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पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन के पिता के निधन पर शोक

तिहाड़ जेल में बंद पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन के पिता शेख मो. हसीबुल्लाह का शनिवार की देर शाम निधन हो गया। पूर्व सांसद के पिता के आकस्मिक निधन की सूचना राजद तथा अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं तथा कार्यकर्ताओं को जैसे ही मिली देर रात प्रतापपुर में लोग सांत्वना देने के लिए एकत्रित हो गए।

By JagranEdited By: Published: Sun, 20 Sep 2020 05:37 PM (IST)Updated: Sun, 20 Sep 2020 05:37 PM (IST)
पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन के पिता के निधन पर शोक
पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन के पिता के निधन पर शोक

सिवान । तिहाड़ जेल में बंद पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन के पिता शेख मो. हसीबुल्लाह का शनिवार की देर शाम निधन हो गया। पूर्व सांसद के पिता के आकस्मिक निधन की सूचना राजद तथा अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं तथा कार्यकर्ताओं को जैसे ही मिली देर रात प्रतापपुर में लोग सांत्वना देने के लिए एकत्रित हो गए। शनिवार देर रात से रविवार की देर शाम तक सांत्वना देने वालों का तांता लगा रहा। निधन की सूचना मिलते ही राजद परिवार में मायूसी की लहर दौड़ गई। पूर्व मंत्री अवध बिहारी चौधरी, रघुनाथपुर विधायक हरिशंकर यादव, राजद जिलाध्यक्ष परमात्मा राम, लीलावती गिरि, अदनान अहमद सिद्दीकी, राजद के युवा नेता क्रिकेटर मोहम्मद कैफ उर्फ बंटी समेत दर्जनों राजद के नेता व कार्यकर्ता उनके पैतृक गांव प्रतापपुर पहुंचे तथा शोकाकुल परिवार से मिलकर गहरी संवेदना व्यक्त की। जिला प्रवक्ता उमेश कुमार ने बताया कि पिछले कई दिनों से शेख हसीबुल्लाह बीमार चल रहे थे। उनका इलाज पटना में चल रहा था। वहीं दूसरी ओर तिहाड़ जेल में बंद पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन को पैरोल पर लाने की कानूनी कवायद शनिवार रात से ही उनके वकीलों ने शुरू कर दी थी, ताकि पिता के सुपुर्दे खाक की प्रक्रिया में शामिल हो सकें,लेकिन सारे प्रयास असफल साबित हुए। रविवार की शाम उन्हें सुपुर्दे खाक कर दिया गया। वे अपने पीछे तीन पुत्री तथा दो पुत्र समेत परिवार छोड़ गए। इनके तीन पुत्र थे। करीब एक वर्ष पूर्व उनके दूसरे पुत्र शेख शमसुद्दीन का भी आकस्मिक निधन हो चुका है। शेष दो पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र ज्ञासुद्दीन तथा सबसे छोटे पुत्र राजद के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन हैं।

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पैरोल पर बाहर आने की कानूनी कवायद पर लगा विराम :

तिहाड़ में सजा काट रहे पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन को पिता के निधन के बाद उन्हें पैरोल पर बाहर लाने की कानूनी कवायद रात में ही उनके वकीलों द्वारा शुरू कर दी गई थी, ताकि वो अपने पिता के जनाजे को कंधा दे सके। इसको लेकर उनके वकीलों ने जेल डीजी के पास अपनी अर्जी दी थी। अर्जी में उन्होंने दो सप्ताह के लिए पेरोल पर बाहर जाने की इजाजत मांगी थी, लेकिन सारी कानूनी कवायदों पर तब विराम लग गया जब उनकी अर्जी को एक सिरे से खारिज कर दिया गया।


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