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क्वालिटी के मामले में पिछड़ रहा इलाका, परदेसी चावल का ही सहारा

एसएसबी के सामाजिक जागरूकता कार्यक्रम के तहत रतनपुर थाना क्षेत्र के सातनेपट्टी पंचायत स्थित मध्य विद्यालय में शनिवार को निश्शुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया। इस दौरान एसएसबी के चिकित्सक डॉ. चैतन्या ने 200 मरीजों की जांचकर उन्हें दवा दी। इस बारे में एसएसबी 45वीं बटालियन वीरपुर के कमांडेंट एचके गुप्ता ने बताया कि सिविक एक्शन प्रोग्राम के तहत इस कैंप का आयोजन किया गया।

By JagranEdited By: Published: Mon, 14 Oct 2019 07:04 PM (IST)Updated: Tue, 15 Oct 2019 06:11 AM (IST)
क्वालिटी के मामले में पिछड़ रहा इलाका, परदेसी चावल का ही सहारा
क्वालिटी के मामले में पिछड़ रहा इलाका, परदेसी चावल का ही सहारा

जागरण संवाददाता, सुपौल : कोसी का इलाका धान की पैदावार के लिए उपयुक्त माना जाता है। वैज्ञानिक पद्धति से हो रही खेती के बाद धान की उपज में काफी इजाफा हुआ है। श्रीविधि से इलाके में धान की खेती हो रही है और उपज से किसान गदगद हैं। बावजूद इलाके के लोगों को अब भी परदेसी चावल का ही सहारा है। अधिक मात्रा में धान उपजा कर भी क्वालिटी के मामले में हम पिछड़ रहे हैं। देश के अन्य राज्यों से ट्रक के ट्रक चावल स्थानीय बाजारों में आते हैं और खप जाते हैं।

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हरियाली के साथ-साथ उपज में भी हुआ इजाफा

कोसी के इलाके में धान की पैदावार अच्छी-खासी होती है। यहां धान की कई किस्में उपजायी जाती है। जिनमें सुरभि, पायोनियर, धनिया, जसबा, सुफला, क्रांति, मंसूरी, पार्वती, चौंतीस, चननचूर, गरमा आदि शामिल हैं। धान की उपज का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले कई वर्षो से सरकार द्वारा क्रय केन्द्र के माध्यम से सुपौल जिले को 66 हजार मीट्रिक टन धान अधिप्राप्ति का लक्ष्य दिया जाता रहा है। इधर कृषि विभाग की भी पहल हुई है और खेतों में हरियाली के साथ-साथ उपज में भी वृद्धि दिख रही है। धान की खेती नहीं करने वाले किसान भी अब धान की खेती की ओर अग्रसर हुए हैं और उन्हें खेती लाभकारी दिखाई देने लगा है। सरकार द्वारा भी धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित कर किसानों को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जा रहा है। नतीजा है कि उपज में वृद्धि देखने को मिल रही है।

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क्वालिटी का रहता है रोना

इतनी उपज के बावजूद यह विडंबना है कि इलाके के लोग अब भी परदेसी चावल पर भरोसा कर रहे हैं। अपने यहां की धान पैक्स, राज्य खाद्य निगम व स्थानीय व्यापारियों के हाथों गुजरते हुए राइस मिल जाता है जहां से उस धान से तैयार चावल सरकारी योजनाओं को आपूर्ति की जाती है। चावल की क्वालिटी उत्तम नहीं रहने के कारण लोग परदेसी चावल पर आश्रित हो रहे हैं। परिणाम है कि देश के अन्य राज्यों से ट्रक के ट्रक चावल स्थानीय बाजारों में आते हैं और खप जाते हैं। परदेसी मंसूरी, परमल, सीताचुर आदि चावल इस इलाके में अधिक पसंद किए जाते हैं। ये चावल अलग-अलग नामों से 25 व 50 किलो के पैकेट में बाजार में आते हैं और बिकते हैं। ऐसे में धान के कटोरे में परदेसी चावल का बोलबाला हो ही जा रहा।


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