भूख ने भगाया कोरोना का डर, मजदूरों का शुरू हुआ पलायन
वैश्विक महामारी कोरोना को लेकर शुरुआती दिनों में जो डर दिख रहा था वह अब नहीं दिखता है। जब कोरोना संक्रमण ने देश को अपनी चपेट लिया तो अन्य राज्यों में काम करने वाले लोग भय से अपने घरों की ओर भागे। जैसे-तैसे घर पहुंचे। सरकार ने ऐसे लोगों को घर पर ही रोजगार उपलब्ध कराने का दावा किया लेकिन यह दावा हवा हो गया। बाहर से घर लौटे लोगों के सामने फिर परदेस जाने की मजबूरी खड़ी हो गई है।
सुपौल। वैश्विक महामारी कोरोना को लेकर शुरुआती दिनों में जो डर दिख रहा था वह अब नहीं दिखता है। जब कोरोना संक्रमण ने देश को अपनी चपेट लिया तो अन्य राज्यों में काम करने वाले लोग भय से अपने घरों की ओर भागे। जैसे-तैसे घर पहुंचे। सरकार ने ऐसे लोगों को घर पर ही रोजगार उपलब्ध कराने का दावा किया लेकिन यह दावा हवा हो गया। बाहर से घर लौटे लोगों के सामने फिर परदेस जाने की मजबूरी खड़ी हो गई है।
बाहर मजदूरी करने वाले लोग पहले तो वहां मुश्किल से समय काटा। काफी दुश्वारियां झेली। बाद में परेशानी उठाते हुए घर तो लौट गए परंतु आर्थिक बदहाली भी साथ ही आई। घर आने के बाद पेट की चिता सताने लगी। रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं थी। लॉकडाउन की अवधि विस्तारित होती गई फिर अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हुई। इधर रोजगार के अभाव में घर आए लोगों की आर्थिक स्थिति चरमराती गई। फिलहाल अनलॉक है लेकिन कई पाबंदियां जारी है। यात्री बसों की आवाजाही पर पूरी तरह से रोक है बावजूद इसके अन्य राज्यों की बसें बड़ी संख्या में रोजाना आती है जो मजदूरों को लेकर वापस जाती है। जो लोग जान बचाकर घर लौटे थे वही इन बसों में सवार होकर अन्य राज्यों को जा रहे हैं। भूख ने इन्हें एकबार फिर घर-बार छोड़ने पर मजबूर कर दिया है। इन बसों में की न तो सैनिटाइजिग होती है और ना ही इसमें शारीरिक दूरी का ख्याल रखा जाता है। फिर भी इसमें लोग सवार हो रहे हैं मानो भूख ने कोरोना का भय समाप्त कर दिया है। प्रत्येक दिन मजदूरों का जत्था ऐसे बसों में सवार होकर अन्य राज्यों को जा रहा है। पूछने पर मजदूरों का कहना होता है कि कोरोना के डर से घर लौटे थे तो घर पर ही काम दिए जाने की बात कही गई थी लेकिन यहां काम नहीं मिल रहा है ऐसे में खाएंगे क्या और बाल-बच्चों का क्या होगा। इसलिए कमाने के लिए तो जाना ही पड़ेगा। ऊपर वाले की जो मर्जी होगी वही होगा।