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बिहार के इस शख्स ने रखी थी अयोध्या में राम जन्मभूमि शिलान्यास की पहली ईंट, जानिए

बिहार के सुपौल जिले के कामेश्वर चौपाल नामक शख्स ने अयोध्या में राम जन्मभूमि शिलान्यास की पहली ईंट रखी थी। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से वे काफी खुश हैं और कहा-आज एेतिहासिक दिन है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Sat, 09 Nov 2019 04:21 PM (IST)Updated: Sun, 10 Nov 2019 08:04 AM (IST)
बिहार के इस शख्स ने रखी थी अयोध्या में राम जन्मभूमि शिलान्यास की पहली ईंट, जानिए

सुपौल [भरत कुमार झा]। 9 नवंबर 1989 को अयोध्या में राम मंदिर की पहली ईंट रखने वाले बिहार प्रदेश के सुपौल जिला अंतर्गत कोसी तटबंध के बीच बसे गांव कमरैल निवासी कामेश्वर चौपाल राम मंदिर पर फैसला सुनते ही आह्लादित हो उठे। उन्होंने बताया कि यह दिन उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और सबसे खुशी का दिन है। उन्होंने जो संकल्प लिया था आज उसकी पूर्ति हुई है।

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रामराज्य की परिभाषा आज परिलक्षित हुई

कामेश्वर चौपाल ने कहा कि लंबे समय से हिन्दू समाज की जो भावना थी उसका पालन हुआ है। महात्मा गांधी सहित अन्य महापुरुष रामराज्य की बात किया करते थे। सबके प्रति न्याय ही तो रामराज्य की सही परिभाषा है जो आज परिलक्षित हुई है।

चौपाल ने बताया कि जब श्रीराम मंदिर का शिलान्यास किया गया था उस समय मैं विश्व हिन्दू परिषद का सह संगठन मंत्री हुआ करता था। बिहार प्रदेश के सुदूर ग्रामीण इलाके से आने के बावजूद विहिप के अधिकारियों ने इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेवारी मुझे सौंपी तो मैं गौरवान्वित हो उठा।

 'पहुना मिथिले में रहियौ'

मेरी मां उस समय एक गीत गाकर मुझे सुनाया करती थी कि 'पहुना मिथिले में रहियौ'। मैंने इस गीत परअपनी मां से सवाल किया कि श्रीराम तो भगवान हैं तो फिर पहुना क्यों? मां का उत्तर था कि दुनिया के लिए भले ही भगवान मिथिला के तो पाहुन ही हैं श्रीराम। पुरखों ने जो बचपन में संस्कार भरा था वही समर्पण के रूप में सदैव मेरे साथ रहा है। ऐसे तो इष्टदेव और उधर मिथिला से संबंध यानी हमारा तो दोनों संबंध साकार हुआ है।

अजब-सा है संयोग, देखिए 

उन्होंने कहा कि संयोग देखिए जब शिलान्यास किया गया था तो वह दिन भी 9 नवंबर का था और आज जब महत्वपूर्ण फैसला आया है तो आज का दिन भी 9 नवंबर का है। समय भी वही, जब मैंने शिलान्यास किया था तो 10:30 ही बज रहे थे और जब फैसला सुनाया गया तो वह भी 10:30 बजे ही।

मेरा सौभाग्य देखिए कि जब शिलान्यस हुआ तब भी मैं मौजूद था और जब फैसला सुनाया गया उस वक्त भी मैं

मौजूद रहा। अपने राजनीतिक जीवन में ये भाजपा कोटे से 2002 से 2014 तक विधान पार्षद रह चुके हैं। 1991 में रोसरा लोकसभा से इन्होंने रामविलास पासवान के खिलाफ चुनाव लड़ा था जिसमें पराजित हो गए। 2014 का लोकसभा चुनाव ये अपने गृहक्षेत्र सुपौल से लड़े जहां भी इन्हें हार का सामना करना पड़ा।


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