जिउतिया पर्व को लेकर नदी घाटों पर व्रतियों की लगी रही भीड़
प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न पंचायतों के आंगनबाड़ी केन्द्रों पर शुक्रवार को समाजिक अंकेक्षण किया गया। केन्द्र संख्या 106 पर वार्ड सदस्य विमल कुमार झा व 111 पर वंदना दत्त की अध्यक्षता में समाजिक अंकेक्षण सह निगरानी समिति की बैठक हुई। जिसमें सूखा राशन वितरण की समीक्षा पोषाहार की गुणवत्ता एएनएम की गतिविधियां आदि पर विस्तृत चर्चा हुई। अंत में निगरानी कमेटी का भी गठन किया गया। केन्द्र पर पर्यवेक्षिका मंजुला कुमारी सेविका अन्नु झा के साथ पोषक क्षेत्र के लोग मौजूद थे। वहीं आरडीओ सह बाल विकास परियोजना पदाधिकारी अरविद कुमार ने विभिन्न केन्द्रों का निरीक्षण किया।
सुपौल। प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न जगहों पर शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ ही जिउतिया पर्व शुरू हो गया। यह पर्व आश्विन कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तिथि तक मनाई जाती है। इस पर्व को बेटे-बेटियों की लंबी उम्र के लिए मनाया जाता है जिसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। जानकारी के अनुसार शुक्रवार सुबह महिलाओं ने अपने घरों में स्नान और पूजन के बाद निर्जला व्रत का संकल्प लिया और डलिया में पूजन सामग्री, फल, फूल आदि भरकर मंदिरों में पूजा-अर्चना की। पर्व के पहले दिन व्रतियों ने दिनभर भूखे रहकर अपने घरों में सात तरह के व्यंजन बनाए और देर शाम तक ठेकुआ, पिड़ुकिया आदि पकवान बना कर डलिया भरा गया। गौरतलब हो कि पर्व में महिलाएं अपने पुत्र-पुत्रियों की लंबी उम्र के लिये 24 से 26 घंटे तक का निर्जला उपवास रखती है। पर्व को लेकर सुबह से ही विभिन्न नदियों के घाटों पर व्रतियों की भीड़ लगी रही।
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व्रत से पूर्व स्नान की परिपाटी जिउतिया व्रत के एक दिन पहले ही व्रत के नियम शुरू हो जाते हैं। व्रत से एक दिन पहले यानी सप्तमी के दिन नहाय खाय का नियम होता है। बिल्कुल छठ की तरह ही जिउतिया में नहाय-खाय होता है। इस दिन महिलाएं सुबह-सुबह उठकर गंगा स्नान करती हैं और पूजा करती हैं। नहाय-खाय के दिन सिर्फ एक बार ही भोजन करना होता है। इस दिन सात्विक भोजन किया जाता है। शाम को पकवान बनाया जाता है और रात को सतपुतिया या झिगनी नाम की सब्जी जरूर खाई जाती है। कुछ स्थानों पर नहाय-खाय के दिन मछली खाने की परंपरा भी है। ऐसी मान्यता है कि मछली खाकर जिउतिया व्रत रखना शुभ होता है। साथ ही नहाय-खाय की रात को छत पर जाकर चारों दिशाओं में कुछ खाना रख दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह खाना चील व सियारिन के लिए रखा जाता है।
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पर्व का विधान तीन दिनों तक चलने वाला इस व्रत के दूसरे दिन को खुर जिउतिया कहा जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और अगले दिन पारण तक कुछ भी ग्रहण नहीं करतीं। वहीं व्रत का तीसरा दिन-पारण का दिन व्रत तीसरे और आखिरी दिन पारण किया जाता है। जिउतिया के पारण के नियम भी अलग-अलग जगहों पर भिन्न हैं कुछ क्षेत्रों में इस दिन नोनी का साग, मड़ुआ की रोटी आदि खाई जाती है।