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किसानों की बेहतरी को ले नहीं हो पाता सार्थक प्रयास

श्री रामनवमी आदर्शों के आधार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के इस धरती पर अवतीर्ण होने का पुण्य दिवस है। शास्त्र एवं संहिता ग्रंथ व रामचरित मानस के ग्रंथानुसार चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी को मध्यान बेला में पुनर्वसु नक्षत्र के योग में जब चंद्रिका चंद्रमा और बृहस्पति एकत्र थे व पंचीग्रह अपनी उच्चावस्था में थे तथा सूर्य मेष राशि में एवं लग्न कर्क राशि में थी तब परमब्रह्म सच्चिदानंद परमपिता परमेश्वर भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था।

By JagranEdited By: Published: Sat, 13 Apr 2019 12:32 AM (IST)Updated: Sat, 13 Apr 2019 12:32 AM (IST)
किसानों की बेहतरी को ले नहीं हो पाता सार्थक प्रयास
किसानों की बेहतरी को ले नहीं हो पाता सार्थक प्रयास

== बड़ा मुद्दा ==

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जागरण संवाददाता, सुपौल: चुनाव का मौसम चल रहा है, तीसरे चरण के तहत सुपौल लोकसभा के लिए 23 अप्रैल को मतदान होना है। मतदान में महज 10 दिन का समय शेष रह गया है तो एक बार फिर किसानों की समस्या नेताओं की जुबान पर आ गई है और किसानों की बेहतरी की गूंज सुनाई पड़ने लगी है। आखिर हो भी क्यों नहीं। सबसे बड़ी आबादी वाले किसान मतदाताओं के सहारे ही तो आज तक चुनावी नैया पार किया जा सका है। लेकिन विडंबना ही कहिए कि आज तक इन किसानों की बेहतरी के लिए ईमानदार प्रयास नहीं किया जा सका है। परिणाम है कि घोषणाओं के पुल बांधने के बावजूद भी यह किसान अपने किस्मत के बदौलत जीने को मजबूर हैं। कोसी के पेट में बसा आज भी सुपौल लोकसभा क्षेत्र के किसान अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को मजबूर हैं। कभी प्राकृतिक आपदा तो कभी प्रशासनिक उदासीनता। इन्हें अपने हाल पर जीने को मजबूर किए हुए है। बदहाली का प्रमुख कारण न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ न मिल पाना, बिचौलियों की मदद से उत्पादन बेचना तथा सरकार की योजनाओं का लाभ किसानों तक नहीं पहुंच पाना आदि हैं।

उन्नत खाद-बीज का रहता अभाव

कृषि प्रधान जिला होने के बावजूद भी यहां के किसानों के लिए उन्नत किस्म के खाद-बीज का समय पर नहीं मिलना सबसे बड़ी समस्या है। किसानी के वक्त इन्हें उन्नत किस्म के खाद-बीज के लिए दर-दर की ठोकरें झेलनी पड़ती है। कहने को तो सरकारी व्यवस्था के तहत भी बीज उपलब्ध कराई जाती है। परंतु बीज पर मिलने वाले अनुदान की राशि के लिए उन्हें कई महीनों तक इंतजार करना पड़ता है।

ध्वस्त है सिचाई व्यवस्था

कोसी का इलाका होने के बावजूद भी यहां के किसानों को सिचाई के लिए एक बड़ी राशि व्यय करनी पड़ती है। कहने को तो नहरों का जाल बिछा है, परंतु नहर का पानी खेतों तक कैसे पहुंचे इस दिशा में आज तक ईमानदार प्रयास नहीं किया गया है। परिणाम होता है कि नहरों में तो पानी लबालब भरा होता है परन्तु सिचाई के लिए किसानों को पंपसेट या फिर मानसून पर निर्भर रहना पड़ता है।

उत्पादन का नहीं मिलता सही मूल्य

किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या उनके द्वारा उत्पादित अनाज का सही मूल्य नहीं मिलना है। कहने को तो धान और गेहूं के लिए सरकारी क्रय व्यवस्था होती है। परंतु यह व्यवस्था तब चालू होती है जब किसान अपना अनाज बिचौलियों के हाथों बेच देते हैं। गत खरीफ मौसम की ही बात करें तो सरकार ने व्यापार मंडल और पैक्स के माध्यम से धान खरीद की व्यवस्था की। लेकिन यह क्रय व्यवस्था तब चालू हुई जब अधिकांश किसान अपना धान बेच चुके थे। परिणाम रहा कि हजारों की आबादी वाले इस जिले में महज 5 हजार किसान ही इस क्रय व्यवस्था का लाभ उठा पाए।


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