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जागरण विशेष:::::::विदेशी पक्षियों के कलरव से गूंजेगा कोसी

नौकरी मामले में आज देश मंदी के दौर से गुजर रहा है। निजी सेक्टरों में काम कर रहे करीब नब्बे लाख लोगों की नौकरी चली गई है। बिहार में विकास की स्थिति निराशाजनक बनी हुई है। नीतीश सरकार दबाव में काम करने को मजबूर है। सरकार की स्थिति ऐसी है कि वे चाहकर भी बलात्कार हत्या डकैती जैसे जघन्य अपराध पर लगाम नहीं लगा पा रही है। उक्त बातें कांग्रेस नेत्री सह पूर्व सांसद रंजीत रंजन ने शुक्रवार को एक प्रेस वार्ता के दौरान कही।

By JagranEdited By: Published: Sat, 16 Nov 2019 04:46 PM (IST)Updated: Sat, 16 Nov 2019 04:46 PM (IST)
जागरण विशेष:::::::विदेशी पक्षियों के कलरव से गूंजेगा कोसी
जागरण विशेष:::::::विदेशी पक्षियों के कलरव से गूंजेगा कोसी

-भोजन व वंश वृद्धि की आस लिए भारतीय भूभाग का रूख करते हैं विदेशी पक्षी

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-कोसी का कछार और जल की अधिकता प्रवासी पक्षियों को रिझाने में सदैव रही है आगे

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मिथिलेश कुमार, सुपौल: विविधताओं से भरे इस धरा पर प्रकृति के संतुलन के तरीके नायाब हैं। मौसम के अनुकूल प्रकृति खुद व खुद परिस्थितियों को नियंत्रित करती है। प्रकृति के संतुलन का ही नतीजा है कि शरद ऋतु में दूर देश से विदेशी मेहमान भोजन व वंश वृद्धि की आस लिए भारतीय भूभाग का रूख करते हैं। खुशमिजाज मौसम के कारण ही मेहमानों की तादाद बढ़ जाती है और उनके कलरव से कोसी का यह इलाका वीराने में भी गुलजार हो जाता है। हम बात कर रहे हैं उन प्रवासी पक्षियों की जो ठंड के मौसम में साईबेरिया, यूगोस्लाबिया, डेनमार्क, थाइलैंड, चीन सहित अन्य देश से हजारों मील की दूरी तय कर भोजन की तलाश में आते हैं। मालूम हो कि कोसी का कछार और जल की अधिकता प्रवासी पक्षियों को रिझाने में सदैव आगे रही है। भले ही यह इलाका पर्यटन स्थल नहीं बन पाया हो, लेकिन जाड़े का मौसम आते ही कोसी का इलाका प्रवासी पक्षियों का पर्यटन स्थल बन जाता है। एक समय था जब जाड़े के मौसम में कोसी वासियों की नींद प्रवासी पक्षियों के कलरव से खुलती थी। कभी प्रवासी पक्षियों के लिए कोसी का इलाका स्वर्ग माना जाता था। सर्दी के मौसम में यह इलाका प्रवासी पक्षियों को खूब भाता था। कुहासे भरी सुबह में कोसी नदी व इस इलाके के जल जमाव वाले भाग (चर) में इन पक्षियों की अठखेलियां व जल क्रीड़ा देखते बनती थी। जानकारी अनुसार नवंबर माह से इन विदेशी मेहमानों का आगमन शुरू हो जाता है, लेकिन पन्द्रह नवंबर के बाद यह सिलसिला काफी तेज हो जाता है। फरवरी-मार्च के बाद ये अपने देश लौटना शुरू कर देते हैं। जानकारों के अनुसार इस समय यहां का मौसम इनके प्रजनन के अनुकूल होता है और यहां आकर अपनी वंशवृद्धि करते हैं। खुशमिजाज मौसम में जिन विदेशी मेहमान पक्षियों का रूख इस इलाके में होता है, उन्हें कोसी के लोग दिघौंच, लदीम, अधंगा, नकटा, लालसर, डूबाव, सुर्खाब, नीलगह, कैंच, कारण, सिल्ली, कसरार, डूमर, सोबिल, गागन, हसुआ, हाविल आदि नामों से जानते हैं। इस मौसम में इन पक्षियों का बसेरा बलथरवा, ढोली, भुलिया, गौरीपट्टी, बनैनिया, कटैया, लौकहा आदि गांव के समीप कोसी नदी का इलाका होता है। इसके अलावा कोसी तटबंध के बाहरी इलाके जहां जलजमाव होता है, वहां भी प्रवासी पक्षी कलरव करते नजर आते हैं।

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सरकारी स्तर पर पक्षियों के पकड़ने व मारने पर है रोक

सुदूर देशों में जब पानी बर्फ में तब्दील हो जाता है तो पक्षियों को भोजन के लाले पड़ने लगते हैं। ऐसी स्थिति में विदेशी पक्षी भोजन की तलाश व वंश वृद्धि के उद्देश्य से भारत का रूख करते हैं। हजारों मील की दूरी तय कर पक्षी भारतीय भू-भाग में आते हैं और वंश वृद्धि करते हैं। सरकार ने भी पक्षियों के पकड़ने व मारने पर रोक लगा रखी है। ऐसे में इन मेहमानों की तादाद कोसी के इलाके में तो अधिक दिखेगी ही।


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