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बेटे का सेहरा, बेटी के हाथ पीले देखना यहां नहीं आसान

सुपौल। कोसी तटबंध के अंदर हालात जरूर बदले हैं लेकिन इतने भी नहीं कि बेटे-बेटी की शादी

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Mar 2018 05:53 PM (IST)Updated: Tue, 20 Mar 2018 05:53 PM (IST)
बेटे का सेहरा, बेटी के हाथ पीले देखना यहां नहीं आसान
बेटे का सेहरा, बेटी के हाथ पीले देखना यहां नहीं आसान

सुपौल। कोसी तटबंध के अंदर हालात जरूर बदले हैं लेकिन इतने भी नहीं कि बेटे-बेटी की शादी आसानी से तटबंध से बाहर हो जाए। पहले तो गांव में ही लोगों को अपने बच्चों की शादी करनी पड़ती थी अब अगल-बगल में शादी कर संतोष करना पड़ता है। चाहकर भी लोग अपने बच्चों की शादी बाहर नहीं कर पाते हैं। बेटी की शादी बाहर करने के लिए तो लोग हाथ-पैर भी मार लेते हैं लेकिन बेटों की शादी के लिए लोगों को सगे-संबंधियों की चिरौरी करनी पड़ती है। यानी मर्जी के मुताबिक बेटे का सेहरा और बेटी के हाथ पीले देखना यहां आसान नहीं है।

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प्रखंड की 50 हजार की आबादी है अंदर

प्रखंड क्षेत्र की हजारों आबादी कोसी तटबंध के बीच अवस्थित है। घोघड़रिया पंचायत के खुखनाहा, मानाटोला, लक्ष्मीनियां,

अमीनटोला, सिसौनी पंचायत का जोबाहा, जोबहाछीट बड़हारा पंचायत सहित अनुमंडल के आधा दर्जन पंचायत के अधिकांश गांव तटबंध के अंदर स्थित हैं। यहां की लगभग 50 हजार से अधिक की आबादी की ¨जदगी नाव व पंगडडी के सहारे कटती है। यहां के लोगों को बुनियादी सुविधाएं भी मयस्सर नहीं है। शिक्षा के नाम पर विद्यालय भवन की जगह कहीं फूस तो कहीं चदरा है। पठन-पाठन की स्थिति दयनीय है। स्वास्थ्य कर्मी कभी कभार आंगनबाड़ी केन्द्रों तक पहुंच कर खानापूर्ति कर लेते हैं। लोगों के स्थाई निवास की कोई संभावना नहीं है। बाढ़ के दिनों में कटान के कारण यहां के लोगों की ¨जदगी खानाबदोशों सी हो जाती है। अगर कटान से पहले कहीं आशियाना बना तो ठीक अन्यथा बाढ़ अवधि तक तटबंधों पर विस्थापित की ¨जदगी जीना यहां चलता रहता है। ऐसे में कोई अपने बेटे-बेटी की शादी यहां करना नहीं चाहते। अगर बाहर के लोग किसी सगे-संबंधी के दबाव में आकर इधर का रुख भी करते हैं तो आवागमन के साधन के रूप में नाव व पगडंडी देख मुंह मोड़ लेते हैं।

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कोसी पीड़ितों की व्यथा

मो. महबूब कहते हैं कि तटबंध के अंदर ¨जदगी मुश्किल होती है। कब घर कट जाए ठिकाना नहीं होता है। यहां बेटे-बेटी की शादी करना पिता के लिए मुश्किल होता है। बाहर के लोग यहां की परेशानी देख शादी करना नहीं चाहते। इसका मैं खुद भुक्तभोगी हूं। मो. कलाम, मो. अलाउद्दीन बताते हैं कि बेटे की शादी के लिए काफी पापड़ बेलने पड़े। डोमी मुखिया बताते हैं कि बेटी की शादी चाहकर भी तटबंध के बाहर नहीं कर सका। जब बाहर शादी नहीं हो सकी तो अंदर के ही गांव में करनी पड़ी। बेटे-बेटी की शादी के लिए परेशानी उठाने वाले पिता की गिनती एक-दो नहीं है लगभग सभी को इन परेशानियों से दो-चार होना पड़ता है।


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