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जागरण विशेष: कागजों पर जैविक खेती, खेतों में रसायन

बबुजन विशेश्वर बालिका उच्च विद्यालय की शिक्षिका नीतू सिंह के नाम कई उपलब्धि दर्ज हैं। दिल्ली में आयोजित गणतंत्र दिवस परेड में वे कई बार हिस्सा ले चुकी हैं। 2017 में भी गणतंत्र दिवस परेड के लिए उनका चुनाव हुआ था। संगीत के क्षेत्र में भी कई उपलब्धियां उनके नाम दर्ज है। एनसीसी के माध्यम से वे लड़कियों को आगे बढ़ाने के अभियान में निरंतर जुटी हुई हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Feb 2020 06:25 PM (IST)Updated: Sat, 22 Feb 2020 06:12 AM (IST)
जागरण विशेष: कागजों पर जैविक खेती, खेतों में रसायन
जागरण विशेष: कागजों पर जैविक खेती, खेतों में रसायन

मिथिलेश कुमार, सुपौल : कृषि प्रधान देश का मूल आधार ही कृषि है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश की अर्थव्यस्था कृषि पर ही टिकी हुई है। ऐसे में कृषि और भूमि का महत्व काफी बढ़ जाता है। सरकार और विभाग का मानना है कि रासायनिक खाद के अंधाधुंध प्रयोग से जमीन की उर्वरा शक्ति पर प्रभाव पड़ता है। किसानों का भी मानना है कि रासायनिक खाद के प्रयोग से धीरे-धीरे जमीन उसर होती जाती है और उसकी उत्पादन क्षमता घट जाती है। सरकार भी इस दिशा में लोगों को जागरूक कर रही है। सरकार रासायनिक खाद के बदले किसानों से अधिक से अधिक जैविक खाद के प्रयोग की अपील कर रही है कितु जैविक खाद की अनुपलब्धता के कारण किसानों को रासायनिक खाद का ही आसरा है। किसान भी मरता क्या न करता की तर्ज पर रासायनिक खाद से ही खेती करने पर विवश हैं।

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अनुदान व जागरूकता भी नहीं आ सकी काम

जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार और विभाग ने पहल की। विभागीय स्तर से भी पशुपालकों व किसानों को वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। वर्मी पिट के निर्माण के लिए सरकारी स्तर पर अनुदान भी दिए गए। साथ ही विभाग द्वारा कृमि भी उपलब्ध कराई गई। शुरुआती दौर में किसानों व पशुपालकों ने वर्मी कंपोस्ट बनाने में रुचि दिखाई कितु खपत नहीं होने व बाजार की व्यवस्था नहीं होने के कारण धीरे-धीरे उनका मोह भंग होता चला गया। कुछ खाद विक्रेताओं ने जैविक खाद के रूप में वर्मी कंपोस्ट भी मंगवाया कितु डिमांड नहीं रहने के कारण खाद विक्रेता भी वर्मी कंपोस्ट से मुंह मोड़ चले।

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रसायन के बलबूते ही आगे बढ़ रही है किसानी

जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए विभाग भी आगे आया। जगह-जगह जागरूकता कार्यक्रम व अभियान आयोजित कर लोगों को जैविक खेती के फायदे गिनाए गए और रासायनिक खादों के कम से कम उपयोग की अपील की गई। किसानों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से जिले के तीन पंचायत को चिह्नित कर जैविक पंचायत का दर्जा तक दिया गया। पर विडंबना है कि इससे आगे जागरूकता काम नहीं आ रही। आज भी रासायनिक खाद के लिए दुकानों पर मारामारी रहती है। कागजों में भले ही विभाग जैविक खेती दिखा कर वाहवाही ले ले कितु सच्चाई है कि किसानी रसायन के बलबूते ही आगे बढ़ रही है।

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शिथिल पड़ी व्यवस्था, किसानों ने मुंह मोड़ा

जिले में काम कर रही कई स्वयंसेवी संस्थाओं ने भी वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए किसानों व पशुपालकों को जागरूक करने में भूमिका निभाई। स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा जैविक खेती से होने वाले फायदे भी गिनाए गए। इतना तक कहा गया कि प्रयोग के तौर पर ही सही थोड़ी जैविक खेती कर लें और उत्पादन में अंतर देख लें। कुछ किसानों ने प्रयोग के तौर पर जैविक खेती की और उपलब्धि से खुश भी नजर आए कितु जैविक खाद की अनुपलब्धता व शिथिल व्यवस्था के कारण थक-हार कर किसान फिर से रासायनिक खाद की ओर बढ़ चले। वर्तमान समय में बाजार की खाद दुकानों पर रासायनिक खाद ही नजर आती है और बेची जाती है।


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