्थापित नहीं है। एक व्यवस्था के तहत सप्ताह में तीन दिन तय है जिसमें मूर्छक की ड़यूटी दिन में होती है। नतीजा है कि यहां शाम के बाद एक भी सिजेरियन नहीं होता। निर्धारित दिन के अलावा यदि सिजेरियन की नौबत आई तो उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। इसके अलावा यहां स्त्री रोग विशेषज्ञ के दो,पैथोलाजिस्ट के दो व ईएनटी के एक पद सृजित हैं जिसमें से एक भी पदस्थापित नहीं है। फिलहाल मूर्छक व स्त्री रोग विशेषज्ञ का काम डिपुटेशन पर चल रहा है। वहीं जेनरल सर्जन के तीन पद में से एक, फिजिसियन के तीन पद में से दो, दंत चिकित्सक के दो पद में से एक, शिशु रोग विशेषज्ञ के दो पद में से एक, रोडियोलाजिस्ट के दो पद में से एक ही पदस्थापित हैं। हालांकि विभाग द्वारा विशेषज्ञों की कमी के बाबत बार-बार विभाग को लिखा जाता रहा है लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात वाली ही बनी हुई है।