छातापुर में धूमधाम से संपन्न हुई गोवर्द्धन पूजा
सुपौल। दिवाली के अगले दिन गोवर्द्धन पूजा होती है। वेद पुराण के अनुसार यह पूजा भगवान श्रीकृष्ण क
सुपौल। दिवाली के अगले दिन गोवर्द्धन पूजा होती है। वेद पुराण के अनुसार यह पूजा भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से चली आ रही है। इसमें आंगन में गाय के गोबर से गोवर्द्धन नाथ की अल्पना बनाकर पूजा की जाती है। दीपावली के अगले दिन गोवर्द्धन पर्व मनाया जाता है। इस पर्व के दिन शाम के समय खास पूजा रखी जाती है। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने आज ही के दिन इंद्र का मानमर्दन कर गिरिराज की पूजा की थी। परंपरागत ढंग से महिला इस दिन गोबर का गोवर्द्धन बनाती है। इसका खास महत्व होता है इस दिन सुबह-सुबह गाय के गोबर से गोवर्द्धन बनाया जाता है। यह मनुष्य के आकार का होता है। गोवर्द्धन तैयार करने के बाद उसे फूलों और पेड़ों की डालियों से सजाया जाता है। गोवर्द्धन को तैयार कर शाम के समय इसकी पूजा की जाती है। पूजा में धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल, खील, बताशे आदि का इस्तेमाल किया जाता है। गोवर्द्धन ओंगा यानि अपामार्ग की डालियां जरूर रखी जाती हैं। गोवर्द्धन पूजा को अन्नकूट भी कहा जाता है।