अंग्रेजी सिपाहियों के जुल्म के बावजूद सीना तानकर खड़े रहे आजादी के दीवानें
जासं सिवान हिदू की नहीं है किसी मुस्लिम की नहीं है है हिद जिसका नाम शहीदों की जमीन
जासं, सिवान: हिदू की नहीं है किसी मुस्लिम की नहीं है, है हिद जिसका नाम शहीदों की जमीन है..हम एक हैं फिल्म के गीत को क्रांतिकारियों की धरती सिवान चरितार्थ करती है। 1942 में छेड़ी गई अगस्त क्रांति में भी यहां का अहम योगदान रहा है। घर जलाए गए, दुकानें लूटी गईं, सिर के बाल नोचे गए, बरौनियां उखाड़ी गईं लेकिन यहां के आजादी के दीवाने अंग्रेजी सिपाहियों के सामने सीना तानकर खड़े रहे। कई लोगों की शहादत भी इनके कदम नहीं डिगा सकी। बात शुरू करते हैं दरौली से। यहां अगस्त क्रांति को दबाने के लिए 28 अगस्त 1942 को अंग्रेजी पुलिस आई। सबसे पहले पं. रामायण शुक्ल, विश्वनाथ शर्मा तथा मधुसूदन सिंह के घर को जला दिया। सिवान वापस होते हुए जयजोर के बासुदेव नारायण के भी मकान को फूंकते गए। आसांव में रामानंद साह की दुकान लूटी। दूसरे दिन फिर दरौली पहुंचे और रामावतार को पकड़ लिया। जो सेनानी फरार थे, उनके घर के सामान कुर्क किए गए। तपेश्वर तिवारी का घर लूटा गया। दिनेशचंद्र, विश्वनाथ प्रसाद तथा रामबड़ाई सिंह के सामान अंग्रेज ले गए। 30 अगस्त को रामावतार जी आर्य और रामबली दुबे पकड़े गए। दोनों के सिर के बाल नोचे गए। आंखों की बरौनियां उखाड़ ली गईं। रामबली दुबे मिडिल स्कूल के हेडमास्टर थे। इस दौरान गुठनी थाना पर कांग्रेस का झंडा क्रांतिकारियों ने फहरा दिया था। ताला भी अपना लगाया था। जिसे तीन सितंबर को मिलिट्री ने हटाया। गुठनी आश्रम जब्त कर लिया गया। फिर गिरफ्तारी शुरू हुई। राजवंशी सिंह दौरा करते हुए पकड़े गए। रघुनंदन दास गिरफ्तार हुए। मदन कांदू का घर और विश्वनाथ, मुन्नीलाल और कुंजबिहारी की दुकानें अंग्रेजों द्वारा लूट ली गईं। सोहागरा के कुंजबिहारी प्रसाद को पुलिस जमादार वृंदा सिंह ने इतना मारा कि वे बेहोश हो गए।
कहते हैं लोकतंत्र सेनानी महात्मा भाई
लोकतंत्र सेनानी महात्मा भाई ने कहा कि सिवान की धरती की बात ही कुछ अलग है। यहां के काफी संख्या में लोगों ने आजादी के आंदोलन में भाग लिया है। उनके संघर्ष की कहानी सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। नमन है उन क्रांतिकारियों को।