सहेज लो हर बूंद::::: आमद की तराजू पर तौले जा रहे धरोहर
-एक समय था जब तालाब से किसी गांव अथवा शहर के जल प्रबंधन की व्यवस्था होती थी उजागर भरत कुमार झ्
-एक समय था जब तालाब से किसी गांव अथवा शहर के जल प्रबंधन की व्यवस्था होती थी उजागर
भरत कुमार झा, सुपौल: एक समय था जब तालाब से उस गांव अथवा शहर के जल प्रबंधन की व्यवस्था उजागर होती थी। यानी जहां जितने तालाब होते थे जल प्रबंधन के मामले में वह गांव उतना ही व्यवस्थित व धनी माना जाता था लेकिन बदलती जीवनशैली और विकास की नई परिभाषा में ये सबकुछ बदलने लगा। जो तालाब विरासत के रूप में पूर्वजों से मिली थी उसकी उपेक्षा होने लगी। बढ़ती हिस्सेदारी से आमदनी पर सवाल खड़े होने लगे। विरासत को भी लोगों ने आर्थिक पैमाने पर मापना शुरू कर दिया। नतीजा हुआ कि ये पारिवारिक व सामाजिक धरोहर उपेक्षित रहने लगे। चूंकि चाहकर भी कोई एक उसमें अपना निवेश करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता और ये धरोहर उपेक्षा का दंश झेलते सूखने की कगार पर पहुंच गए।
---------------------------
तालाबों में हैं प्राण
तालाबों में प्राण हैं। ये मान्यता हुआ करती थी। यही कारण था कि तालाब खुदवाने के बाद प्राण प्रतिष्ठा का उत्सव बड़े ही धूमधाम से होता था। उसी दिन उस तालाब का नाम रखा जाता था। इससे इतर तालाबों के विवाह की परंपरा भी रही है। तालाबों का पूरा विधि विधान के साथ विवाह होता था। ऐसी मान्यता थी कि विवाह से पूर्व तालाब का उपयोग नहीं होता था। आसपास के मंदिरों की मिट्टी लाई जाती थी। गंगा जल के साथ सात कुओं अथवा तालाब का पानी मिलाकर यह रस्म पूरी की जाती थी। वैसे भी तालाब के प्राण प्रतिष्ठा के दौरान घुड़साल, हाथी खाना,बाजार, मंदिर, श्मशान भूमि, वेश्यालय अखाड़ों की मिट्टी डालने की परंपरा रही है।
-------------------------------
अब व्यवसाय के रूप में बन रहे तालाब
पहले तालाब खुदवाने की जो भी धार्मिक व सामाजिक परंपरा रही हो लेकिन अब इसे बड़े पैमाने पर व्यावसायिक रूप दिया जा रहा है। कोसी के इस इलाके में मछली के व्यवसाय को लेकर नया चलन शुरू हुआ है। किसानों की ऐसी जमीन जो औसतन गहरी है, किसान उसमें पोखर खुदवा ले रहे हैं। किसानों का तर्क है कि एक तो किसानी महंगी होती जा रही है। लागत के अनुरूप उत्पादन नहीं हो पाता है,और उपर से मजदूर समय पर उपलब्ध नहीं होते हैं। इसलिये मछली उत्पादन की ओर लोगों का रूझान होने लगा है।