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सुशिक्षित समाज निर्माण में 'बबुआ जी' की भूमिका अहम

सिवान। शिक्षा हमारे लिए अनमोल है। इस धरोहर को मजबूत बनाने में सहयोग करना हम सभी का दायित्व एवं

By Edited By: Published: Wed, 20 Jul 2016 03:06 AM (IST)Updated: Wed, 20 Jul 2016 03:06 AM (IST)
सुशिक्षित समाज निर्माण में 'बबुआ जी' की भूमिका अहम

सिवान। शिक्षा हमारे लिए अनमोल है। इस धरोहर को मजबूत बनाने में सहयोग करना हम सभी का दायित्व एवं अधिकार है। इसी की मजबूती देने में अहम भूमिका निभाने वालों में एक नाम है बगौरा निवासी कौशलेन्द्र प्रसाद शाही उर्फ बबुआ जी हैं।

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आइएएस और आइपीएस का ख्वाब कौन नहीं देखता, कामयाबी से चुकने का मलाल ताउम्र रहता है, लेकिन बबुआ जी जैसे शख्स अपने दौर में इन सब से अलग थे वह आइपीएस के लिए चुने भी गए, लेकिन उन्हें लगा कि उनके लक्ष्य की पूर्ति आइपीएस से नहीं बल्कि समाज सेवा से ही संभव हो पाएगा। आइपीएस का प्रतिष्ठित कैरियर छोड़ वे समाज सेवा में रम गए। करीब 50 एकड़ जमीन में गरीबों को बसा दिया। धर्म एवं आध्यात्म में गहरी आस्था है। राज्य के विभिन्न क्षेत्र में सैकड़ों यज्ञ करा चुके हैं। उम्र के 96 बंसत देख चुके चुके कौशलेन्द्र प्रसाद शाही उर्फ बबुआ जी का सारण प्रमंडल में यह परिचय काफी है। लोग उन्हें महाराजगंज के पूर्व विधायक के रूप में भी जानते हैं।

पिता चाहते थे कि देश की सेवा करूं :

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में स्वतंत्र भारत के पहले जिलाधिकारी शत्रुघ्न प्रसाद शाही चाहते थे कि उनका बेटा कौशलेन्द्र उनकी राह पर चलकर देश की सेवा करें। इसके लिए उन्होंने बबुआ जी को पटना के सेंट जेवियस स्कूल एवं पटना कालेज में शिक्षा दिलवाई। स्नातकोत्तर करने के बाद बेटे ने आइपीएस की परीक्षा पास की, लेकिन विधि को कुछ और ही मंजूर था।

ऐसे हुआ ह्रदय परिवर्तन :

1957 में उनके 10 वर्ष के घरेलू नौकर की बीमारी से मौत हो गई। मरने से पहले उसने आख दान करने की इच्छा जाहिर की। युवा कौशलेन्द्र पर इसका काफी असर हुआ। उन्हें लगा कि जब एक गरीब इस तरह समाज की सेवा कर सकता है तो उनके जैसा समृद्ध जमींदार समाज सेवा के लिए कुछ क्यों नहीं कर सकता।

इसीलिए छोड़ दी नौकरी :

कौशलेन्द्र बाबू ने बताया कि वे यह भी सोचते थे कि जमींदारी के दिनों में गरीबों का शोषण हुआ है। इसका प्रायश्चित उन्हें करना है। इन बातों से प्रेरित हो उन्होंने आइपीएस का कैरियर त्याग दिया। उस समय वे प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे थे।

समाज सेवा की शुरुआत :

उन्होंने सिवान के दारौंदा प्रखंड स्थित बगौरा गाव बगौरा से शुरू की समाज की सेवा। बगौरा में 1971 में भूमि दान देकर लालबहादुर शास्त्री उच्च विद्यालय एवं मध्य विद्यालय की स्थापना की। इसके अलावा पंचायत भवन स्वास्थ्य केंद्र, बगौरा बाजार आदि का निर्माण कराया। पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री से निकट संबंध कारण उनकी स्मृति में उन्होंने उच्च विद्यालय रखा। आज भी वे लालबहादुर शास्त्री उच्च विद्यालय एवं मध्य विद्यालय में स्वयं छात्रों को पढ़ाते हैं।

सारी जमीन दे दी दान में :

उन्होंने कहा कि गाव में कंपाउड को छोड़कर गरीबों को अपनी सारी जमीन दान में दे दी है। रामाछपरा, दवन छपरा, उस्ती आदि क्षेत्र में उनकी पचास एकड़ भूमि में गरीबों एवं असहाय बसे हुए हैं। उन्होंने सिवान स्थित कचहरी दुर्गा मंदिर एवं राधा कृष्ण मंदिर के निर्माण में सहयोग किया था।

राजनीति में रखा कदम :

अपने व्यक्तित्व एवं सामाजिक कायरें से सारण प्रमंडल में पहचान बना चुके बबुआ जी सन 1967 में महाराजगंज से विधायक भी बने थे। लेकिन उन्हें राजनीतिक रास नहीं आई। इसलिए उन्होंने प्रण लिया कि अब आगे कभी चुनाव नहीं लड़ेंगे। सार्वजनिक जीवन में खेलकूद के प्रति जागरूक थे। वे जिला स्पो‌र्ट्स एसोसिएशन के सात वर्ष तक सचिव तक रहे।

इंजीनियरिग कॉलेज की करना चाहते हैं स्थापना :

परिवार की कुलीन संस्कृति से दूर गाव में संयासी का जीवन जीकर समाज सेवा की राह पर चलने से व्यतित्वगत परेशानी हुए लेकिन वे कभी विचलित नहीं हुए, समाज सेवा के कार्य में परिवार का पूरा साथ मिला। इसका उन्हें संतोष है। अब उनकी तमन्ना है कि इंजीनियरिग कॉलेज की स्थापना की जाए।


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