महावीरी पताका से सजा बाजार, तैयार करने में जुटे हैं दर्जी
श्री रामनवमी आदर्शों के आधार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के इस धरती पर अवतीर्ण होने का पुण्य दिवस है। शास्त्र एवं संहिता ग्रंथ व रामचरित मानस के ग्रंथानुसार चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी को मध्यान बेला में पुनर्वसु नक्षत्र के योग में जब चंद्रिका चंद्रमा और बृहस्पति एकत्र थे व पंचीग्रह अपनी उच्चावस्था में थे तथा सूर्य मेष राशि में एवं लग्न कर्क राशि में थी तब परमब्रह्म सच्चिदानंद परमपिता परमेश्वर भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था।
-लाल रंग के कपड़े से तैयार किया जाता है महावीरी ध्वज में लगने वाला पताका
-पताका तैयार करने में दिखती है इनकी श्रद्धा और उदारता भी
-पर्व हिदू का हो या मुस्लिम का एक-दूसरे के पर्व में हिस्सा लेने की है परिपाटी
जागरण संवाददाता, सुपौल: पर्व हिदुओं का हो या मुस्लिमों का, व्यस्तता दोनों की बढ़ जाती है। एक दूसरे के पर्व में दोनों समुदाय के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं यह परिपाटी यहां बिरासत के तौर पर विकसित है। अब जब रामनवमी मनाई जाने वाली है तो महावीरी पताके से बाजार सज गया है। इसे तैयार करने में दर्जी जुटे हैं जिससे अन्य दर्जियों के साथ मो. मतलूम की व्यस्तता बढ़ गई है। इनके बनाए महावीरी पताका से भगवान श्रीराम का दरबार सजेगा। पताका तैयार करने में इनकी श्रद्धा के साथ उदारता भी झलकती रहती है।
दरअसल रामनवमी के मौके पर महावीरी ध्वज में पताका लगाया जाता है। यह लाल रंग के कपड़े से तैयार होता है। रामनवमी करीब होने के कारण शुक्रवार को स्टेशन रोड स्थित श्याम गुप्ता की कपड़े की दुकान में शाम के समय एक व्यक्ति पताका के लिए कपड़ा खरीदने पहुंचा। 30 रुपये मीटर कपड़े की कीमत जानने के बाद जब उन्होंने उनकी दुकान के सामने बैठने वाले दर्जी मतलूम की ओर देखा तो वे मशीन समेटकर चलने की तैयारी में थे। उम्र अधिक होने के कारण प्रतिदिन वे शाम ढलने से पहले दुकानदारी समेट लेते हैं लिहाजा उस दिन भी वे समय से ही मशीन समेट रहे थे लेकिन यह पूछे जाने पर कि पताका तैयार कर देंगे तो उन्होंने मशीन समेटना बंद कर दिया। बोले भगवान का काम है तो करना ही पड़ेगा। दो ध्वज के लिए कितने कपड़े लेने पड़ेंगे यह पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि छह मीटर ले लीजिए। कपड़ा खरीदने के बाद जब उनसे सिलाई के संबंध में पूछा गया तो बताया कि 80 रुपये दे दीजिए। सिलाने वाले ने जब कुछ कम करने को कहा तो इन्होंने कहा कि भगवान का काम है तो दस कम ही दीजिए।
खैर, मतलूम तो एक प्रतीक मात्र हैं। एक-दूसरे के पर्व-त्योहारों में शामिल होना और काम में हाथ बंटाना यहां के लोगों की विशेषता रही है। दुर्गा पूजा को लेकर कासिम अंचरी, पटोर, चुनरी आदि की दुकान लगाए बैठा है तो नवरात्र करने वालों को परेशानी नहीं हो इसके लिए मो. सोनू अल सुबह आकर ठेले पर फलों की दुकान सजा देता है।