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शक्ति रूपेण संस्थिता : यहां माता की उपस्थित होने की होती है अनुभूति

प्रखंड के बिठुना पंचायत के बिठुना गांव में अवस्थित शक्ति स्वरूपा।

By JagranEdited By: Published: Sun, 14 Oct 2018 04:36 PM (IST)Updated: Sun, 14 Oct 2018 04:36 PM (IST)
शक्ति रूपेण संस्थिता : यहां माता की उपस्थित होने की होती है अनुभूति
शक्ति रूपेण संस्थिता : यहां माता की उपस्थित होने की होती है अनुभूति

सिवान। प्रखंड के बिठुना पंचायत के बिठुना गांव में अवस्थित शक्ति स्वरूपा माता रानी बिठुन देवी स्थान भले भी सरकार के रोड मैप में शक्ति पीठ के रूप में शुमार नहीं है, लेकिन यह स्थान किसी शक्ति पीठ से कम ख्याति प्राप्त नहीं है। उपासना का केंद्र के रूप में बिठुन देवी स्थल पर माता की दरबार सजाने देश-प्रदेश से भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है। माता सबकी मुरादें पूरी करती हैं।

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इतिहास :

देवी स्थल का इतिहास अन्य शक्ति पीठों से कुछ अलग है। कहा जाता है कि एक बार गोपालगंज जिले के थावे

में रहषु भगत नामक देवी भक्त रहा करते थे। उनकी चमत्कार के कारण उनकी चर्चा चेरी वंश के राजा मदन ¨सह तक पहुंची। राजा ने रहषु को अपने दरबार में बुलाकर कहा कि तुम्हें देवी का दर्शन होता है तो हमें भी दर्शन कराना होगा। राजा के जिद के आगे रहषु की एक नहीं चली। रहषु भगत ने देवी का कातर भाव से आह्वान कर दिया। भक्त के आह्वान पर देवी मां कामाख्या (असम) से प्रस्थान कर दी। इसी बीच जब माता बिठुना गांव के सीमा पर पहुंची तो गांव के देवी स्थान के पुजारी नर¨सह दास मिट्टी के टीले पर बैठे दातून कर रहे थे। उसी समय पूरब दिशा से तेज आवाज सुन वे पूरब दिशा की ओर प्रस्थान किए तो उनके साथ मिट्टी का टीला भी चल दिया।

गांव के सीमा पर शेर पर सवार माता को देख भक्त नर¨सह ने मां को अभिवादन कर अपने स्थान पर लाए। वहां मां विश्राम की इच्छा व्यक्त की।

भक्त ने यह कहते हुए मां की विश्राम कराने से इन्कार कर दिया कि हे जगत जननी, आपका स्वरूप अभी काली की है, जबकि यह स्थान वैष्णवी है। इसलिए हे माते आप कहीं और विश्राम करें। भक्त के निष्ठा एवं सहृदय को देख मां ने कहा यथा अस्तु। उन्होंने बलि न ले जौ के आटा का पीठा का प्रसाद ग्रहण किया और थावे के लिए प्रस्थान कर गईं।

मान्यता :

बिठुन देवी स्थान की स्थानीय स्तर पर शक्ति पीठ के रूप में मान्यता है। यहां जो भी श्रद्धालु माता के दरबार में सिर झुकाते हैं माता उनकी मनोकामना पूरी करती हैं। शारदीय नवरात्र में इस पावन स्थल पर बिहार के अलावा कई राज्यों में रहने वाले भक्त माता के दरबार में पहुंच पूजा अर्चना करते हैं। मान्यता है कि माता का दरबार खुले आसमान के नीचे ही मिट्टी के टीले का ही होगा। कई बार ग्रामीणों ने दरबार का भवन बनाने की बात सोची, लेकिन माताजी ने स्वप्न में मना कर दिया।

कहते हैं पुजारी :

जहां माता का चरण पड़े हों उस स्थान की शक्ति पीठ के रूप ख्याति होनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। यहां आने वाले देवी भक्त माता के दर्शन मात्र से ही धन्य हो जाते हैं। माता सबकी मुरादें पूरी करती हैं। यहां प्रत्येक सोमवार एवं शुक्रवार को भी पूजा को ले श्रद्धालुओं की भीड़ होती है।

अजीत ¨सह, पुजारी।


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