नियंत्रण से बाहर बाजार, मनमाना चलता कारोबार
चुनाव की तारीख ज्यों-ज्यों निकट आती जा रही है सारा सिस्टम चुनावी मोड में आता जा रहा है। हर बैठक चौपाल में देश की अंदरुनी नीति विदेश नीति अतीत की स्थिति वर्तमान हालात सब पर तर्कसंगत चर्चा। प्रधानमंत्री से लेकर अपने क्षेत्र के प्रतिनिधि तक की पूरी समीक्षा से भी बाज नहीं आ रही जनता। पुलवामा की घटना से बात शुरु होती है और अभिनंदन पर खत्म। अंतरिक्ष में भारत की बढ़ती ताकत का पूरा पोस्टमार्टम। मोदी का ओजराहुल के बोलदीदी के तेबरतेजस्वी के तेज यानी सब पर बहस
जागरण संवाददाता, सुपौल: किसी शहर की बाजार व्यवस्था सुदृढ़ व सुन्दर होगी तो उस बाजार की चर्चा होगी और बाजार के साथ-साथ शहर का भी नाम होगा। बाजार व्यवस्था के तहत वस्तुओं की कीमतों का निर्धारण सबसे अहम बात है। किन्तु अमूमन ऐसा देखा जाता है कि बाजार व्यवस्था पर नियंत्रण नहीं होने के कारण वस्तुओं की कीमतों में अंतर व मनमानापन दिखता है। नतीजा होता है उपभोक्ता ठगे जाते हैं और शोषण के शिकार बनते हैं।
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मनमानी कीमत पर बिकती है सब्जियां
जहां तक सुपौल की बात है तो सुपौल भी उन्हीं जिलों में शुमार है जहां वस्तुओं की कीमतों पर कोई लगाम नहीं। जिसे जो मन में आता है कीमत बताता है और उसी कीमत पर सामान बेचता है। ऐसा लगता है जैसे वही कीमत तय करते हैं और उनकी ही मनमानी चलती है। अब सब्जी का ही हाल देख लीजिए। इसकी कोई कीमत निर्धारित नहीं। सब्जी विक्रेता के मुंह से जो कीमत निकल जाए वही सही है। उस पर आपकी आनाकानी नहीं चलेगी। सुपौल में लोहियानगर चौक, स्टेशन चौक, महावीर चौक, गुदरी चौक, गजना चौक, हाट आदि में सब्जी की मंडी सजती है पर आश्चर्य है कि इन सभी जगहों पर भी सब्जियों का भाव एक सा नहीं। अब करेला जहां स्टेशन चौक पर 20-20 रुपये किलो बिकता है। वहीं लोहियानगर चौक पर 35-40 रुपये किलो। टमाटर के भाव हर चौक पर अलग-अलग हैं। थोड़ी ही दूरी पर सब्जियों के भाव में इतना अंतर क्यों। आखिर इस पर कैसे लगेगा लगाम।
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पचास किमी में सब्जियों का भाव हो जाता है दो गुना
आलू, टमाटर, परवल, करेला, भिडी, कटहल, सहजन, कद्दू, गोभी, बैगन, कदीमा, पत्ता गोभी आदि की खेती सुपौल जिले में भी होती है। वहीं सब्जी व्यवसायी समस्तीपुर, दलसिगसराय, फारबिसगंज आदि से भी सब्जी मंगाते हैं और बेचते हैं। आश्चर्य है कि फारबिसगंज में 10 रुपये किलो मिलने वाली सब्जी सुपौल आते-आते 20 रुपये किलो हो जाती है। आखिर यह मनमानी नहीं तो और क्या है।