उमाकांत बाबू ने सचिवालय पर तिरंगा फहरा दिया था अपनी साहस का परिचय
कृष्ण सिंह, जीरादेई (सिवान) : क्रांतिकारी नेता व विचारकों ने कहा है -
क्रांति कोई फूलों की शैय्या नहीं भविष्य तथा भूतकाल के बीच जानलेवा संघर्ष का ही दूसरा नाम है।
इस शब्द पर अक्षरशः खरा उतरने वाले 19 वर्षीय छात्र उमाकांत सिंह ने 11 अगस्त 1942 को पटना सचिवालय पर तिरंगा फहराकर अपनी अटूट संकल्प व साहस का परिचय देते हुए अपना बलिदान दिया था। शहीद उमाकांत सिंह का नाम बिहार के सात बलिदानियों की सूची में सबसे प्रथम है। उनके इस बलिदान से जिले का नाम इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों से अंकित है। बलिदानी उमाकांत सिंह गणतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डा. राजेंद्र प्रसाद के पड़ोसी गांव नरेंद्रपुर के लाल थे और राममनोहर राय सेमिनरी स्कूल के छात्र थे। 11 अगस्त 1942 को पटना सचिवालय के समक्ष 10 हजार की भीड़ के बीच छात्रों ने सचिवालय पर तिरंगा झंडा फहराने का संकल्प लिया था। इसी क्रम में सात छात्र पुलिस की गोली का शिकार हुए और अपने प्राणों की आहुति दी। इनमें जीरादेई प्रखंड के नरेंद्रपुर निवासी उमाकांत सिंह ने गोली लगने के बाद भी अपने साहस का परिचय देते हुए पटना सचिवालय पर तिरंगा फहराया और उसके बाद बलिदान हुए और स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमर कीर्ति को प्राप्त किया।
नहीं होता कोई सरकारी कार्यक्रम :
नरेंद्रपुर के ग्रामीणों का कहना है कि बलिदानी उमाकांत बाबू के बलिदान दिवस पर गांव में स्थापित इनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करने कोई सरकारी पदाधिकारी नहीं आते हैं। यह दर्शाता है कि आज उमाकांत बाबू का बलिदान इतिहास के पन्नों में दब गया है।
प्रतिमा लगाने की मांग :
उमाकांत बाबू के वंशज समाजसेवी सह जनसुराज अभियान के सदस्य राहुल कीर्ति सिंह, उमाकांत सिंह के पोता प्रसून कीर्ति ने कहा कि मेरे दादा का बलिदान देश के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है, फिर भी उनकी प्रतिमा जिला मुख्यालय या प्रखंड कार्यालय परिसर में नहीं है। प्रशासन या राज्य सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए।