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महज औपचारिक बनकर रह गया बाल संसद व मीना मंच

सुपौल। जिले के सरकारी स्कूलों में गठित बाल संसद एवं मीना मंच की धरातल पर महज खानापूरी ह

By JagranEdited By: Published: Fri, 26 Oct 2018 06:33 PM (IST)Updated: Fri, 26 Oct 2018 06:33 PM (IST)
महज औपचारिक बनकर रह गया बाल संसद व मीना मंच
महज औपचारिक बनकर रह गया बाल संसद व मीना मंच

सुपौल। जिले के सरकारी स्कूलों में गठित बाल संसद एवं मीना मंच की धरातल पर महज खानापूरी हो रही है। विद्यालयों में शैक्षणिक वातावरण तैयार करने के साथ-साथ विद्यालय कार्यों में महत्वपूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से गठित यह मंच महज एक औपचारिकता बनकर रह गई है। ऐसे में जहां बच्चों के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है वहीं इन बच्चों का भविष्य भी अंधकारमय दिख रहा है। दरअसल बाल संसद व मीना मंच के माध्यम से स्कूल में अनुशासन,स्वच्छता,सौंदर्यीकरण, पुस्तकालय आदि कार्यों को बाल संसद के माध्यम से बढ़ावा देना है जिसके तहत बाल संसद के प्रधानमंत्री द्वारा प्रत्येक माह मंत्रिमंडल की बैठक कर सभी मंत्रियों के कार्यों की समीक्षा कर कार्ययोजना तैयार करनी है। जिस कार्य योजना को विद्यालय शिक्षा समिति की बैठक में प्रस्तुत कर स्कूली आवश्यकताओं को पूरा करने का आग्रह किया जाना है। इतना ही नहीं स्कूल में चेतना सत्र का संचालन व और नामांकित तथा अनियमित बच्चों को प्रतिदिन स्कूल आने को भी प्रेरित किया जाना है। इतनी बड़ी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के बावजूद महज खानापूर्ति बनकर रहना जिले में शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलने को काफी है। मीना मंच का कार्य एवं दायित्व वैसे तो स्कूली स्तर पर होने वाले हर क्रियाकलाप में इस मंच का योगदान सुनिश्चित है। खासकर अनामांकित बच्चों की पहचान कर उन्हें स्कूल से जोड़ने का प्रयास करना, पढ़ाई में कमजोर बच्चों को स्कूल के बाद मदद करना, स्कूल के गतिविधि में लड़कियों की भागीदारी बढ़ाना आदि कार्य मीना मंच का है। परंतु ऐसा होता नहीं है ऐसे में जहां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर विराम लगता दिख रहा है वहीं शिक्षक और शिक्षा समिति अपनी जिम्मेवारी से मुंह फेरता दिख रहा है। विडंबना है कि इसकी मॉनिट¨रग करना भी अधिकारी उचित नहीं समझ रहे।

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