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कटैया डगमारा होता तैयार तो बिजली हम बांटते सरकार

जल और श्रम की इस धरती पर संभावनाओं की कमी नहीं है। इसी सोच के तहत शायद कटैया में पनबिजली उत्पादन की व्यवस्था की गई। लेकिन विभागीय उदासीनता और इच्छाशक्ति के अभाव के कारण यह परियोजना कभी अपने लक्ष्य को हासिल करने में सफल नहीं हो सकी। वहीं उत्तर बिहार को दुधिया रोशनी से जगमगाने और बिजली उत्पादन की महत्वपूर्ण परियोजना डगमारा परियोजना वर्षों से विभागीय औपचारिकता में ही फंसी हुई है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 16 Apr 2019 12:26 AM (IST)Updated: Tue, 16 Apr 2019 06:22 AM (IST)
कटैया डगमारा होता तैयार तो बिजली हम बांटते सरकार

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-विभागीय औपचारिकता में ही फंसी हुई है डगमारा परियोजना

-सर्वेक्षण कार्य पूरा होने के बावजूद परियोजना को नहीं मिल रही गति

-126 मेगावाट उत्पादन की होगी यह विद्युत परियोजना

-पांच वर्षों से नहीं हो रहा कटैया में बिजली उत्पादन

-20 मेगावाट उत्पादन की क्षमता वाला है कटैया पावर हाउस

भरत कुमार झा, सुपौल: जल और श्रम की इस धरती पर संभावनाओं की कमी नहीं है। इसी सोच के तहत शायद कटैया में पनबिजली उत्पादन की व्यवस्था की गई। लेकिन विभागीय उदासीनता और इच्छाशक्ति के अभाव के कारण यह परियोजना कभी अपने लक्ष्य को हासिल करने में सफल नहीं हो सकी। वहीं उत्तर बिहार को दुधिया रोशनी से जगमगाने और बिजली उत्पादन की महत्वपूर्ण परियोजना डगमारा परियोजना वर्षों से विभागीय औपचारिकता में ही फंसी हुई है। डगमारा परियोजना को कोसी बराज से 31 किमी की दूरी पर निर्माण का प्रस्ताव किया गया। परियोजना का विस्तृत प्रतिवेदन दिसंबर 2011 में केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण को सौंपा गया। इस पर केन्द्रीय जल संसाधन विभाग और केन्द्रीय जल आयोग की सैद्धांतिक सहमति भी मिल चुकी है। कई बार विवादों में उलझे इस परियोजना का सर्वेक्षण कार्य भी पूरा किया जा चुका है। लेकिन इसके आगे के काम को गति नहीं मिल रही है।

कोसी स्थित हनुमान नगर बराज के निर्माण के बाद वर्ष 1965 में केन्द्रीय जल आयोग के अध्यक्ष श्री कंवरसेन के द्वारा डगमारा में दूसरे बराज की आवश्यकता पर बल दिया गया था। ताकि कोसी के कटाव की विभीषिका को निचले स्तर पर भी नियंत्रित किया जा सके। 1971 में बिहार जल संसाधन विभाग के द्वारा गठित तकनीकि समिति ने भी उक्त प्रस्ताव पर अपनी सहमति दी तथा बराज के कारण बने ऊंचे जलस्तर में जल विद्युत परियोजनाओं की संभावनाओं को भी इसके साथ जोड़ा गया। वर्ष 2007 में परियोजना निर्माण में एशियन डवलपमेंट बैंक द्वारा रुचि दिखाई जाने के बाद डगमारा परियोजना के लिये विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन बनाने का कार्य केन्द्रीय जल संसाधन विभाग की एजेंसी वैपकास को दिया गया। वैपकास द्वारा बनाये गये विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन को 2010 में केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण में अनुमति के लिये जमा किया गया। प्रतिवेदन के जांच के दौरान प्रस्तावित परियोजना के फलस्वरूप नेपाल के बड़े क्षेत्र में डूबे होने के कारण केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने उक्त परियोजना पर अपनी सहमति नहीं दी तथा केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय, केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण, केन्द्रीय जल आयोग भारत सरकार के द्वारा परियोजना को और निचले स्तर पर ले जाने का सुझाव दिया गया। उक्त परिप्रेक्ष्य ने डगमारा परियोजना को और नीचे लाकर वर्तमान बराज से करीब 31 किमी की दूरी पर निर्माण का प्रस्ताव किया गया। इस संबंध में परियोजना के विस्तृत प्रतिवेदन दिसंबर 2011 में केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण को सौंपा गया तथा इस पर केन्द्रीय जल संसाधन विभाग एवं केन्द्रीय जल आयोग की सैद्धांतिक सहमति मिल चुकी है।

परियोजना की स्वीकृति के संबंध में दिनांक 25.04.2012 को केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण में परियोजना की तकनीकी स्वीकृति के लिये अंतर मंत्रालयी समिति में विस्तृत चर्चा हुई तथा परियोजना पर आगे की कार्रवाई के लिये सहमति बनी। इस संबंध में विभिन्न विभागों के द्वारा दिये गये सुझाव, टिप्पणी पर उचित कार्रवाई की जा रही है।

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जब हुआ स्थल परिर्वतन

यह परियोजना कोसी पूर्वी तटबंध के कल्याणपुर गांव से दुधैला गांव के बीच बनना है। इसका स्थल पहले पूर्वी तटबंध के सिमरी गांव से डगमारा के बीच था। कतिपय कारणों से राज्य सरकार ने इसका स्थल परिवर्तित कर सिमरी से 6 किमी दक्षिण कल्याणपुर से दुधैला के बीच कर दिया। स्थल परिवर्तन को लेकर सिमरी, कोढ़ली, डगमारा, लौकहा सहित अन्य गांवों के लोगों में भारी आक्रोश जताया था। लोगों का कहना था कि राजनीतिक साजिश के चलते सरकार ने परियोजना का स्थल परिवर्तित कर दिया। सर्वेक्षण कार्य पूरा कर लिया गया है। लेकिन उसके बाद का कार्य रुका हुआ है।

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सूबे की सबसे बड़ी पनबिजली परियोजना

कोसी बराज के डाउन स्ट्रीम में 22.5 किमी पर वीरपुर से कटिहार के कुर्सेला के बीच पनबिजली की क्षमता का पता बताने के बाद राज्य सरकार ने इसके निर्माण की दिशा में कसरत शुरु की। कोसी प्रक्षेत्र में स्थापित होने वाली 126 मेगावाट की इस परियोजना पर 650 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होने हैं। यह बिहार की सबसे बड़ी पनबिजली परियोजना होगी। यहां बीएचपीसी की 42.42 मेगावाट क्षमता की तीन पनबिजली इकाईयों के निर्माण की योजना है

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कटैया में वर्षों से ठप है उत्पादन

20 मेगावाट क्षमता वाले कटैया जल शक्ति गृह 2010-11 से जीर्णोद्धार की बाट जोह रहा है। जीर्णोद्धार के क्रम में इसके 4 टर्बाइनों में से मात्र दो ही टर्बाइन के बदलने की प्रक्रिया की गई। निविदा एकरारनामे के बावजूद भी बीएचपीसी जर्जर टर्बाइनों को बदलने में सफल नहीं हो पाया। मात्र दो को बदलने में वर्ष 2014 बीत गया। दो टर्बाइन आज भी बेकार है। स्थिति यह है कि वर्ष 2014 से कटैया जल शक्ति गृह का उत्पादन ठप है। इन सालों में अगर कुछ कभी कभार उत्पादन होने की खानापूर्ति भी की गई तो उत्पादित ऊर्जा विद्युत विभाग को दी गई। आज आलम यह है कि बीएचपीसी का यह शक्ति गृह अधिकारी विहीन होकर उद्धारक की बाट जोह रहा है।


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