रमजान पर विशेष : इमान वालों पर रोजा फर्ज
सिवान। आल्ला ताला सृष्टि के आदि काल से अपना वाणी प्रचार करने तथा मनुष्य को सत्य के पथ पर चलने क
सिवान। आल्ला ताला सृष्टि के आदि काल से अपना वाणी प्रचार करने तथा मनुष्य को सत्य के पथ पर चलने का पैगाम देने के लिए विश्व में एक के बाद एक प्राय 1 लाख 24 हजार पैगम्बर भेजा है। विभिन्न कौम ने विभिन्न समय में अलग-अलग तरीके से अल्लाह ताला का इबादत किया है। कुरानशरीफ में विभिन्न कौम से संबंधित वर्णन भी है। कुरानशरीफ में सुरा अल-बकरा-के (आयत 183) अनुसार इमानवालों पर रोजा फर्ज किया गया है जिस प्रकार पूर्ववर्ती लोगों पर फर्ज किया गया था ताकि ईमानवाले परहेजगारी अर्जन कर सकें। मुसलमानों (ईमानवालों)पर रोजा फर्ज का वर्णन एक विशेष उल्लेख के साथ किया गया है। साथ ही साथ ये भी वर्णन कर दिया गया है कि सिर्फ तुम्हारे ऊपर ही नहीं बल्कि पूर्ववर्ती कौमों पर भी रोजा फर्ज किया गया था। पूर्ववर्ती कौम में हजरत आदम से लेकर हजरत ईसा तक सब कौम शामिल हैं। इससे ये प्रमाणित होता है कि पूर्ववर्ती कौमों में भी रोजा का प्रचलन था। अवश्य विभिन्न कौमों के रोजा के समय सीमा संख्या तथा काल में पार्थक्य स्पष्ट रहा। विश्व के हर धर्म में किसी न किसी प्रकार रोजा का प्रचलन रहा और है। रोमान, ब्यबिलियन, भारतीय तथा विश्व के दूसरे सभ्यता में इसका प्रमाण है। मुसलमानों पर पहला जो रोजा फर्ज किया गया वह महरम महीना के नौ तथा दस तारीख का रोजा था। ईहुदी महरम के दस तारीख को रोजा रखते थे, कारण एक मान्यता के अनुसार उसी दिन फिरौन की मौत हुई थी और ईहुदी कौम को हजरत मुसा(अएईए) के नेतृत्व में फिरौन के अत्याचार से मुक्ति मिली थी। रमजान महीना का रोजा फर्ज होने के बाद ये रोजा नफील रोजा में परिवर्तित हो गया। किसी भी प्रकार के मुसीबत के समय भी ईहुदी रोजा रखते थे। हिन्दु धर्म मे पति के लिए शुभकामना करते हुए पत्नी उपवास करती है। हर धर्म में उपवास का पद्धति अलग-अलग है। किसी-किसी धर्म में किसी विशेष खाद्य पदार्थ को किसी विशेष समय के लिए ग्रहण करने से रोका गया है और किसी किसी धर्म में उपवास के समय कोई विशेष फल या खाद्य पदार्थ ग्रहण करने की अनुमति है। इस्लाम में पालित रोजा में सूर्योदय से लेकर सुर्यास्त तक पानी तथा किसी भी प्रकार का खाद्य पदार्थ ग्रहण करने की अनुमति नहीं है।
अब्दुस सलाम सिवानी।